मणिपुर की हिंसा को सांप्रदायिक रंग देना गलत 

मणिपुर की हिंसा को सांप्रदायिक रंग देना गलत 

गौतम चौधरी 

विगत चार मई को मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद, इम्फाल घाटी के पहाड़ियों पर स्थित मैतई समुदाय के कई एतिहासिक मंदिरों को आग के हवाले कर दिया गया है। इसके बाद असामाजिक तत्वों ने कई गिरिजा घरों में तोड़-फोड़ किए। खबर है कि कुछ चर्चों को जला भी दिया गया है। इधर दो दिन से एक खास समुदाय विशेष की महिला को नंगा घुमाए जाने का वीडियो भी वायरल हो रहा है। इस वायरल वीडियो को लेकर लगभग सभी जिम्मेदार संगठनों ने भत्र्सना की है। यहां यह स्पष्ट कर देना ठीक रहेगा कि मणिपुर का संकट दो जातीय समूहों के बीच की लड़ाई है, न कि साम्रदायिक संघर्ष। इस मामले को जो लोग साम्रदायिक रंग देने पर तुले हैं उनके पूर्वाग्रह को साफ तौर पर देखा व समझा जा सकता है। सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रकार की एजेंसियों ने भी यह माना है कि पिछले कुछ दिनों में 100 से अधिक लोगों की जान लेने वाला मणिपुर का संकट दो जातीय समूहों के बीच की लड़ाई है। ये दोनों जातियां एक राज्य की राजधानी इम्फाल घाटी में बसी है, तो दूसरे का निवास पहाड़ियों में अवस्थित है। 

देश के कुछ इसाई संगठन, राष्ट्र विरोधी ताकतें और साम्प्रदायिक तत्व इस घटना को विशुद्ध साम्रदायिक घोषित करने पर तुले हुए हैं। इसे हिन्दू और ईसाई समूहों की लड़ाई साबित करने की कोशिश हो रही है। बताया जा रहा है कि मैतई हिन्दू हैं और कुकी ईसाई। इसलिए इन दनों के बीच की यह लड़ाई, हिन्दू बनाम ईसाई के बीच की लड़ाई है, जबकि तथ्य इसके ठीक विपरीत है। शेष देश के अधिकांश समाचार माध्यमकर्मी और बुद्धिजीवी पूर्वोत्तर के बारे में अनजान हैं। वे अंजाने में इस क्षेत्र की जटिलताओं को एक ऐसे विश्व दृष्टिकोण में बदलने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका वास्तविकता से कोई लेनादेना नहीं है। मणिपुर हिंसा के मद्देनजर गौरतलब यह है कि मैतई समुदाय के अंतर्गत ईसाई अनुयायी भी आते हैं। मणिपुर की हिंसा का प्रारंभ एक कुकी बाहुल्य जिले चुराचांदपुर से हुआ है। जो धीरे-धीरे राज्य के कई जिलों में फैल गया है। याद रहे चुराचांदपुर में मैतई समुदाय के लोगों की संख्या बहुत कम है। इस हिंसा से कुकी और मैतई दोनों समुदायों के लोग समान रूप से प्रभावित हुए हैं। सरकार ने अपने राहत शिविर, पुनर्वास और पुनर्स्थापना के तमाम प्रयास न केवल मैतई क्षेत्रों में किए हैं बल्कि कुकी बाहुल्य क्षेत्रों में भी समान रूप से किया है। देश की मीडिया का एक हिस्सा और पूर्वोत्तर ईसाई चर्चों के प्रमुख इस बात को प्रचारित करने में लगे हैं कि इस पूरी घटना में ईसाइयों को धार्मिक आधार पर उत्पीड़ण किया जा रहा है। यदि ऐसा ही होता तो मैतई में जो ईसाई हैं उन्हें मैतई हिन्दुओं के द्वारा उत्पीड़ित किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। उपरोक्त तथ्यों से ईसाई उत्पीड़न और धार्मिक आधार पर होने वाली हिंसा का खंडन होता है। 

जहां तक सरकारी सुविधा और संरक्षण की बात है तो वह दोनों समुदायों को समान रूप से पहुंचाया जा रहा है। सरकार पर पूर्वाग्रही होने का आरोप भी निराधार साबित हो रहा है। यहां सरकारी एजेंसियां न तो जाति देख रही है और न ही संप्रदाय। मणिपुर में इस घटना के दौरान हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। समस्या अभी भी समाप्त नहीं हुई है और वह जटिल होती जा रही है। इसलिए सरकार की एजेंसी पर आरोप लगाना और इसे सांप्रदायिक रंग देना, देना देश हित के खिलाफ है। जो लोग हिंसा का शिकार हो रहे हैं, उनके लिए धर्म की पहचान कोई मायने नहीं रखता है। वे केवल और केवल हिंसा के शिकार हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर सुरक्षा एवं सहयोग मिलना चाहिए। यहां एक बात का जिक्र करना जरूरी है कि दोनों समुदायों में वहीं सबसे ज्यादा पीड़ित हैं, जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थति कमजोर है। जो लोग बार-बार यह टिप्पणी दुहराते हैं कि मणिपुर की हिंसा हिन्दू मैतई और ईसाई कुकियों के बीच है वे निहायत गलत हैं। इस मामले को साम्प्रदायिक रंग देना पूरी तरह से गलत है। इससे किसी का भला होने वाला नहीं है। 

जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा मणिपुर में हिंसा की गलत व्याख्या, ठीक नहीं हैं। उन्हें इससे बचना चाहिए। यह शांति की दिशा में हो रहे प्रयास को क्षति पहुंचाने वाला साबित होगा। ऐसा करने से या केवल एक समुदाय के पक्ष में खड़े रहने से, दूसरे समुमदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह के आरोपों को बल मिलेगा। यूनाइटेड किश्चन फोरम आॅफ नौर्थइस्ट, बैपटिस्ट चर्च कौंसिल नागालैंड, खासी जयंतिया चर्च लीडर्स फोरम और केरल के मलआमकार मार्थोमाा सीरियन चर्च के जिम्मेदार धार्माधिकारियों ने मानव जीवन के मूल्यों की रक्षा के साथ-साथ हिंसा से बचने और शांति की अपील की है। ईसाई समुदाय को यह समझना होगा कि मणिपुर की हिंसा दो नृजातीय समुहों के बीच है, ना कि किसी धार्मिक समूहों के बीच। कुछ राष्ट्र विरोधी ताकतें, कुछ चर्च के धर्माधिकारी और मीडिया का एक खास हिस्सा इसे साम्प्रदायिक रंग देने में लगा है। इसे किसी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। फिलहाल जरूरत, नफरत फैलाने के बजाए हमें अपना ध्यान विस्थापित लोगों के पुनर्वास और शांति के संदेशों पर केन्द्रित करना चाहिए, जिसका संदेश प्रभु यीशु ने समस्त मानव जाति के लिए दिया है। 

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