गौतम चौधरी
जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सहजानंद सरस्वती के बारे में कई प्रकार के विवाद प्रचलित हैं। दरअसल, इस विवाद पर लिखने की इच्छा तब हुई जब ज्योतिषपीठ, बद्रीनाथ के वर्तमान शंकराचार्य जगतगुरु अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज पर विवाद प्रारंभ हुआ। कुछ खास राजनीतिक पार्टियों के समर्थकों ने तो उन्हें गैर ब्राह्मण तक घोषित कर दिया। यह हिन्दू चिंतन, धर्म और स्वापक सांस्कृतिक परंपरा का अपमान नहीं तो और क्या है? इधर गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य पूज्य श्री निश्चलानंद जी महाराज सनातन धर्म को खंड-खंड में विभाजित करने का मानों प्रण ले रखा हो। जातियों पर उनके कई विवादित बयान समाचार माध्यमों की सुर्खियां बटोर चुकी है। हिन्दू चिंतन के सार्वभौंमवाद और सर्वस्पर्शी सिद्धांत को पूज्य श्री झटके से तोड़ देने की कोशिश करते रहे हैं। यही नहीं, वर्तमान में कई ऐसे संत और महंथ हैं, जो लगातार सनातन सांस्कृतिक धारा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें कि इस प्रकार के संतों के समूह मध्यकालीन भारत में जन्म लिया और फिरंगी शासकों ने इन्हें बल प्रदान किया। हिन्दू धर्म के अंदर यह शक्तियां आज भी अपने साम्राज्यवादी आकाओं के इशारों पर काम कर रहे हैं। इन्हें धर्म संस्कृति से कुछ भी लेना देना नहीं है।
ऐसी ही शक्तियां बारबार विवादों को जन्म दे रही है और हिन्दू समाज को एकत्र होने में अड़ंगा लगाती है। स्वातंत्र समर के दौरान इसी प्रकार की शक्तियों का शिकार शंकराचार्य परंपरा के संत, जगतगुरु स्वामी सहजानंद जी महाराज को होना पड़ा था। चूंकि स्वामी जी ने ब्रितानी साम्राज्यवाद के खिलाफ कमजोर और गरीब हिन्दू समाज को खड़ा कर दिया था। यह बात ब्रिटिश रणनीतिकारों को खटकने लगी थी। इसी कारण से स्वामी जी के व्यक्तित्व पर बार-बार प्रश्न खड़े किए जाने लगे। वह आज भी जारी है। सुनियोजित तरीके से एक खास साम्राज्यवाद समर्थक वर्ग सशक्त जाति के रूप में ख्यातिलब्ध भूमिहार ब्राह्मण समाज को बार-बार लांछित कर रहा है।
जानकर आश्चर्य होगा की इतिहास पुरुष और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायक सन्यासी परंपरा में तात्कालिक समय के पदेन शंकराचार्य जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सहजानंद सरस्वती जी महाराज के सदगुरुदेव भगवान जिनको लेकर भी बार-बार प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। उन प्रश्न करने वालों को ज्ञात होना चाहिए कि स्वामी सहजानंद सरस्वती जी महाराज के सदगुरुदेव भगवान का नाम जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती जी महाराज है, जिनकी जन्म भूमि वर्तमान के चंदौली जिला के भैसा पिपरी गांव है। पूज्य श्री का जन्म एक कुलीन भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यही नहीं जगतगुरु शंकराचार्य भगवान स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती जी महाराज के सदगुरुदेव भगवान जगद्गुरु शंकराचार्य भूमानंद सरस्वती जी का जन्म भी भूमिहार ब्राह्मण परिवार में ही हुआ था। पूज्य श्री जी का मूल जन्म स्थान गाजीपुर जिले का सुल्तानपुर गांव है। इस प्रकार जगतगुरु शंकराचार्य जी महाराज स्वामी सहजानंद सरस्वती की संत परंपरा लंबी ही नहीं बेहद प्रतिष्ठित भी है।
ब्राह्मणों की यदि बात की जाए तो पंचगौड़ और पंच द्रविड़ की चर्चा सबसे पहले कल्हण द्वारा रचित राजतंगिणी में मिलता है। उससे पहले इस प्रकार की व्याख्या कहीं नहीं मिलती है। यह ग्रंथ खुद को राजाओं की परंपरा की घोषणा करता है। इस ग्रंथ में कल्हण कहते हैं कि मैंने यह ग्रंथ राजाओं के इतिहास, खुद के सुख और पाठकों के मनोरंजन के लिए लिखा है। इसकी रचना काल 1147 से लेकर 49 के बीच मानी जाती है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस ग्रंथ से पहले ब्राह्मण नामक कोई जाति या वर्ण इस धरती पर नहीं था? इसलिए ब्राह्मण की प्रामाणिकता के लिए इस ग्रंथ को मात्र आधार मानना यथोचित नहीं होना चाहिए।
यहां छांदोग्य उपनिषद की कथा का अंश बताना जरूरी समझता हूं। दरअसल, महर्षि गौतम को एक दिन एक बालक आकर कहने लगा, ‘‘महाराज, मुझे भी शिक्षा दीजिए। मैं भी ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी हूं।’’ उस युग की प्रथा के अनुसार ऋषि ने उससे गोत्र और वंश के बारे में पूछा। उस वक्त उसने कुछ भी नहीं बताया और वापस चला गया। उस बालक ने अपनी मां से गुरु द्वारा पूछे गए प्रश्न को दुहराया। मां ने कहा, ‘‘बेटा! मैं कई ऋषियों की सेवा में रही हूं। उसी वक्त तू मेरे गर्भ में आया। मुझे नहीं पता तू किसका बेटा है और तुम्हारा गोत्र क्या है।’’ मां ने अपने बेटे से यह भी कहा, ‘‘गुरु को तू यही सत्य बता देना। यदि गुरु सचमुच का ज्ञानी होगा तो तुम्हें ज्ञान का अधिकारी जरूर बनाएगा।’’ कथा के अनुसार बालक ने गुरु को यही बताया और ऋषि गौतम ने उसे कहा, ‘‘तूने सत्य कहा इसलिए तुम्हारा नाम सत्यकाम होगा और तुम्हारा गोत्र मां के नाम से जाना जाएगा।’’ उस बालक का गोत्र जाबाल हुआ। सत्यकाम जाबाल वैदिक ऋर्षि हैं और कई मंत्रों के द्रष्ट्रा भी बताए जाते हैं। जब सनातन परंपरा में इस प्रकार की डायवर्सिटी है तो फिर आज नाहक विवाद और प्रलाप क्यों?
स्वामी सहजानन्द सरस्वती भारत के राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे भारत में किसान आन्दोलन के जनक थे। वे आदि शंकराचार्य परम्परा के दण्डी संन्यासी थे। वे साक्षात शिव स्वरूप थे, उनका जीवन जन्म महाशिवरात्रि को हुआ। उनका सन्यस्त जीवन भी महाशिवरात्री से ही प्रारंभ होता है। यह केवल संजोग मात्र नहीं अपितु शिव स्वरूप के प्रमाणिकता का लौकिक ,धार्मिक,आध्यात्मिक प्रमाण भी है। स्वामी जी बुद्धिजीवी, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, इतिहासकार एवं किसान-नेता थे।
स्वामी सहजानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के भूमिहार ब्राह्मण किसान परिवार मे हुआ था। भूमिहार ब्राह्मणों से जुड़ जाने के कारण उनकी आरम्भिक राजनैतिक गतिविधियाँ अधिकतर बिहार तथा उत्तर प्रदेश में केन्द्रित थीं और अखिल भारतीय किसान सभा के निर्माण के बाद पूरे भारत में फैलीं। उन्होंने पटना के निकट बिहटा में एक आश्रम बनाया था जहाँ से अपने जीवन के उत्तरार्ध के सारे काम संचालित करते थे।
(यह लेख राजगुरु मठ काशी के पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अनंतानंद सरस्वती जी महाराज के द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है।)