डॉ. रूबी खान
केन्द्र सरकार की ओर से जारी इस बार के केन्द्रीय बजट को अल्पसंख्यक समुदाय के लिए बेहद खास माना जा रहा है। मसलन, केंद्रीय बजट 2025 में भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के उत्थान के लिए बहुत जरूरी कदम उठाए गए हैं। इसमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को कुल 3,350 करोड़ यूरो का आवंटन प्राप्त हुआ है। यह पिछले वित्तीय वर्ष के बजटीय अनुमान से 166 करोड़ यूरो अधिक है और 2024-25 के संशोधित अनुमान से 1,481 करोड़ यूरो अधिक बताया गया है। बजटीय आवंटन में वृद्धि अल्पसंख्यक समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के प्रति सरकार की मान्यता तथा शिक्षा, विकास योजनाओं और लक्षित कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से उनका समाधान करने के प्रयास का संकेत है।
आबंटित बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए निर्धारित किया गया है, जिसके लिए 678.03 करोड़ यूरो निर्धारित किए गए हैं। शिक्षा को लंबे समय से सामाजिक गतिशीलता के लिए एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता रहा है और इस प्रावधान का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक अवसरों तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करना है। इसके अतिरिक्त, मंत्रालय के अंतर्गत प्रमुख योजनाओं और परियोजनाओं के लिए 1,237.32 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिससे मौजूदा कल्याणकारी कार्यक्रमों की निरंतरता और विस्तार सुनिश्चित होगा।
हालिया बजट में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए व्यापक कार्यक्रम के लिए 1,913.98 करोड़ यूरो की पर्याप्त धनराशि आवंटित की गई है, जिसमें कौशल विकास, बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक समावेशन पर केंद्रित कई कार्यक्रम शामिल हैं। यद्यपि आवंटन में वृद्धि सही दिशा में उठाया गया कदम है, फिर भी मुख्य प्रश्न यह है कि इन निधियों का उपयोग कितने प्रभावी ढंग से किया जाएगा? अनेक योजनाएं, विशेषकर शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण पर केन्द्रित योजनाएं, नौकरशाही का दबाव से जूझ रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप धनराशि का कम उपयोग होता देखा गया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस वर्ष के बढ़े हुए आवंटन से उन लोगों को वास्तविक और सुलभ लाभ मिले, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। यही नहीं इसके लिए लालफीताशाही और अनावश्यक नौकरशाही विलंब को कम करना होगा।
अल्पसंख्यक कल्याण के मामले में जिन प्रमुख क्षेत्रों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, उनमें से एक है मदरसों का आधुनिकीकरण तथा यह सुनिश्चित करना कि उनमें धार्मिक अध्ययन के साथ-साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा भी शामिल हो। बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्र, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं वे मदरसों में अध्ययन करते हैं लेकिन इनमें से कई संस्थानों में आधुनिक पाठ्यक्रम और कौशल विकास कार्यक्रमों की कोई व्यवस्था ही नहीं है। मदरसों में एसटीईएम शिक्षा, डिजिटल साक्षरता और तकनीकी प्रशिक्षण के लिए धन आवंटित करने से मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं, दोनों को समकालीन नौकरी बाजार की प्रतिस्पर्धा में लाभ मिलेगा। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर वे खद भी आवश्यक कौशल से लैस हो सकते हैं। इससे न केवल उनकी रोजगार क्षमता बढ़ेगी, बल्कि शैक्षणिक और आर्थिक अंतर को पाटने में भी मदद मिलेगी। इससे समुदाय की प्रगति में सफलता प्राप्त की जा सकती है। सार्थक सशक्तिकरण के लिए, बजट आंकड़ों से आगे भी ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। कार्यान्वयन तंत्र पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि धनराशि नौकरशाही बाधाओं के बिना जमीनी स्तर तक पहुंचे। अल्पसंख्यकों, विशेषकर महिलाओं की स्कूल छोड़ने की दर, उच्च शिक्षा में भागीदारी और रोजगार की क्षमता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
सामुदायिक भागीदारी और सुदृढ़ निगरानी के बिना इन योजनाओं की प्रभावशीलता संदिग्ध बनी रहेगी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए बढ़ा हुआ बजट आवंटन एक आशाजनक विकास है, जो अल्पसंख्यक समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों की स्वीकृति को दर्शाता है। हालाँकि, केवल आवंटन ही पर्याप्त नहीं है- इसका प्रभावी उपयोग और कार्यान्वयन भी प्राथमिक ध्यान का क्षेत्र होना चाहिए। वर्तमान सरकार लालफीताशाही और नौकरशाही विलंब को कम करने के लिए जानी जाती है। पहुंच, पारदर्शिता सुनिश्चित करना तथा निधि वितरण में आसानी सुनिश्चित करना, भारत में अल्पसंख्यक विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की वास्तविक परीक्षा होगी। वैसे अल्पसंख्यक मंत्रालय को अधिक पैसे का आवंटन यह साबित करता है कि भारत की वर्तमान सरकार अल्पसंख्यकों के प्रति सकारात्मक है और उनके सर्वांगिण विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
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