राजेश कुमार पासी
आज वक्फ बोर्ड कानून सुर्खियों में है. इसका कारण है कि मोदी सरकार इस कानून में बदलाव लेकर आई है। मोदी सरकार वक्फ बोर्ड कानून में 40 बदलाव करना चाहती है और इसके लिए संशोधन बिल लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया गया है। लोकसभा ने इसे विचार-विमर्श हेतु जेपीसी को भेज दिया है। सरकार की कोशिश है कि संसद के शीतकालीन सत्र में जेपीसी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दे ताकि इस पर कानून बनाया जा सके। वक्फ बोर्ड पहले सुर्खियों में था क्योंकि मीडिया में यह खबरें चल रही थी कि देश में वक्फ के पास रक्षा और रेलवे मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। इस जमीन को लेकर कुछ जगहों से भ्रष्टाचार और कब्जों की खबर आ रही थी। इस समय वक्फ के पास लगभग साढ़े आठ लाख संपत्तियां हैं, जिसमें लगभग आठ लाख एकड़ भूमि आती है।
वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 के कारण भी वक्फ बोर्ड सुर्खियों में है। सेक्शन 40 बोर्ड को रिजन टू बिलीव की शक्ति देता है। अगर बोर्ड को लगता है कि कोई सम्पत्ति वक्फ की संपत्ति की है तो वो खुद ही जांच करके उस संपत्ति पर दावा पेश कर सकता है। अगर उस संपत्ति में कोई पहले से रह रहा है तो वह वक्फ ट्रिब्यूनल के पास अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकता है। ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है लेकिन यह प्रक्रिया बहुत जटिल है। वास्तव में जब वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा पेश कर देता है तो जमीन मालिक को ही साबित करना होता है कि जमीन उसकी है। सच्चाई यह है कि जब वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर दावा पेश कर देता है तो वो जमीन बोर्ड की ही हो जाती है।
वास्तविक मालिक खाली हाथ मलता रह जाता है। इस कानून के कारण ही 1995 के बाद बोर्ड की जमीन लगभग दोगुनी हो गई है। इसी कानून के कारण ही पिछले सिर्फ दस साल में वक्फ बोर्ड ने मनमानी करके अपनी जमीन में तीस प्रतिशत की वृद्धि कर ली है। वक्फ बोर्ड के पास जमीन दान से आती है लेकिन इस कानून का सहारा लेकर बोर्ड जमीनों पर कब्जा करने लगा है। जिन लोगों की जमीन है वो वक्फ बोर्ड, वक्फ ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट में धक्के खा रहे हैं।
वक्फ बोर्ड बहुत मुस्लिम देशों में है लेकिन ऐसा कानून किसी मुस्लिम देश में भी नहीं है। वास्तव में वक्फ बोर्ड सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का काम करता है, उसका यह काम नहीं है कि वो लोगों की जमीनों पर कब्जा करे। वक्फ के पास जमीन दान से आती है न कि कब्जे करके। 1995 से पहले वक्फ के पास सिर्फ जमीनों के प्रबंधन का काम था लेकिन नरसिंह राव की सरकार ने बाबरी ढांचा टूटने से मुस्लिम समाज में कांग्रेस के प्रति पैदा हुई नफरत को दूर करने के लिए वक्फ बोर्ड को कुछ असीमित अधिकार दे दिए। इसके बाद 2013 में यूपीए सरकार ने इन अधिकारों में और वृद्धि कर दी। कितनी अजीब बात है कि एक आदमी पूरे जीवन में मेहनत करके कमाये पैसे से जमीन खरीदे और अचानक वक्फ आये और अपनी जमीन बताकर छीन ले और वो बेचारा रोता रहे लेकिन उसकी कहीं सुनवाई न हो। यही कारण है कि वर्तमान मोदी सरकार वक्फ की ऐसी असीमित शक्तियों को कम करने के लिए कानून में संशोधन प्रस्ताव लाई है लेकिन विपक्ष अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण इसका विरोध कर रहा है।
वक्फ का मतलब ही होता है, दान, इसका मतलब है कि दान में मिली भूमि ही वक्फ कहलाती है लेकिन जबरन किसी की भूमि कब्जा करना भारत में वक्फ बन गया है। दूसरी बात यह है कि वक्फ की जमीन का इस्तेमाल कब्रिस्तान, मस्जिद, शैक्षणिक संस्थान, धर्मशाला और गरीबों के फायदे के लिए किया जा सकता है। विडम्बना यह है कि भारत में वक्फ के पास आठ लाख एकड़ जमीन है लेकिन इन कामों के लिए मुस्लिम समाज जमीन सरकार से मांगता रहता है। इतनी जमीन होने के बावजूद मस्जिद, मदरसे और गरीब मुसलमानों के आवास सरकारी जमीनों पर कब्जा करके बनाए जा रहे हैं। जो वक्फ की सम्पत्तियां है, उनका गलत इस्तेमाल हो रहा है। सच्चर आयोग ने कहा था कि इन जमीनों का इस्तेमाल गरीब मुसलमानों के लिए होना चाहिए क्योंकि गरीब मुसलमान बेहद तंगहाली में गुजारा कर रहे हैं।
सच्चर आयोग की इस बात का हल्ला मचाया जाता है कि उसने मुस्लिमों की हालत दलितों से भी बदतर बताई थी जबकि वो पूरा सच नहीं है। वास्तविकता यही है कि इतनी सम्पत्ति होने के बावजूद गरीब मुसलमान के लिए वक्फ कुछ नहीं करता है। दलितों के पास कोई जमीन नहीं है जबकि मुस्लिम समाज के पास तो आठ लाख एकड़ जमीन है। इसलिए सच्चर आयोग ने कहा था कि इतनी जमीन होने के बावजूद मुस्लिम समाज पिछड़ा हुआ है। इसलिए उसने मुस्लिमों को दलितों से पिछड़ा हुआ बताया था। जब सच्चर आयोग की सिफारिश के अनुसार मोदी सरकार बदलाव ला रही है तो विरोध किया जा रहा है।
सबसे पहले 1913 में वक्फ कानून लाया गया था, फिर उसमें 1923 में संशोधन हुआ। भारत सरकार ने 1954 में वक्फ कानून बनाया और इस कानून के अन्तर्गत 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल बनी। वक्फ बोर्ड अकेला नहीं है बल्कि देश में लगभग 30 वक्फ बोर्ड हैं और सेंट्रल वक्फ काउंसिल इनके ऊपर एक केन्द्रीय संस्था है। 1995 तक वक्फ बोर्ड सिर्फ वक्फ संपत्तियों की देखभाल करता था लेकिन 1995 में कांग्रेस सरकार ने इसे जमीनों पर दावा करने का अधिकार दे दिया। ऐसा अधिकार दुनिया में किसी भी देश के वक्फ बोर्ड के पास नहीं है।
वक्फ बोर्ड को सिर्फ दान से ही जमीन मिलती है, वो किसी की जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण कांग्रेस सरकार ने यह अधिकार वक्फ बोर्ड को दे दिया और 2013 में इसमें और इजाफा कर दिया। कमाल की बात यह है कि वक्फ के पास इतनी सम्पत्तियां होने के बावजूद ये सरकार से पैसा लेकर अपना खर्च चला रहा है। इतना अमीर होने के बाद भी मदरसे सरकारी खर्च पर चल रहे हैं। इस्लाम में वक्फ सम्पत्ति का इस्तेमाल गरीब मुस्लिमों के लिए करने का आदेश है लेकिन भारत में वक्फ की संपत्ति का इस्तेमाल रसूखदार मुस्लिम ही कर रहे हैं। कुछ मुस्लिम विद्वान कहते हैं कि वक्फ बोर्ड में जबरदस्त घोटाले चल रहे हैं और इन संपत्तियों की कमाई कुछ लोगों की जेब में जा रही है। जिसको वास्तव में फायदा होना चाहिए था, वो खाली हाथ है।
दूसरी बात यह है कि विपक्ष वक्फ कानून में संशोधन को संविधान के खिलाफ बता रहा है और धार्मिक आजादी का उल्ल्घंन भी बता रहा है। पहली बात तो यह है कि वक्फ संविधान के अन्तर्गत नहीं बनाया गया है। वक्फ को जो अधिकार 1995 और 2013 में दिये गये हैं, उनका संविधान से कोई लेना देना नहीं है। संविधान ऐसी किसी संस्था के निर्माण की बात ही नहीं करता है जिस पर संविधान ही लागू न हो। संविधान विवाद होने पर अदालत जाने का अधिकार देता है लेकिन यह अधिकार वक्फ बोर्ड कानून में छीन लिया गया है। जहां तक धार्मिक आजादी की बात है तो वक्फ का मुस्लिम समाज की धार्मिक आजादी से कोई मतलब नहीं है।
यह अधिकार किसी संस्था को कैसे दिया जा सकता है कि उसे जो जमीन अपनी लगे, वो जाकर कब्जा कर ले, ये तो तानाशाही में भी नहीं होता है। कितनी अजीब बात है कि 1500 साल पुराना मंदिर वक्फ की संपत्ति बन जाता है जबकि इस्लाम तो 1400 साल पहले आया था। यह कैसे हो सकता है कि जो धर्म 1400 साल पहले पैदा हुआ, उसकी जमीन पर 1500 साल पहले मंदिर बना दिया गया। दूसरी बात सिर्फ मंदिर ही नहीं बल्कि उसके आसपास के कई गांव भी वक्फ की संपत्ति हो गए।
वक्फ को वही काम करना चाहिए जो वो अन्य देशों में करता है। 1995 से पहले भारत में भी वक्फ वही काम करता था। वक्फ का काम है, वो वक्फ की संपत्तियों की देखभाल करें और ऐसे करे कि उससे मुस्लिम समाज का भला हो। गरीब मुसलमानों को मदद मिले, उनके लिए आवास बनाए जाएं, स्कूल खोले जाएं। वक्फ इसके विपरीत अपनी जमीनों से गरीब मुसलमानों को भी भगा देता है लेकिन रसूखदार मुसलमानों को फायदा पहुंचा रहा है। इसका विरोध मुस्लिम समाज में भी हो रहा है लेकिन रसूखदार मुसलमानों के कारण कोई मुस्लिम बोल नहीं पाता है। मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति भी यही है कि ऐसे लोगों को फायदा पहुंचाया जाये जिनकी मुस्लिम समाज पर पकड़ हो ताकि वो लोग राजनीतिक दलों को मुस्लिम समाज के वोट दिला सकें। सरकार संशोधन लेकर आई है कि जिस सम्पत्ति पर वक्फ दावा करेगा, उसकी जांच पड़ताल की जायेगी कि जमीन का वास्तविक मालिक कौन है, इसके बाद ही वो जमीन वक्फ बोर्ड को दी जायेगी।
वास्तव में सरकार वक्फ की मनमानी पर लगाम लगाना चाहती है और उसे संविधान के अनुसार चलाना चाहती है क्योंकि वक्फ बोर्ड को संविधान से भी ऊपर की संस्था बना दिया गया है । मुस्लिम समाज और सेकुलर-लिबरल गैंग इस कानून में बदलाव का विरोध कर रहा है क्योंकि उसकी समस्या यह कानून नहीं है बल्कि मोदी सरकार है। इन लोगों को मोदी सरकार पर भरोसा नहीं है और इन्हें मोदी सरकार की नीयत में खोट दिखाई देता है। ये लोग कानून में क्या बदलाव किये जा रहे हैं, उस पर बात ही नहीं करना चाहते। ये लोग सिर्फ इस बात का शोर मचा रहे हैं कि मोदी सरकार मुस्लिमों पर जुल्म कर रही है, उनके अधिकार छीन रही है।
वास्तव में वो जानते हैं कि कानून में भारी खामियां हैं और उन्हें ठीक करना जरूरी है। वोट बैंक की राजनीति के कारण इस कानून में बदलाव का विरोध हो रहा है। अगर सच में मोदी सरकार कानून में गलत बदलाव कर रही होती तो वो कभी भी बिल को जेपीसी के पास नहीं भेजती। अगर कानून में बदलाव गलत है तो विपक्ष अपनी बात जेपीसी के सामने रख सकता है। देश के मुस्लिम संगठन भी जेपीसी के पास जा सकते हैं और अपनी बात रख सकते हैं। शायद इसलिए मोदी सरकार ने बिल को जेपीसी के पास भेजा है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)