मजदूरों का त्योहार मई दिवस आठ घण्टे काम के दिन के लिए मजदूरों के शानदार आन्दोलन से पैदा हुआ। उसके पहले मजदूर चैदह से लेकर सोलह-अठारह घण्टे तक खटते थे। कई देशों में काम के घण्टों का कोई नियम ही नहीं था। ”सूरज उगने से लेकर रात होने तक” मजदूर कारखानों में काम करते थे। दुनियाभर में अलग-अलग जगह इस माँग को लेकर आन्दोलन होते रहे थे। भारत में भी 1862 में ही मजदूरों ने इस माँग को लेकर कामबन्दी की थी। लेकिन पहली बार बड़े पैमाने पर इसकी शुरुआत अमेरिका में हुई।
अमेरिका में एक विशाल मजदूर वर्ग पैदा हुआ था। इन मजदूरों ने अपने बलिष्ठ हाथों से अमेरिका के बड़े-बड़े शहर बसाये, सड़कों और रेल पटरियों का जाल बिछाया, नदियों को बाँधा, गगनचुम्बी इमारतें खड़ी कीं और पूँजीपतियों के लिए दुनिया भर के ऐशो-आराम के साधन जुटाये। उस समय अमेरिका में मजदूरों को 12 से 18 घण्टे तक खटाया जाता था। बच्चों और महिलाओं का 18 घण्टों तक काम करना आम बात थी। अधिकांश मजदूर अपने जीवन के 40 साल भी पूरे नहीं कर पाते थे। अगर मजदूर इसके खलिाफ आवाज उठाते थे तो उन पर निजी गुण्डों, पुलिस और सेना से हमले करवाये जाते थे! लेकिन इन सबसे अमेरिका के जाँबाज मजदूर दबने वाले नहीं थे! उनके जीवन और मृत्यु में वैसे भी कोई फर्क नहीं था, इसलिए उन्होंने लड़ने का फैसला किया! 1877 से 1886 तक मजदूरों ने अमेरिका भर में आठ घण्टे के कार्यदिवस की माँग पर एकजुट और संगठित होने शुरू किया। 1886 में पूरे अमेरिका में मजदूरों ने ‘आठ घण्टा समितियाँ’ बनायीं। शिकागो में मजदूरों का आन्दोलन सबसे अधिक ताकतवर था। वहाँ पर मजदूरों के संगठनों ने तय किया कि 1 मई के दिन सभी मजदूर अपने औजार रखकर सड़कों पर उतरेंगे और आठ घण्टे के कार्यदिवस का नारा बुलन्द करेंगे।
एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11,000 फैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हजार मजदूर शामिल थे। शिकागो महानगर के आसपास सारा रेल यातायात ठप्प हो गया और शिकागो के ज्यादातर कारखाने और वर्कशाप बन्द हो गये। शहर के मुख्य मार्ग मिशिगन एवेन्यू पर अल्बर्ट पार्सन्स के नेतृत्व में मजदूरों ने एक शानदार जुलूस निकाला।
मजदूरों की बढ़ती ताकत और उनके नेताओं के अडिग संकल्प से भयभीत उद्योगपति लगातार उन पर हमला करने की घात में थे। सारे के सारे अखबार (जिनके मालिक पूँजीपति थे।) ”लाल खतरे” के बारे में चिल्ल-पों मचा रहे थे। पूँजीपतियों ने आसपास से भी पुलिस के सिपाही और सुरक्षाकर्मियों को बुला रखा था। इसके अलावा कुख्यात पिंकरटन एजेंसी के गुण्डों को भी हथियारों से लैस करके मजदूरों पर हमला करने के लिए तैयार रखा गया था। पूँजीपतियों ने इसे ”आपात स्थिति” घोषित कर दिया था। शहर के तमाम धन्नासेठों और व्यापारियों की बैठक लगातार चल रही थी जिसमें इस ”खतरनाक स्थिति” से निपटने पर विचार किया जा रहा था।
3 मई को शहर के हालात बहुत तनावपूर्ण हो गये जब मैकार्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कम्पनी के मजदूरों ने दो महीने से चल रहे लॉक आउट के विरोध में और आठ घण्टे काम के दिन के समर्थन में कार्रवाई शुरू कर दी। जब हड़ताली मजदूरों ने पुलिस पहरे में हड़ताल तोड़ने के लिए लाये गये तीन सौ गद्दार मजदूरों के खलिाफ मीटिंग शुरू की तो निहत्थे मजदूरों पर गोलियाँ चलायी गयीं। चार मजदूर मारे गये और बहुत से घायल हुए। अगले दिन भी मजदूर ग्रुपों पर हमले जारी रहे। इस बर्बर पुलिस दमन के खलिाफ चार मई की शाम को शहर के मुख्य बाजार हे मार्केट स्क्वायर में एक जनसभा रखी गयी। इसके लिए शहर के मेयर से इजाजत भी ले ली गयी थी।
मीटिंग रात आठ बजे शुरू हुई। करीब तीन हजार लोगों के बीच पार्सन्स और स्पाइस ने मजदूरों का आह्वान किया कि वे एकजुट और संगठित रहकर पुलिस दमन का मुकाबला करें। तीसरे वक्ता सैमुअल फील्डेन बोलने के लिए जब खड़े हुए तो रात के दस बज रहे थे और जोरों की बारिश शुरू हो गयी थी। इस समय तक स्पाइस और पार्सन्स अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ वहाँ से जा चुके थे। इस समय तक भीड़ बहुत कम हो चुकी थी कृ कुछ सौ लोग ही रह गये थे। मीटिंग करीब-करीब खत्म हो चुकी थी कि 180 पुलिसवालों का एक जत्था धड़धड़ाते हुए हे मार्केट चैक में आ पहुँचा। उसकी अगुवाई कैप्टन बॉनफील्ड कर रहा था जिससे शिकागो के नागरिक उसके क्रूर और बेहूदे स्वभाव के कारण नफरत करते थे। मीटिंग में शामिल लोगों को चले जाने का हुक्म दिया गया। सैमुअल फील्डेन पुलिसवालों को यह बताने की कोशिश ही कर रहे थे कि यह शान्तिपूर्ण सभा है, कि इसी बीच किसी ने मानो इशारा पाकर एक बम फेंक दिया। आज तक बम फेंकने वाले का पता नहीं चल पाया है। यह माना जाता है कि बम फेंकने वाला पुलिस का भाड़े का टट्टू था। स्पष्ट था कि बम का निशाना मजदूर थे लेकिन पुलिस चारों और फैल गयी थी और नतीजतन बम का प्रहार पुलिसवालों पर हुआ। एक मारा गया और पाँच घायल हुए। पगलाये पुलिसवालों ने चैक को चारों ओर से घेरकर भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। जिसने भी भागने की कोशिश की उस पर गोलियाँ और लाठियाँ बरसायी गयीं। छरू मजदूर मारे गये और 200 से ज्यादा जख्मी हुए। मजदूरों ने अपने खून से अपने कपड़े रँगकर उन्हें ही झण्डा बना लिया।
इस घटना के बाद पूरे शिकागो में पुलिस ने मजदूर बस्तियों, मजदूर संगठनों के दफ्तरों, छापाखानों आदि में जबरदस्त छापे डाले। प्रमाण जुटाने के लिए हर चीज उलट-फलट डाली गयी। सैकड़ों लोगों को मामूली शक पर पीटा गया और बुरी तरह टॉर्चर किया गया। हजारों गिरफ्तार किये गये। आठ मजदूर नेताओं कृ अल्बर्ट पार्सन्स, आगस्ट स्पाइस, जार्ज एंजेल, एडाल्फ फिशर, सैमुअल फील्डेन, माइकेल श्वाब, लुइस लिंग्ग और आस्कर नीबे कृ पर झूठा मुकदमा चलाकर उन्हें हत्या का मुजरिम करार दिया गया। इनमें से सिर्फ एक, सैमुअल फील्डेन बम फटने के समय घटनास्थल पर मौजूद था। जब मुकदमा शुरू हुआ तो सात लोग ही कठघरे में थे। डेढ़ महीने तक अल्बर्ट पार्सन्स पुलिस से बचता रहा। वह पुलिस की पकड़ में आने से बच सकता था लेकिन उसकी आत्मा ने यह गवारा नहीं किया कि वह आजाद रहे जबकि उसके बेकसूर साथी फर्जी मुकदमें में फँसाये जा रहे हों। पार्सन्स खुद अदालत में आया और जज से कहा, ”मैं अपने बेकसूर साथियों के साथ कठघरे में खड़ा होने आया हूँ।”
पूँजीवादी न्याय के लम्बे नाटक के बाद 20 अगस्त 1887 को शिकागो की अदालत ने अपना फैसला दिया। सात लोगों को सजा-ए-मौत और एक (नीबे) को पन्द्रह साल कैद बामशक्कत की सजा दी गयी। स्पाइस ने अदालत में चिल्लाकर कहा था कि ”अगर तुम सोचते हो कि हमें फाँसी पर लटकाकर तुम मजदूर आन्दोलन को३ गरीबी और बदहाली में कमरतोड़ मेहनत करनेवाले लाखों लोगों के आन्दोलन को कुचल डालोगे, अगर यही तुम्हारी राय है, तो खुशी से हमें फाँसी दे दो। लेकिन याद रखो३ आज तुम एक चिंगारी को कुचल रहे हो लेकिन यहाँ-वहाँ, तुम्हारे पीछे, तुम्हारे सामने, हर ओर लपटें भड़क उठेंगी। यह जंगल की आग है। तुम इसे कभी भी बुझा नहीं पाओगे।”
सारे अमेरिका और तमाम दूसरे देशों में इस क्रूर फैसले के खलिाफ भड़क उठे जनता के गुस्से के दबाव में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो अपील मानने से इन्कार कर दिया लेकिन बाद में इलिनाय प्रान्त के गर्वनर ने फील्डेन और श्वाब की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 10 नवम्बर 1887 को सबसे कम उम्र के नेता लुइस लिंग्ग ने कालकोठरी में आत्महत्या कर ली।
11 नवम्बर 1887 मजदूर वर्ग के इतिहास में काला शुक्रवार था। पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल और फिशर को शिकागो की कुक काउण्टी जेल में फाँसी दे दी गयी। अफसरों ने मजदूर नेताओं की मौत का तमाशा देखने के लिए शिकागो के दो सौ धनवान शहरियों को बुला रखा था। लेकिन मजदूरों को डर से काँपते-घिघियाते देखने की उनकी तमन्ना धरी की धरी रह गयी। वहाँ मौजूद एक पत्रकार ने बाद में लिखा रू ”चारों मजदूर नेता क्रान्तिकारी गीत गाते हुए फाँसी के तख्ते तक पहुँचे और शान के साथ अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो हुए। फाँसी के फन्दे उनके गलों में डाल दिये गये। स्पाइस का फन्दा ज्यादा सख्त था, फिशर ने जब उसे ठीक किया तो स्पाइस ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। फिर स्पाइस ने चीखकर कहा, ‘एक समय आयेगा जब हमारी खामोशी उन आवाजों से ज्यादा ताकतवर होगी जिन्हें तुम आज दबा डाल रहे हो फिर पार्सन्स ने बोलना शुरू किया, ‘मेरी बात सुनो अमेरिका के लोगो! मेरी बात सुनो जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकेगा’ लेकिन इसी समय तख्ता खींच लिया गया।
13 नवम्बर को चारों मजदूर नेताओं की शवयात्रा शिकागो के मजदूरों की एक विशाल रैली में बदल गयी। पाँच लाख से भी ज्यादा लोग इन नायकों को आखिरी सलाम देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े। तब से गुजरे 126 सालों में अनगिनत संघर्षों में बहा करोड़ों मजदूरों का खून इतनी आसानी से धरती में जज्ब नहीं होगा। फाँसी के तख्ते से गूँजती स्पाइस की पुकार पूँजीपतियों के दिलों में खौफ पैदा करती रहेगी। अनगिनत मजदूरों के खून की आभा से चमकता लाल झण्डा हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
(मजदूर बिगुल के मई 2012 अंक से सभार)