आइए नागरिकता संशोधन अधिनियम को सरलता के साथ समझते हैं

आइए नागरिकता संशोधन अधिनियम को सरलता के साथ समझते हैं

यह संशोधन नागरिकता अधिनियमए 1955 की धारा 2ए उप.धारा य1द्धए खंड यबीद्ध में प्रावधान जोड़ता है और प्रावधान में कहा गया है कि ष्बशर्ते कि अफगानिस्तानए बांग्लादेश व पाकिस्तान से हिंदूए सिखए बौद्धए जैनए पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्तिए जिसने 31 दिसंबरए 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया हो और जिसे केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट यभारत में प्रवेशद्ध अधिनियमए 1920 की धारा 3 की उप.धारा य2द्ध के खंड यसीद्ध द्वारा या उसके तहत या विदेशी अधिनियमए 1946 के प्रावधानों को लागू करने या उसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश से छूट दी गई हो को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अवैध प्रवासी के रूप में नहीं माना जाएगा।

इसके अलावाए नागरिकता अधिनियमए 1955 में नई धारा 6बी जोड़ी गई हैए जिसमें कहा गया है कि नागरिकता यसंशोधनद्ध अधिनियमए 2019 के शुरू होने की तारीख से इस धारा के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में लंबित कोई भी कार्यवाही उसे नागरिकता प्रदान करने पर समाप्त हो जाएगी। बशर्ते कि ऐसा व्यक्ति इस धारा के तहत नागरिकता प्राप्त करने हेतु आवेदन करने के लिए इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा कि उसके खिलाफ कार्यवाही लंबित है और यदि वह अन्य तरीके से इस धारा के तहत नागरिकता देने के लिए योग्य पाया जाता है तो केंद्र सरकार या इस संबंध में उसके द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण इस आधार पर उसके आवेदन को अस्वीकार नहीं करेगा।

इसके अलावाए प्रावधान में जोड़ा गया है कि जो इस धारा के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करता हैए वह अपने अधिकारों और विशेषाधिकारों से वंचित नहीं होगाए जिसके लिए वह ऐसा आवेदन करने पर अपना आवेदन प्राप्त करने की तारीख से हकदार था।

धारा 6वीं युद्ध में कहा गया है कि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असमए मेघालयए मणिपुरए मिजोरम व त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों और बंगाल पूर्वी सीमा विनियमनए 1873 के तहत अधिसूचित ष्आंतरिक रेखाष् के तहत आने वाले क्षेत्रों पर यह धारा लागू नहीं होगी।

इस नागरिकता संशोधन अधिनियमए 2019 का उद्देश्य उन अल्पसंख्यकों को लाभ पहुँचाना है जो भारत के विभाजन के बाद धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए हैं क्योंकि नए राष्ट्र पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामी राज्य घोषित किया है। इसके अलावाए इस अधिनियम का उद्देश्य पासपोर्ट यभारत में प्रवेशद्ध अधिनियमए 1920 के तहत या विदेशी अधिनियमए 1946 के प्रावधानों के आवेदन में छूट प्रदान करना या नागरिकता अधिनियमए 1955 में उन धार्मिक अल्पसंख्यकों को शामिल करना है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तानए बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए थे। इस अधिनियम में मुसलमान शामिल नहीं हैं क्योंकि इस्लामी गणराज्य पाकिस्तानए बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमानों पर अत्याचार नहीं किया जाता है। यह अधिनियम उन गैर.मुसलमानों के अधिकार को मान्यता देता है जो इन तीन मुस्लिम बहुल देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए थे।

अबए भारत के संविधान में नागरिकता के संबंध में कानून के प्रावधान को समझें। भारत के संविधान का भाग दो और अनुच्छेद.5 से 11 नागरिकता से संबंधित है। अनुच्छेद 5 उन लोगों को संविधान की शुरुआत में नागरिकता प्रदान करता है जिनका भारत के क्षेत्र में अधिवास था। अनुच्छेद 6 उन कुछ व्यक्तियों को नागरिकता का अधिकार देता है जो 19 जुलाई 1948 से पहले पाकिस्तान से भारत आ गए हैं।

फिर, एक वैध सवाल उठता है कि उन पीड़ितों के बारे में जिन्होंने विभाजन के उपरांत पाकिस्तान में रहने का विकल्प चुना व जब पाकिस्तान एक इस्लामी राज्य बन गया तो इसने अल्पसंख्यकों का धार्मिक उत्पीड़न शुरू कर दिया। जब पाकिस्तान में उन अल्पसंख्यकों के लिए स्थिति असहनीय हो गई तो उन्होंने भारत की ओर पलायन करना शुरू कर दिया क्योंकि यह देश उनकी अंतिम आशा थी क्योंकि वे सभी अविभाजित भारत के नागरिक थे। तोए उन लोगों की नागरिकता के बारे में क्या जो 1950 में पाकिस्तान से भारत आए थे या 1971 में बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न के शिकार के रूप में आए थेघ्

अनुच्छेद.11 कहता है कि संसद कानून द्वारा नागरिकता के अधिकार को विनियमित कर सकती है लेकिन भारत सरकार को नागरिकता देने के लिए इस कानून को पारित करने में इतने साल लग गए और अंत में यह नागरिकता संशोधन अधिनियमए 2019 के माध्यम से किया जा रहा है। इसलिएए नागरिकता संविधान के भाग.3 का विषय नहीं हैए बल्कि यह भाग.2 का विषय है और संसद के पास नागरिकता कानूनों को विनियमित करने की शक्ति हैए इसलिए यह न्यायसंगत और उचित है। अनुच्छेद.246 के अलावाए 7वीं अनुसूची के तहत संघ सूचीए प्रविष्टि.17 केंद्र सरकार को नागरिकता के संबंध में कानून बनाने की शक्ति के लिए विशेष अधिकार देती है। जहाँ तक अनुच्छेद.14 का संबंध हैए यह कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण के बारे में बात करता है और अनुच्छेद.14 के तहत निर्धारित तीन परीक्षणों का इस अधिनियम द्वारा उल्लंघन नहीं किया गया है। सीण् एण् एण् का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की धार्मिक उत्पीड़न से रक्षा करना है। इसलिएए उचित वर्गीकरण विवेकपूर्ण अंतर के आधार पर किया जाता है जो न्यायसंगत और उचित है।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एक अलग कवायद होगी और हम यह नहीं कह सकते कि इसे कैसे लागू किया जाएगा क्योंकि यह वर्तमान परिदृश्य में भविष्य और राज्य की नीति का सवाल है न कि कानून का। और सीण् एण् एण् का एनण् आरण् सीण् से कोई लेना.देना नहीं है क्योंकि दोनों कानूनों का उद्देश्य अलग.अलग है। एनण् आरण् सीण् का असम मॉडल पूरे भारत में लागू नहीं होगा क्योंकि असम समझौताए 1985 ने केंद्र पर कुछ बाध्यकारी दायित्व निर्धारित किए थे। हालाँकिए यह अखिल भारतीय एनण् आरण् सीण् के लिए एक मिसाल नहीं होगी। इसलिएए मुसलमानों के लिए चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है और हमें किसी भी साजिश या प्रचार का शिकार होने से बचना चाहिए। इसलिए समय की मांग है कि हम सीण् एण् एण् की सच्चाई को जानेंए जो कठिन हैए जबकि एनण् आरण् सीण् का प्रचार सस्ता है।

लेखक सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं। आलेख में प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »