सिख सैनिकों के लिए हेलमेट की अनिवार्यता को सकारात्मक तरीके से देखें

सिख सैनिकों के लिए हेलमेट की अनिवार्यता को सकारात्मक तरीके से देखें

सरदार सतनाम सिंह

अभी हाल ही में केन्द्रीय रक्षा मंत्रालय के एक निर्णय ने अति संवेदनशील माने जाने वाले सिख समुदाय के बीच एक भ्रम पैदा कर दिया है। हालांकि यह भ्रम निराधार है और इस भ्रम को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार और मंत्रालय की ओर से भरसक प्रयास हो रहा है लेकिन इस बीच कुछ समाचार माध्यमों ने नकारात्मक माहौल बना दिया है। उस पर समय रहते नकेल कसने की जरूरत है। साथ ही माहौल को सकारात्मक करना भी जरूरी है। विवाद की जड़, सिख सैनिकों की सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनने की अनिवार्य शर्त बताया जा रहा है। भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट, सिख लाइट इंफेंट्री और पंजाब रेजीमेंट में सिख सैनिकों की बड़ी संख्या है। सिखों को उनकी धार्मिक परंपरा को ध्यान में रखते हुए अब तक हेलमेट पहनने से छूट दी गई थी लेकिन अब सेना ने अन्य सैनिकों की तरह ही सिख सैनिकों को भी बेहतर सुरक्षा देने के लिए विशेष हेलमेट खरीदने का फैसला लिया है।

जानकारी के अनुसार सेना द्वारा सिख सैनिकों के लिए बैलिस्टिक हेलमेट खरीदने की एक निविदा आमंत्रित की गयी है। उस निविदा में बताया गया है कि सैनिकों के लिए 12,730 बैलिस्टिक हेलमेट की खरीद होनी है। इनमें से 8,911 बड़े आकार के होंगे, जबकि 3,819 अतिरिक्त बड़े आकार के होने चाहिए। निविदा की शर्त में यह भी बताया गया है कि चूंकि सिख सैनिक अपनी धार्मिक पहचान के लिए पगड़ी पहनते हैं इसलिए उसी के अनुरूप हेलमेट के केन्द्र में उभार होगा। विवाद का मूल विषय यही है। इस विवाद में अकाल तख्त और एसजीपीसी ने सरकार के इस निर्णय को सिख चिंतन और पंथ के विरुद्ध बताया है। सिखों की प्रतिनिधि संस्थाओं का कहना है कि पगड़ी सिखों को गुरुओं द्वारा दी गई विशिष्ट पहचान है। इस हेलमेट से हमारी पहचान समाप्त हो जाएगी।

इधर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, बादल गुट वाले शिरोमणि अकाली दल, सरदार सिमरजीत सिंह मान गुट वाले शिरोमणि अकाली दल अमृतसर, अकाल तख्त जैसी संस्थाओं के इतर सिखों में आधुनिक सोच रखने वाले चिंतकों ने इस विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि जिस समय हमारे गुरुओं ने सिखों को पगड़ी पहने की सलाह दी थी उस समय घातक हथियार नहीं थे लेकिन आज लड़ाई का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। इस मामले में कर्नल एचपी सिंह (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि हथियारों की मारक क्षमता बढ़ गयी है। आधुनिक घातक हथियारों से बचने के लिए हमारी पगड़ी नाकाफी है। इसलिए पगड़ी के साथ ही साथ हमारे सैनिकों के सिर की रक्षा के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य होना चाहिए। एक पगड़ी इतनी सुरक्षा नहीं दे सकती जितनी एक बुलेटप्रूफ हेलमेट दे सकता है। मेरा मानना है कि यह सिख सैनिकों के ड्रेस कोड का हिस्सा नहीं होगा। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में इतिहास के पूर्व प्रोफेसर डॉ. गुरदर्शन सिंह ढिल्लों ने कहा कि सिख सैनिकों की सुरक्षा के पहलू को ध्यान में रखा जाना चाहिए, फिर भी यदि सिख सिद्धांतों का कोई उल्लंघन होता है, तो उन्होंने अकाल तख्त और एसजीपीसी से आग्रह किया कि वे रक्षा विशेषज्ञों से इस पर चर्चा करें। उन्होंने एक अखबार को दिए एक साक्षात्कार में बताया है कि आधुनिक युग के युद्ध में, घातक हथियार हैं। हम सिख सैनिकों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते। बैलिस्टिक हेलमेट गोलियों के प्रवेश को रोकने के अलावा उनके परिचालन क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की स्थिति से सैनिकों की रक्षा करेगा। मुझे विश्वास है कि ये हेलमेट पगड़ी या केस (बाल) के लिए बाधक नहीं बनेंगे। फिर भी, अकाल तख्त और एसजीपीसी पूर्व सिख रक्षा कर्मियों के साथ इस पर चर्चा कर सकते हैं। कर्नल एचपी सिंह (सेवानिवृत्त), जिन्होंने 1977-2000 के बीच सेना में सेवा की, ने कहा कि हेलमेट केवल उन लोगों के लिए अनिवार्य होगा, जिन्हें परिचालन क्षेत्र में तैनात किया जाएगा जहां सुरक्षा के लिए इसकी आवश्यकता है। एक पगड़ी इतनी सुरक्षा नहीं दे सकती जितनी एक बुलेट प्रूफ हेलमेट दे सकता है। मेरा मानना है कि यह सभी सिख सैनिकों के ड्रेस कोड का हिस्सा नहीं होगा।

बता दें कि 9 जनवरी 2023 को सिख सैनिकों के लिए रक्षा मंत्रालय ने इमरजेंसी सामान के तौर पर 12,730 बैलिस्टिक हेलमेट खरीदने के लिए टेंडर प्रक्रिया जारी की है। ये स्पेशल हेलमेट एमकेयू कंपनी ने सिख सैनिकों के लिए बनाया है। रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय फास्ट ट्रैक मोड में सिख सैनिकों के लिए 12,730 ‘बैलिस्टिक हेलमेट’ खरीदने की योजना बना रहा है। मंत्रालय ने सिखों के लिए विशेष डिजाइन के इस हेलमेट के लिए टेंडर भी जारी कर दिया है। इनमें 8911 लार्ज साइज और 3819 एक्स्ट्रा लार्ज साइज के हेलमेट हैं। ये खबर सामने आते ही सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़ा हो गया है।

इस हेलमेट को बनाने वाली कंपनी एमकेयू का कहना है कि हेलमेट सिखों के धार्मिक मान्यता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसे सिख सैनिक अपने पगड़ी के ऊपर आसानी से पहन सकते हैं। इससे पहले सिख सैनिकों के पहनने के लिए अब तक कोई भी कंफर्टेबल हेलमेट नहीं था। इसे पहनकर जवान जंग भी लड़ सकते हैं। यह एंटी फंगल, एंटी एलर्जिक और बुलेट प्रूफ है। इसके अलावा वीर में मल्टी एक्सेसरी कनेक्टर सिस्टम यानी लगा है। इससे इमरजेंसी में जवान की लोकेशन आसानी ट्रेस हो जाएगी। ये हेलमेट हेड-माउंटेड सेंसर, कैमरा, टॉर्च, कम्युनिकेशन डिवाइस और नाइट विजन डिवाइस से लैस है।

सिख समुदाय के लिए हेलमेट के इस्तेमाल पर बहस कोई नई बात नहीं है। अक्टूबर 1914 में ब्रिटेन की ओर से 15 लुधियाना सिख प्लाटून जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए अग्रिम मोर्चे पर पहुंची थी। इस दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें हेलमेट पहनने का आदेश दिया। यह पहला मौका था, जब सिख सैनिकों ने हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया था। ब्रिटिश अफसरों के अलावा पंजाब के सिंह सभाओं के केंद्रीय संगठन चीफ खालसा दीवान ने भी उस दौरान सिख सैनिकों से हेलमेट पहनने की सिफारिश की थी। हालांकि, सिख सैनिकों ने यह बात नहीं मानी और सिर्फ पगड़ी पहनकर ही जंग लड़ी। ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह गठल बताते हैं कि ऐसी कुछ और घटनाएं भी हुई थीं। हालांकि तब तक ब्रिटिश सेना ने यह आदेश पारित कर दिया था कि सिख सैनिकों को हेलमेट पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद अंग्रेज लगातार सिख सैनिकों पर हेलमेट पहनने का दबाव बना रहे थे। अंग्रेज इस मुद्दे पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के नेतृत्व को भी मनाने में कामयाब हो गए थे। बावजूद इसके सिख सैनिकों ने हेलमेट नहीं पहना। इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945) पगड़ी में ही लड़ा। यानी एक बार फिर हेलमेट नहीं पहना।

भारत के अलवे औस्ट्रेलिया, सयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन आदि कई पश्चिमी देशों के सैन्य संगठनों में सिख सैनिक हैं। इसमें से ब्रिटेन, औस्ट्रेलिया और कैनाडा के सिख सैनिकों के ड्रेस कोड में पगड़ी के उपर से सुरक्षा हेलमेट पहनना शामिल है। हालांकि भारत एक धर्म प्रधान देश है। साथ ही इस देश का संविधान प्रत्येक पंथ, चिंतन, धर्म मा सम्मान करता है। इसलिए सिखों की मान्यताओं और परंपराओं का भी सम्मान होना चाहिए और सुरक्षा हेलमेट को लेकर सिख समुदाय में जो भ्रम पैदा हुआ है उसे समाप्त करने की पूरी कोशिश होनी चाहिए।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आलेख में व्यक्त इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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