राज सक्सेना
शीर्षक पढ़कर मुस्कुराइए नहीं। यह विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण की तीन विभिन्न स्थितियां हैं। अगर आपकी बच्ची 12-13 वर्ष से ऊपर की हो रही है और आपका बेटा 15-17 साल का हो चुका है तो आपको इन दोनों स्थितियों में उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वे अगर अस्वाभाविक रूप से दिन में कई बार कपड़े बदल रहे हैं तो सतर्क हो जाइए क्योंकि यही उम्रविपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण के प्रथम चरण की उम्र है। जिसे बच्चे ‘लव’ कहते हैं। ध्यान दीजिये अगर आपकी बेटी सुंदर है और आपके बेटे के एक या दो दोस्त अल्पसंख्यक विशेष हैं और वे उसे बहुत सस्ते में जींस और शर्ट्स या अन्य सामानविशिष्ट दुकानों से खरीदवा रहे हैं, तब तो समझ जाइए कि आपका घर लव जिहाद का निशाना बन चुका है। आइये बताते हैं किस रणनीति से ये लोग आपकी बच्ची तक पंहुचते हैं।
अक्सर कोचिंग वाले बच्चों को निशाने पर लिया जाता है।बच्चों में यह आदत स्वाभाविक रूप से होती है कि वे अच्छे कपड़ों की तारीफ करते हैं। आपके बेटे ने इस वर्ग के किसी बच्चे के कपड़े की तारीफ करदी तो तुरंत वह बच्चा बहुत सस्ती है, कह कर बच्चे को मार्केट रेट से कम पर खरीदवाने का लालच देता है। इसके बाद वह अल्पसंख्यक विशेष दोस्त बताता है कि मेरे दोस्त या भाई की अमुक जगह पर मार्केट में एक दुकान है। वहाँ एकदम लेटेस्ट और जबरदस्त क्वालिटी के कपड़े या जूते मिलेंगे, इतने कम में कि तुम सोच भी नहीं सकते हो। वहां जाते ही आपका नाम बता कर आपस में ये लोग इशारे कर लेते हैं। आपके लड़के को ‘खरीद रेट’में जींस,पेंट,शर्ट, जूते, चप्पल आदि मिल जाएंगे और आपके लड़के को ऐसा लगेगा कि जैसे इस कोचिंग वाले दोस्त ने उसके ऊपर बहुत बड़ा एहसान कर दिया है।जो ‘अल्पसंख्यक विशेष’दोस्त आपके लड़के को ले गया था, उससे दोस्ती बढ़ेगी, दिन रात मैसेज और कॉल पर बातें या मिलना जुलना ज्यादा बढ़ जाएगा। वह किसी भी चीज की ख़रीदारी के लिए सस्ते में दुकान बताएगा।
आपको पता नहीं चलेगा कि आपका संस्कारी बेटा कब और कैसे अपने धर्म से विमुख होकर इस्लाम से प्रभावित हो गया है। उसको हिंदू दोस्तों से ज्यादा मुस्लिम दोस्त बहुत अच्छे लगने लगेंगे क्योंकि कोई सस्ते में पैंट दे रहा है कोई चप्पल दे रहा है तो कोई 25 रूपये में ही मोबाइल रिपेयर करके दे दे रहा है।
लडके को फांसने के बाद अब इसका दूसरा चरण शुरू होता है। एकदम यही क्रम आपकी बेटी के साथ भी होता है, आपका ही लड़का नई नई चीजों को दिखा कर अपनी बहन को कहेगा कि मेरा एक शाहरुख, आफताब या साहिल दोस्त है जिसकी वजह से इतने सस्ते में ये सारी चीजें मिली है। वह भाई से उसे भी खरीदवाने को कहती है। पतन की शुरुआत यहीं से हो जाती है।बेटी को तो एक सौ का माल पच्चीस में नहीं बल्कि मुफ्त में ‘गिफ्ट’ के तौर पर दिया जाता है। बेटी मोबाइल, घाघरा, जींस, टॉप,पर्स लेते लेते एक दिन रेस्टोरेंट में मुफ्त का खाना खाने भी पहुँच जाती है। जहां एक प्लेट की कीमत दो हजार से तीन हजार भी हो सकती है। एकदम शाही अन्दाज में भोजन हो जाता है और आपकी बेटी ऐसे लाइफ स्टाइल से प्रभावित हो जाती है। घर की बंदिशों में पली लड़कियों को ऐसी लाइफस्टाइल का बहुत ज्यादा शौक होता है। अब बेटी अपने बाप को बुरा आदमी समझ सकती है लेकिन अल्पसंख्यक दोस्तों को नहीं।
(लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख का कोई लेनादेना नहीं है।)