झारखंड की प्रेम कहानियां/ दशम फाॅल के पास आज भी सुनाई देती है छैला की बांसुरी

झारखंड की प्रेम कहानियां/ दशम फाॅल के पास आज भी सुनाई देती है छैला की बांसुरी

गौतम चौधरी

यह प्रेम कहानी झारखंड की राजधानी रांची जिले के दशम फाॅल के पास की है। वैसे तो झारखंड की हरी-भरी वादियों में कई प्रेम कथा आज भी सुनने को मिल जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे किस्सागो इन कहानियों को बेहद रोचक तरीके से परोसते हैं लेकिन छेला की प्रेम कहानी थोड़ी अलग है। इस प्रेम कथा में रोमांच है, रहस्य है और प्रेम की वो पराकाष्ठा है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। बस उसकी अनुभूति की जा सकती है। हालांकि मेरे पास जो शब्द हैं मैं उसी में अपने पाठकों को प्रेम के चमोत्कर्ष की अनुभूति कराने की कोशिश करूंगा। मसलन, हीर-रांझा, लैला-मजनू की तरह झारखंड प्रदेश के तमाड़ स्थित बागुरा पीड़ी नामक गांव में छैला संदू नाम का एक युवक रहता था। छैला की इलाके में आज भी चर्चा होती है। छैला संदू को पाक सकम गांव की रहने वाली लड़की बिंदी से प्रेम हो गया। कहते हैं बिंदी बेहद सुंदर थी। पाक सकम गांव जाने के लिए दाशोम फॉल (दशम फॉल) को पार करना पड़ता था। छैला काफी मेहनती, ईमानदार व रसिक मिजाज युवक था। दिनभर वह काम करने और जानवरों को चराने के बाद शाम को वह बांसुरी, मांदर व कंधे पर मुर्गा लेकर अपनी प्रेमिका के गांव अपनी थकान मिटाने निकल पड़ता था। दाशम फॉल को पार करने के लिए छैला, बंदु नामक लता (लत्तर) का सहारा लेता था, जो फॉल के इस पार से उस पार तक तनी हुई थी। उन दिनों फाॅल को पार करने के लिए दूसरा कोई साधन नहीं था। उसी लता के सहारे छैला अपनी प्रेमिका के पास पहुंचता था।

छैला मुर्गा अपने साथ इसलिए रखता था, ताकि उसे पता चल सके कि सुबह हो गई है। संदू-बिंदी दोनों रात भर नाचते-गाते, प्रेमालाप करते और जब नाचने से मन भर जाता, तो भोर तक तक बातें करते थे। छैला को छोड़ बिंदो वापस नहीं जाना चाहती थी और न ही छैला बिंदो को छोड़ना चाहता था लेकिन दोनों का यह प्रेम मिलन चोरी-चोरी था। सुबह होते ही लोगों को जानकारी हो जाएगी, इस डर से दोनों अलग हो जाते थे लेकिन फिर रात को मिलने का वादा कर दोनों एक-दूसरे से अलग होते थे।

बिंदी और छैला का इस तरह प्रेमालाप कुछ लोगों को नागवार लगा। उन्हें ईर्ष्या होने लगी। ईर्ष्या की भावना से उन लोगों ने लता-वेल के उस डोर को आधा अधुरा काट दिया जिसके सहारे छैला दशम फाॅल पार किया करता था। रोजाना की तरह छैला उस अधकटी लता के सहारे फॉल पार करने करने की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह बीच में पहुंचा, लता की डोर टूट गई और छैला दशम फॉल में हमेशा-हमेशा के लिए विलीन हो गया। बिंदी का क्या हुआ किसी को पता नहीं। जितनी मुंह उतनी बात। कुछ का कहना है उसकी शादी करा दी गयी लेकिन वह अपने ससुराल में बस नहीं पायी और एक दिन वह भी दशम फाॅल में आकर अपना आत्मोत्सर्ग कर दिया।

गांव के लोगों का कहना है कि आज भी दशम फाॅल और उसके आस-पास छैला संदू की मांदर के थाप और बांसुरी की सुरीली आवाज सुनाई देती है। छैला था या नहीं, बिंदो का क्या हुआ, इस कहानी में इस प्रकार के कई सवाल आपको असहज कर देंगे  लेकिन जब दशक फाॅल आप जाएंगे तो मांदर जैसी कुछ आवाजें अवश्य आपके कान को झंकृत करेगा। हालांकि यहां मैंने बांसुरी की आवाज कभी नहीं सुनी लेकिन जब झरने के पास होता हूं तो पता नहीं मेरे कान बजने लगते हैं और कहीं दूर मांदर जैसी आवाज सुनाई देने लगती है।

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