माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती/ ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ के गायक थे माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती/ ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ के गायक थे माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने स्वाध्याय से ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, मराठी व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। वे सरल-सहज भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे रचनाकार तथा सच्चे देशप्रेमी थे। उन्होंने कविताओं के द्वारा देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की भावनाओं का संचार किया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ और श्अमर राष्ट्रश् जैसी अमर रचनाओं के माध्यम से भारतीय जन-मानस में हमेशा के लिए बस गए माखनलाल चतुर्वेदी को ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से भी जाना जाता है।

माखनलाल चतुर्वेदी ने वर्ष 1905 में अध्यापक की नौकरी शुरू की। वर्ष 1907 में जब उनका तबादला खंडवा जिले में हुआ, तब वे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि के रूप में अपना स्थान बना चुके थे। उस समय लोकमान्य तिलक का उद्घोष- श्स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैश् स्वतंत्रता के दीवानों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग करने के बाद मोहनदास करमचंद गांधी का भारत के राष्ट्रीय परिदृश्य में आगमन हो चुका था। राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी।

खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगराड़े ने अप्रैल 1913 में मासिक पत्रिका श्प्रभाश् का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलाल चतुर्वेदी को सौंपा गया। अब तक वे साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी विख्यात हो गए थे। सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पत्रकारिता, साहित्य तथा स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया। ‘प्रभा’ के सम्पादन काल में माखनलाल चतुर्वेदी का परिचय गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ, जिनके देशप्रेम और सेवाव्रत का इनके ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी ने गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गांधी से मुलाकात की। सन् 1920 में महात्मा गांधी द्वारा आहूत श्असहयोग आंदोलनश् में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी माखनलाल चतुर्वेदी ने ही दी थी। सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे गिरफ्तार हुए।

माखनलाल चतुर्वेदी जहां क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेते, वहीं अपनी कविताओं और पत्रिकाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति की भावना को व्यक्त व ब्रिटिश शासन का पुरजोर विरोध करते रहे। इस कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। जेल से रिहा होने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत द्वारा माखनलाल चतुर्वेदी पर कड़ी नजर रखी जाती थी। एक बार जब वे जबलपुर की एक सभा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भाषण दे रहे थे, तब उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाकर उन्हें 1 वर्ष के लिए जेल में कैद कर दिया गया, किंतु इन अत्याचारों से वे तनिक भी विचलित नहीं हुए और मुखर स्वर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रचनाएँ करते रहे।

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं में कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अंतर्मन विषमता की समूची अग्नि सीने में दबाये फूटने के लिए मचल रहा है तो कहीं विराट पौरुष की हुंकार, कहीं करुणा की अजीब दर्द भरी मनुहार के स्वर हैं। उनकी कविताओं में आदर्श की थोथी उड़ान भर नहीं है। उन्होंने खुद स्वतंत्रता संग्राम में अपना सब कुछ बलिदान किया, इसी कारण उनके स्वरों में श्बलिपंथीश् की सच्चाई, निर्भीकता और कष्टों को झेलने की अदम्य लालसा की झंकार है। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा जनसाधारण को बताया कि यह राष्ट्रीयता गहरे मानवीय सरोकारों से उपजती है, जिसका अपना एक संवेदनशील एवं उदात्त मानवीय स्तर होता है।

पत्रकारिता के पितृ पुरुष माधवराव सप्रे की प्रेरणा से हिन्दी पत्रिका ‘कर्मवीर’ का प्रथम प्रकाशन 17 जनवरी 1920 को जबलपुर से हुआ। इसके प्रथम संपादक माखनलाल चतुर्वेदी थे। 1924 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ्तारी के बाद चतुर्वेदी ने श्प्रतापश् का सम्पादकीय कार्यभार संभाला। वे 1927 ई. में भरतपुर में सम्पादक सम्मेलन के अध्यक्ष बने और 1943 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष का दायित्व संभाला।

1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित ‘देव पुरस्कार’ माखनलाल चतुर्वेदी को ‘हिम किरीटिनी’ के लिए दिया गया था। 1953 में साहित्य अकादेमी की स्थापना के बाद पहला साहित्य अकादेमी पुरस्कार 1955 में उन्हें ही प्रदान किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 1963 में श्पद्मभूषणश् से अलंकृत किया। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित है। भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट भी जारी किया।

स्वाधीनता के बाद जब मध्य प्रदेश नया राज्य बना, तब यह प्रश्न आया कि इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर किसे सौंपी जाए? तीन नाम उभर कर सामने आये – माखनलाल चतुर्वेदी, रविशंकर शुक्ल और द्वारका प्रसाद मिश्र।. कागज के तीन टुकड़ों पर ये नाम अलग-अलग लिखे गए। हर टुकड़े की एक पुड़िया बनायी गयी। तीनों पुड़िया को खूब फेंटा गया और फिर एक पुड़िया निकाली गयी जिस पर माखनलाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था। तय हुआ कि वे नवगठित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे। तत्कालीन दिग्गज नेता उनके पास दौड़ पड़े तथा उन्हें इस बात की सूचना और बधाई दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने उनसे कहा, “मैं शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते पहले से ही ‘देवगुरु’ के उच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठना चाहते हो जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है।” उनकी असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल को नवगठित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।

माखनलाल चतुर्वेदी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य और पत्रकारिता को समर्पित कर दिया था। प्रख्यात साहित्यकार और प्रखर संपादक विद्यानिवास मिश्र लिखते हैं-‘‘पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने भारत को ही एक कविता की शक्ल में रचने की सफल कोशिश की। दादा जब व्याख्यान देते तो उनकी भाषा में हिमालय की ऊंचाई, गंगा-यमुना-नर्मदा की कलकल, करधनियों के नूपुर की झंकार और सागर की उत्ताल तरंगों के दर्शन होते थे। भारत की आत्मा बोलती थी वाणी में।” 30 जनवरी 1968 को खंडवा में निधन के साथ ही माखनलाल चतुर्वेदी की वाणी मौन हो गयी लेकिन अपनी अनुपम काव्य रचनाओं के रूप में वे सदा-सर्वदा के लिए अमर हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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