डॉ घनश्याम बादल
सर पर आसमानी रंग की पगड़ी, सफेद कुर्ता, चुस्त पायजामा, गोरा रंग और चेहरे पर हमेशा एक गंभीरता, बोलना भी कम और मुस्कुराना भी कम । सबको साथ लेकर चलने की दक्षता, विपरीत विचारों वाले दलों के गठबंधन के साथ भी बिना किसी विवाद के पांच साल तक सरकार चलाना, और कांग्रेस ही नहीं अपितु दूसरे दलों और नेताओं में भी बेहद लोकप्रिय, अपनी विनम्रता, शिष्ट स्वभाव, गहन ज्ञान, विद्वता, बुद्धिमता, दूरदृष्टि और अर्थव्यवस्था में चुपचाप क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए यदि देश में किसी एक व्यक्ति को चुनना हो तो आज और शायद भविष्य में भी एकमात्र और निर्विवादित नाम है डॉ मनमोहन सिंह का।
2004 में अप्रत्याशित रूप से देश के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह स्वभाव और सोच से राजनीतिज्ञ नहीं थे और शायद उन्हें राजनीति में आने की कोई ज़रूरत भी नहीं थी । एक बड़े ब्यूरोक्रेट, इकोनॉमिस्ट, देश ही नहीं विदेशी विश्वविद्यालयों में भी प्रोफेसर के रूप में ज्ञान बांटने वाले सरदार मनमोहन सिंह देश के पहले सिख प्रधानमंत्री बने ।
मनमोहन सिंह पाकिस्तान के गाह गांव 26 सितंबर 1932 को एक गरीब परिवार में पैदा हुए, ऐसा गांव जिसमें न बिजली थी और न ही परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उन्हें अच्छी सुविधाएं प्रदान कर सके इसलिए दिए की लौ में मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की लेकिन ज्ञान के प्रति समर्पण, कड़ी मेहनत, लग्न एवं शांत स्वभाव ने उन्हें मेधावी छात्र बना दिया । स्वाधीनता के बाद उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर अमृतसर आ गया । यहां आकर भी मनमोहन सिंह की ज्ञान पिपासा कम नहीं हुई और अपनी मेधा के दम पर उन्होंने दिल्ली एवं विदेश के नाम चीन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की । उनकी राजनीतिक आकांक्षाएं न तब थी, न बाद में रही । 1962 में उनकी प्रतिभा को देखकर जवाहरलाल नेहरू सरकार ने उन्हें केंद्र सरकार में एक बड़े पद की पेशकश की थी लेकिन उस समय में पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर सिंह ने अपनी प्रतिबद्धता शिक्षा जगत के लिए व्यक्त करते हुए बड़ी विनम्रता से यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया ।
कुछ लोग पद के पीछे भागते हैं और उसके लिए कुछ भी जोड़-तोड़ करने से नहीं चूकते और कुछ लोगों के पीछे पद भागता है। मनमोहन सिंह ऐसे ही व्यक्तित्व के स्वामी थे जो पद के पीछे नहीं भागे अपितु पद उनके पीछे भागते रहे और इसी का परिणाम था कि एक दिन में भारत के प्रधानमंत्री बने । ऐसे प्रधानमंत्री जो केवल काम करना जानते थे न जोड-तोड़ न, उठा – पटक, न पार्टी की राजनीति में ज्यादा दखलअंदाजी, न दूसरे दलों में घुसपैठ के बावजूद भारतीय इतिहास के वह ऐसे अकेले प्रधानमंत्री रहे जो सदैव राज्यसभा के माध्यम से संसद में पहुंचे।
डॉ. सिंह ने एक दो नहीं अपितु अनेक सरकारी पदों पर अपनी सेवाएं दी । इनमें वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष आदि पद शामिल हैं । वे 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे और आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति की शुरुआत करने में भूमिका निभाई । नरसिम्हा राव की सरकार में जब वित्तीय संकट गहरा रहा था तब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में ही देश में खुली आर्थिक नीति भारी आलोचना एवं शंकाओं के बीच शुरू की गई । आज यदि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और जल्दी ही तीसरी अर्थव्यवस्था बनने के सपने देख रहे हैं तो इसका श्रेय मनमोहन सिंह की नीतियों को जाता है।
डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी बड़ी रोचक है वह कहीं से भी प्रधानमंत्री पद की लाइन में नहीं थे और 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेई के स्थान पर लाल कृष्ण आडवाणी को आगे करके विपक्ष ने चुनाव लड़ा तब कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनाने की बारी आई तो सबको उम्मीद थी कि सोनिया गांधी इस सरकार का नेतृत्व करेंगीं । अंतिम समय तक यही रणनीति थी लेकिन शरद पवार जैसे प्रभावशाली गठबंधन के नेताओं की आपत्ति के बाद अचानक ही मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस ने आगे किया तब और बाद में भी उनके बारे में यह कहा जाता रहा कि वे एक ‘एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री’ थे, उनके चुप रहने को उनकी कमजोरी समझा जाता रहा विपक्ष उन्हें ‘मौनी बाबा’ कहकर उनका मज़ाक उड़ाता रहा लेकिन अत्यंत विनम्र स्वभाव के मनमोहन सिंह ने बजाय इन उपहासों का जवाब देने के शांत रहकर काम करने का मंत्र अपनाया और इसका परिणाम यह निकला कि वह गठबंधन सरकार पूरे पांच साल चली । यह किसी चमत्कार से कम नहीं था और अटल बिहारी वाजपेई के बाद वह गैर नेहरू गांधी परिवार के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 10 साल तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बड़े काम किए पहला काम था भारत के ऊपर परमाणु विस्फोट के बाद लगे हुए प्रतिबंधों को हटाने के लिए अमेरिका से समझौता करना और देश की अर्थव्यवस्था को और भी अधिक खुला बनाना। हालांकि उस समय उनकी कटु आलोचना भी की गई । उनकी आर्थिक नीतियों के परिणाम स्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ी तो देश में महंगाई भी बढ़ी लेकिन मनमोहन सिंह अपनी नीतियों के प्रति आश्वस्त थे और इसका परिणाम आर्थिक प्रगति के रूप में सामने भी आया।
डॉ मनमोहन सिंह स्वयं एक ब्यूरोक्रेट रहे थे इसलिए जानते थे कि ब्यूरोक्रेसी को अधिक ताकतवर बनाने का मतलब लोकतांत्रिक शक्तियों को कम करना है अपने कार्यकाल में उन्होंने एक नहीं ऐसी अनेक योजनाएं दी जिनके लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा उनके कार्यकाल के दौरान की महत्वपूर्ण योजनाओं में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), सूचना का अधिकार अधिनियम, ग्रामीण विद्युतीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं के कार्यक्रमों का विस्तार शामिल हैं। उन्होंने लाइसेंसिंग प्रथा को खत्म करके व्यापार को बढ़ावा दिया और विभिन्न क्षेत्रों में सब्सिडी देकर आर्थिक प्रगति को गति दी। आर्थिक स्थिरता के प्रबल समर्थक, मनमोहन सिंह ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भारत को सुदृढ़ नीतियों के साथ आगे बढ़ाया, जिससे अर्थव्यवस्था को गति एवं मजबूती मिली । उन्होंने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने, दुनिया भर के नेताओं के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया, और ऐतिहासिक भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर समझौते पर हस्ताक्षर की निगरानी की, जिससे भारत का परमाणु अलगाव समाप्त हुआ।
मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री एवं प्रधानमंत्री तथा ब्यूरोक्रेट रहने के दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि उन पर कभी भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई । जब उन पर ‘रेनकोट पहनकर भी ना भीगने’ जैसा व्यंग्य कसा गया तो किसी ने भी इस बात को विश्वसनीय नहीं माना। एक दौर ऐसा भी आया जब सरकार ने ई डी , सी बी आई और दूसरी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से विपक्ष के नेताओं पर लगातार शिकंजा कसा लेकिन मनमोहन सिंह उस दौर में भी अछूते रहे तो इसके पीछे उनका विनम्र स्वभाव विवादों से दूर रहना और भ्रष्टाचार को अपने पास भी नव फटकने देने की नीति रही।
मनमोहन सिंह 92 वर्ष दो माह की लंबी उम्र पाकर गए हैं और अपने पीछे पत्नी गुरुशरण कौर व तीन पुत्रियों का संपन्न एवं सुसंस्कृत परिवार छोड़ गए हैं। 1987 में पद्म विभूषण से सम्मानित मनमोहन सिंह को यदि देश का ‘आर्थिक भारत रत्न’ कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति न होगी। देश के इस आर्थिक चाणक्य को उसकी विदाई पर शत-शत नमन।
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