रहस्य रोमांच/ एक जासूस की चतुराई ने देशद्रोहियों के छुड़ा दिए छक्के

रहस्य रोमांच/ एक जासूस की चतुराई ने देशद्रोहियों के छुड़ा दिए छक्के

परशुराम संबल

सीक्रेट सर्विस के मुख्यालय द्वारा एक खतरनाक गिरोह और उसकी देशद्रोही गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी इकट्टी कर लेने के बाद उसे गुप्त चित्रों सहित एक फाइल में बन्द कर लिया गया था। यह फाइल गृहमंत्राी तक पहुंचानी थी।

इस काम के लिये एक एक करके दो जासूसों को लगाया गया परन्तु खतरनाक गिरोह के बास के पास जासूसों की गतिविधियों की सूचना प्राप्त करने के अति आधुनिक इलेक्टोªनिक उपकरण थे। उसके गुण्डे भी, जो सीक्रेट सर्विस के कार्यो की टोह लेने के लिये नियुक्त किये गये थे, बड़े चालाक और चतुर थे।

जब काम को अंतिम रूप देने की योजना बनाई जा रही थी तभी गिरोह के बास ने काम पर लगाये गये दोनों जासूसों को पहले ही ठिकाने लगवा दिया। इस घटना ने सीक्रेट सर्विस के मुख्यालय को ही हिला कर रख दिया। साथ ही चीफ को गृहमंत्रालय के द्वारा इस नाकामयाबी पर बड़ी लताड़ खानी पड़ी। चीफ बहुत परेशान था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह फाइल को गृहमंत्राी तक सुरक्षित पहुंचाया जाये?

अन्त में एक उपाय सोचा गया। चीफ ने एक जाने माने प्राइवेट जासूस विक्रम सिंह से सम्पर्क स्थापित किया। वह पहले भी कई मिशनों पर सफलतापूर्वक काम करके कामयाबी का सेहरा अपने सिर बांध चुका था। वह काम भी उसे सौंप दिया गया। विक्रम सिंह एक सुलझा हुआ, अनुभवी और चतुर जासूस था।

जब विक्रम सिंह सीक्रेट सर्विस की बिल्डिंग से बाहर आया तो उसके एक हाथ में ब्रीफकेस, दूसरे में वांिकंग स्टिक और मुंह में दबाया हुआ पाइप धुआं छोड़ रहा था। उसे इस बात का आभास था कि खतरनाक गिरोह के खतरनाक गुण्डों के द्वारा उस पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। इसलिये सब बातों से अनजान-सा वह सीधे साधे स्वाभाविक ढंग से चल रहा था।

जैसे ही विक्रम सिंह बिल्डिंग के अहाते को पार करके बाहर आया, तुरन्त ही उसे कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने आ दबोचा और एक कार में डालकर किसी सुनसान जंगल की ओर लेकर चल पड़े। जासूस विक्रम सिंह को बास के सामने पेश किया गया। एक गुण्डे ने उसे बास के सामने धकेलते हुए कहा-‘बास, यह आदमी शायद वही फाइल लेकर गृह मंत्रालय जा रहा है जिसमें हमारे विषय में गुप्त सूचनाएं इकट्ठी की हुई हैं। यह अभी किसी से भी नहीं मिल पाया, हमने इसे सीक्रेट सर्विस की बिल्डिंग के बाहर निकलते ही दबोच लिया। हमें पूरा विश्वास है ंिक फाइल अभी भी इसी के पास है।‘

भारी भरकम आवाज में बास गुर्राया-‘इसकी तलाशी लो।‘ एक गुण्डे ने आगे बढ़कर उसके हाथ से ब्रीफकेस छीन लिया और उसे खोलकर सारा सामान फर्श पर बिखेर दिया। उसमें केवल एक पैन, पेन्सिल, फीता, नोट बुक और डायरेक्टरी थी। गुण्डे ने डायरेक्टरी और नोट बुक के पत्रों को पलट पलट कर देखा परन्तु उसमें विशेष कुछ भी नहीं था। उसने आश्चर्य से विक्रम सिंह से पूछा, ‘‘यह डायरेक्टरी और नोट बुक लेकर तुम गृहमंत्राी के पास क्यों जा रहे हो?‘‘

विक्रम सिंह ने बड़ी लापटवाही से उत्तर दिया-‘‘डायरेक्टरी पढ़ना मेरा शौक है। नोट बुक मैं आवश्यक पते और टेलीफोन नम्बर नोट करने के लिये रखता हूं।‘ तलाशी लेने पर विक्रम सिंह के पास से ब्रीफकेस में से ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे उसे शक के घेरे में लिया जा सकता था।

बास ने गुस्से में भरकर कहा-‘इसके सारे कपड़े उतार कर इसे बिलकुल नंगा कर दो।‘ ‘ठहरो, ठहरो भाई, यह क्या कर रहे हो?‘ विक्रम सिंह शर्म से पानी पानी हो गया था। वह सिमट कर फर्श पर नीचे बैठ गया और जल्दी जल्दी पाइप के कश लगाने लगा। इसी बीच बास की नजर उसकी छड़ी पर पड़ी। उसने छड़ी लेकर बड़ी सूक्ष्मता से उसका निरीक्षण किया लेकिन उसमें भी कुछ हाथ नहीं लगा।

’आप सब तरह से पूरी तरह इत्मीनान कर चुके हैं कि मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे आप लोगों को मेरे जासूस होने का भ्रम हो। कृपा करके अब तो आप मुझे जाने दीजिए।’ विक्रम ने बास से निवेदन किया। बास कुछ देर तक सोचता रहा, फिर बोला-‘तुम दिल्ली हमारे साथ चलोगे।‘

बास अपने गुण्डों के साथ कार में विक्रम को लेकर दिल्ली के लिये रवाना हो गया। इसी बीच विक्रम सिंह डायरेक्टरी निकाल कर पढ़ने लगा। डायरेक्टरी को बड़े गौर से पढ़ते हुए देख कर बास की आंखें चमकने लगी। उसने विक्रम सिंह के हाथ से डायेरक्टरी छीनते हुए कहा-‘बहुत चालाक बनते हो। मैं समझ गया, तुमने इस डायरेक्टरी में नामों के आगे निशान लगा रखे होंगे, जिनके नाम उस फाइल में थे।‘

विक्रम कुछ भी नहीं बोला, बस चुपचाप पाइप पीता रहा। बास ने डायरेक्टरी का एक एक पन्ना बड़ी सावधानीपूर्वक चेक किया। लेकिन उसमें किसी भी नाम के आगे कोई चिन्ह नहीं था। बास झुंझला उठा और गुस्से में आकर उसने डायरेक्टरी के टुकड़े टुकड़े कर दिये। वह अपने साथियों से बोला-‘मुझे अब पक्का यकीन हो गया कि सीक्रेट सर्विस वालों ने इस बार हमें मूर्ख बनाने की कोशिश की है। वह फाइल इस पागल के पास नहीं है। इसे शायद उन लोगों ने कवर के तौर पर इस्तेमाल किया है। असली फाइल तो कोई और ही लेकर जा रहा होगा।’

‘बास, फिर इस पागल आदमी का कया किया जाये?‘ एक गुण्डे ने पूछा। ‘दिल्ली पहुंचते ही इसे कार से धक्के देकर बाहर फेंक देना। इसकी वजह से नाहक ही हमारा समय बरबाद हुआ है।‘ बास बोला। दिल्ली सीमा में प्रवेश करने से पहले ही विक्रम को कार से धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया और कार तेजी से आगे बढ़ गई।

एक घंटे के बाद विक्रम सिंह ने गृहमंत्री निवास में प्रवेश किया। वह गृहमंत्राी से मिला और अपना परिचय दिया। गृहमंत्राी ने विक्रम को अस्तव्यस्त हालत में देखकर पूछा-क्या तुम वह गुप्त दस्तावेजों वाली फाइल लेकर आये हो?‘ ‘जी हां, वह मैं अपने साथ सुरक्षित लेकर आया हूं।‘ विक्रम ने कहा।

अगले दिन सारी दिल्ली और अन्य शहरों में देशद्रोही और तस्करों के उस कुख्यात गिरोह के हर सदस्य को गिरफ्तार कर लिया गया। जिस समय विक्रम प्रेस रिपोर्टरों से घिरा हुआ था तो उसे गिरोह के बास ने इशारे से अपने पास बुलाया और बड़े नम्र स्वर में पूछा-‘विक्रम साहब, आपने अपनी चतुराई और चालाकी से हमें गिरफ्तार तो करवा ही दिया परन्तु मैं यह सोच सोचकर पागल हुआ जा रहा हूं कि आप उस फाइल को यहां तक सही सलामत लेकर आये कैसे जबकि हमने तुम्हारी एक एक चीज की बड़ी सावधानीपूर्वक तलाशी ली थी। फिर आपने वह फाइल कहां छुपाकर रखी थी?‘

विक्रम, जो उस समय नये सूट में सजा धजा आकर्षक लग रहा था, मुस्करा कर बोला-‘प्रिय बास। वह फाइल जिसकी तलाश में तुम परेशान थे, शुरू से अंत तक मेरे साथ ही थी। घड़ी ’ब्रीफकेस’ पेन, पेन्सिल, डायेरक्टरी और नोट बुक आदि सब तुम्हें भटकाने के लिये थी। जब मैने सोचा कि फाइल को ले जाना किसी भी तरह संभव नहीं है तो मैंने उस फाइल के सारे पन्नों की माइक्रोफिल्म बनवा ली। फिल्म लगभग बारह फुट लम्बी बनी थी लेकिन जब उसे फोल्ड किया गया तो वह आध इंच की हो गई।‘

‘लेकिन उस समय वह फिल्म भी तुम्हारे पास नहीं थी।‘ बास ने आश्चर्य जताते हुए पूछा। ‘नहीं श्रीमान, फिल्म मेरे पास ही थी। वह एक ऐसी वस्तु थी जिसमें मैं तुम्हारे सामने बार बार धुआं उड़ा रहा था।‘ विक्रम ने कहा।

‘धुआं?‘ आश्चर्य से बाॅस ने पूछा। तब बिक्रम ने कहा, ‘जीं हां, धुआं। वह फिल्म एक फायर प्रूफ डिबिया में रखकर मैंने उसे अपने पाइप में छिपा दिया था। पाइप का वह भाग जहां पर तम्बाकू भरा जाता है, डिबिया जस्त की बनी हुई थी। मैं मजबूरन कश लगा लगाकर धुएं को जबरदस्ती निगलता रहा क्योंकि इसके सिवाय मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था। समझे आप।

विक्रम की बात सुनकर बास ने अपना सिर धुन लिया।

(अदिति)

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