अनिल शर्मा ’अनिल‘
देश में 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की नींव रखी। 1221 में चंगेज खां के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ। 1290 में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने दिल्ली में खिलजी वंश का शासन स्थापित किया। इसके बाद 1320 में गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में तुगलक वंश का शासन स्थापित किया।
इसी दौर में सन् 1398 में अमीर जफर तैमूर (तैमूर लंग) ने हिन्दुस्तान पर आक्रमण कर दिया। उसके साथ एक इतिहासकार शर्फुद्दीन भी आया था जिसने इस हरिद्वार क्षेत्रा का वर्णन अपने संस्मरणों में किया है।
इतिहास के अनुसार फिरोज शाह तुगलक के निधन के बाद तैमूर लंग यमुना के पश्चिमी किनारे से होकर चला। वह दिल्ली, मेरठ, बिजनौर से गंगा के किनारे किनारे लूटपाट करता हुआ हरिद्वार आ पहुंचा। उसने मार्ग में कई मन्दिरों को भी ध्वस्त किया।
हरिद्वार पहुंचकर तैमूर ने तीर्थयात्रियों से जमकर लूटपाट की। जब वह मायादेवी मन्दिर के निकट स्थित भैरव मन्दिर पहुंचा और भैरव जी की प्रतिमा पर प्रहार किया तो वहां अचानक सांप बिच्छुओं के झुण्ड निकल आये।
तैमूर लंग की सेना इतने सारे सांप बिच्छुओं को एक साथ देकर भयभीत हो गयी और सेना में भगदड़ मच गयी। स्वयं तैमूर भी अचानक सांप बिच्छुओं की सेना को देखकर भयग्रस्त हो गया। डरा हुआ तैमूर यहां से सरसावा होते हुए वापस समरकन्द लौट गया।
यहां (हरिद्वार) का नाम मायापुरी भी मिलता है। चीनी यात्री हवेनसंग ने 1634 में मायापुरी में लाखों श्रद्धालुओं के गंगा स्नान करने और पापों से मुक्त होने का विश्वास करने की बात लिखी है। यही बात इससे लगभग 400 वर्षों के बाद महमूद गजनवी के काल के इतिहासकार औटेको ने लिखी थी यानी हरिद्वार (मायापुरी) प्राचीनकाल से ही गंगा और उसकी महिमा के कारण तीर्थस्थल बना हुआ है।
आज जो मायादेवी मन्दिर यहां विद्यमान है उसी के पास वह भैरव मन्दिर भी है जिस पर हमला करने के साथ ही सांप व बिच्छुओं के झुण्ड ने तैमूर लंग की सेना को घेर लिया था।
इस मायादेवी मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने प्राणोत्सर्ग करने पर सती के शव को जब शिवजी लेकर चले तो विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिये। जहां जहां वे टुकड़े गिरे, वहीं शक्ति पीठ बन गये। इस स्थान पर हृदय व नाभि स्थल गिरा था, सती अर्थात माया के नाम पर ही इस मायापुरी भी कहा गया है।
ब्रिटिश सरकार के संचालन वाले आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ इण्डिया के तत्कालीन जनरल डायरेक्टर सर अलेक्जेंडर कनिंधम 1870-71 में भारत की पुरातात्विक यात्रा पर निकले थे। उन्होंने महत्त्वपूर्ण प्राचीन स्थलों की सर्वे रिपोर्ट साक्ष्यों के आधार पर तैयार की थी। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक मायादेवी मन्दिर दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित किया गया।
वास्तव में तीर्थ नगरी हरिद्वार स्वयं में प्राचीन इतिहास को समेटे हुए है। पुरातत्ववेत्ताओं ने यहां पौने चार हजार वर्ष पूर्व भी मानव बस्ती होने के संकेत पांये हैं।
(अदिति)