नयी दिल्ली/ जर्मनी के वैज्ञानिकों ने छोटे यानी पोर्टोवल सोलर पैनल विकसित किया है। इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। इन दिनों भारत में भी इसका चलन बढ़ रहा है। जर्मनी से लेकर नीदरलैंड्स और चीन तक, घर की बालकनी में इसे लगाया जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तो इससे पैसे की बचत तो होती ही है साथ ही, ग्रीन एनर्जी को लेकर लोगों की दिलचस्पी भी बढ़ रही है।
जर्मनी में प्लग-इन वाले सोलर सिस्टम के इस्तेमाल में काफी वृद्धि देखी गई है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष की तुलना में 2023 की पहली तिमाही में रजिस्टर किए गए इस छोटे सोलर सिस्टम की संख्या सात गुना से अधिक बढ़ गई। इसके बाजार के बारे में बताया जा रहा है कि यह 2030 तक जर्मनी में इसका उपयोग बढ़ कर 1.2 करोड़ तक चला जाएगा।
चीन में भी छोटे सोलर सिस्टम तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। बर्लिन में नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े थिंक-टैंक एनर्जी वॉच ग्रुप के अध्यक्ष और ग्रीन पार्टी के पूर्व सांसद हंस-योसेफ फेल के अनुसार, मेगासिटी हांगजोउ में बड़े अपार्टमेंट में यह एक आम दृश्य बन चुका है। इस बीच, इटली की सबसे बड़ी बिजली आपूर्ति कंपनी एनेल भी प्लग-एंड-प्ले घरेलू ऊर्जा उत्पादन के इस रूप को बढ़ावा दे रही है।
एक अध्ययन में बताया गया है कि पोलैंड, फ्रांस, नीदरलैंड्स, यूके, ऑस्ट्रिया, स्विटजरलैंड और हंगरी जैसे अन्य यूरोपीय देश भी इस तकनीक में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सभी देशों ने ऐसे सोलर सिस्टम को इंस्टॉल करने से जुड़ी नौकरशाही या कागजी प्रक्रिया को कम करने का प्रयास किया है। जर्मनी भी इस डिवाइस के इंस्टॉलेशन को आसान बनाने की योजना बना रहा है। इस सिस्टम का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि अगर ज्यादा से ज्यादा लोग इसे इंस्टॉल करते हैं, तो यह नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में कारगर कदम साबित होगा और पर्यावरण का भला करेगा।
लोग अपने घर की बालकनी, दीवारों, छतों या बागीचे में इंस्टॉल किए गए एक से तीन फोटोवोल्टिक मॉड्यूल की मदद से खुद के लिए सौर बिजली का उत्पादन कर सकते हैं। सबसे खास बात यह है कि इसे इंस्टॉल करने के लिए किसी विशेषज्ञ या व्यापारी की जरूरत नहीं पड़ती।
सोलर मॉड्यूल से डायरेक्ट करंट (डीसी) को एक छोटे बॉक्स में ले जाया जाता है, जहां इसे इन्वर्टर द्वारा ग्रिड-स्टैंडर्ड वाले अल्टरनेटिंग करंट (एसी) में बदला जाता है। इसके बाद, इस यूनिट को किसी स्टैंडर्ड वॉल आउटलेट में आसानी से प्लग-इन किया जा सकता है।
सोलर मॉड्यूल सबसे ज्यादा बिजली उस समय पैदा करता है जब सूरज की सीधी किरणें उस पर पड़ती है। यही वजह है कि धूप वाले क्षेत्रों के साथ-साथ गर्मी और वसंत के मौसम में ये मॉड्यूल काफी काम के होते हैं। अफ्रीका, मध्य पूर्व, ऑस्ट्रेलिया, चीन, लैटिन अमेरिका और अमेरिका के धूप वाले हिस्सों में 400 वॉट का एक मॉड्यूल प्रति वर्ष 800 किलोवॉट घंटे तक बिजली पैदा कर सकता है। वहीं, कम धूप वाले जर्मनी और मध्य यूरोप में यह आंकड़ा लगभग आधा हो सकता है। हालांकि, इसके साथ यह भी जरूरी है कि मॉड्यूल को किस तरह सेट किया जा रहा है। इसे दक्षिण की ओर और सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन वाले कोण पर सेट करना बेहतर तरीका है। जर्मनी में दक्षिण दिशा की ओर मौजूद बालकनी या दीवारों पर इंस्टॉल किए गए 400 वॉट के मॉड्यूल से प्रति वर्ष औसतन 260 किलोवॉट ऑवर बिजली का उत्पादन होता है. वहीं, पूर्व या पश्चिम की दिशा में इंस्टॉल किए गए मॉड्यूल से करीब 190 ही उत्पादन होता है।
औद्योगिक देशों में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत काफी अधिक है। इसलिए, प्लग-इन सोलर मॉड्यूल से ऊर्जा की मांग का सिर्फ एक हिस्सा ही पूरा हो सकता है। जर्मनी में चार लोगों के एक परिवार का सालाना औसतन खपत करीब 4000 किलोवाट है। जबकि एक व्यक्ति करीब 1500 किलोवाट का इस्तेमाल करता है।
हालांकि, प्लग-इन मॉड्यूल के समर्थकों का कहना है कि इससे बिजली बिल को कम करने में मदद मिलेगी। इस सिस्टम से सर्दियों की रात में भी इंटरनेट राउटर जैसे छोटे उपकरण के लिए पर्याप्त बिजली मिलती है, लेकिन इससे ज्यादा बिजली की खपत करने वाले दो-दो मॉनिटर वाले बड़े कंप्यूटर या वाशिंग मशीन नहीं चलाए जा सकते।
जर्मन ऑनलाइन स्टोर में एक से तीन पैनल वाले प्लग-इन सोलर सिस्टम की कीमत 400 से लेकर 1200 यूरो के बीच है। भारतीय रुपये में कहें, तो करीब 36 हजार रुपये से लेकर 1 लाख 7 हजार रुपये तक है। बर्लिन स्थित जर्मन सोलर इंडस्ट्री एसोसिएशन के थॉमस जेल्टमन ने कहा कि देश में बिजली की कीमतें लगभग 30 से 50 सेंट प्रति किलोवॉट है। ऐसे में पैनल के लिए खर्च की गई कीमत 6 से 9 वर्ष में वसूल हो जाएगी।
सुरक्षा की दृष्टि से भी यह बेहतर है। प्लग-इन सोलर यूनिट काफी सुरक्षित होती हैं. इससे अब तक किसी तरह के नुकसान की सूचना नहीं मिली है। हालांकि, उनका सुझाव है कि यह डिवाइस विशेष डीलरों या उन ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं से ही खरीदें जो सभी कॉम्पोनेंट सही होने की गारंटी देते हैं।
यूरोपीय संघ के 27 में से 25 देशों में ये मॉड्यूल तेजी से उपलब्ध हो रहे हैं। सिर्फ बेल्जियम और हंगरी ने बालकनी सोलर सिस्टम के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी है। वहीं जर्मनी सिस्टम की अधिकतम सीमा को 600 से बढ़ाकर 800 वॉट करने पर विचार कर रहा है।
मॉड्यूल इंस्टॉल करते समय लोगों को यह पक्का करना चाहिए कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं और बालकनी या दीवारों से अच्छे से जुड़े हैं, ताकि तेज हवा या भारी बारिश-तूफान का भी सामना कर सकें। सौर उद्योग के विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि प्लग-इन सौर इकाइयां भविष्य में बिजली की मांग का सिर्फ एक छोटा हिस्सा ही पूरा कर पाएंगी। हालांकि, इसके बावजूद विशेषज्ञ इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने का समर्थन करते हैं।