पंकज गांधी
ONDC पर कुछ महीने पहले मैं लिख चुका हूं कि भारत के ई-कॉमर्स इकोसिस्टम में यह सम्पूर्ण क्रांति लायेगी। अब उसके असर दिखने लगे हैं. ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने के लिए लोग ज्यादातर फूड डिलीवरी ऐप का इस्तेमाल करते रहें हैं लेकिन अब इन्हे ONDC कड़ी टक्कर दे रहा है। सोशल मीडिया पर लोग ऐसा दावा कर रहें हैं कि इस पर खाने के दाम उन एप्स से सस्ते पड़ रहें हैं। उदहारण के तौर पर अगर आप इस्तेमाल करना चाहते हैं तो पेटीएम के सर्च में ‘ओएनडीसी’ टाइप कर देखें सब कुछ समझ में आ जायेगा। ऐसे कई जगह पर यह उपलब्ध है।
सरकार की मंशा इसके माध्यम से ई-कॉमर्स बाजार में एकाधिकार खत्म कर सबके लिए बराबरी का मौका बनाना है। डिजिटल पेमेंट स्पेस में जैसा काम UPI ने किया है, वैसा ही काम ई-कॉमर्स स्पेस में ONDC करने वाला है। सरकार का मकसद समूची वैल्यू चेन को डिजिटाइज करना है। इससे ईकॉमर्स की कारोबारी प्रक्रिया मानकीकृत हो जाएगी, ज्यादा-से-ज्यादा व्यापारी ऑनलाइन स्पेस में आ सकेंगे और ग्राहक को ज्यादा फायदा मिलेगा।
यह एक खुला डिजिटल कॉमर्स का मंच होगा जिसका सोर्स कोड विक्रेता, क्रेता, सेवा प्रदाता, लॉजिस्टिक, पेमेंट गेटवे, या कोई भी सबके लिये खुला रहेगा। कोई भी इससे जुड़कर इस व्यवस्था का एक भागीदार हो सकता है। इसे अमली जामा पहनाने और इस क्षेत्र में एकाधिकार तोड़ने के लिये सरकार ने अपना निजी और बंद प्लेटफार्म चलाने वाले लोगों जैसे की अमेजन और फ्लिपकार्ट से लगायत सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को इस मंच पर आना सुनिश्चित करेगी। इसे ठीक ऐसे समझ लीजिये की यूपीआई आने से पहले पेटीएम या अन्य फिनटेक कंपनियों के अपने निजी मंच थे, यूपीआई आने के बाद सरकार ने सबको यूपीआई पर आना अनिवार्य कर दिया। अब पेमेंट की तकनीक पर किसी का एकाधिकार नहीं है यूपीआई का सोर्स कोड का इस्तेमाल कर फिनटेक कंपनियां भुगतान की सुविधा दे सकती हैं और ग्राहक किसी भी यूपीआई एप को डाउनलोड कर किसी भी पेमेंट एप से किसी दूसरे पेमेंट एप पर भुगतान कर सकता है।
अमेजन जिसमें बेचने और खरीदने वाले को सिर्फ अमेजन पर जाकर ही सौदे करने होते हैं, आप अमेजन पर जाकर फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध विक्रेता से माल नहीं खरीद सकते हैं। अब ONDC ने इस मसले को हल कर दिया है। जैसे यूपीआई से पहले पेमेंट का लेन देन हम देख चुके हैं, अब तो हर मोबाइल उपयोगकर्ता, दुकानदार का अपना अपना QR कोड है, हर जगह वह QR कोड दिख जायेगा और कोई भी उस कोड के माध्यम से भुगतान ले और दे सकता है। यह यूपीआई एक खुला नेटवर्क वाला डिजिटल कॉमर्स इकोसिस्टम है। इस प्लेटफॉर्म पर दोनों तरफ के एप्लिकेशन जुड़े हुए हैं। ग्राहक अपने एक यूजर अप्लीकेशन जैसे कि उसने यदि पेटीएम डाउनलोड किया है तो वह भीम-पे, जी-पे फोन-पे से लगायत किसी भी सेवा प्रदाता के एप्लीकेशन पर पैसा हस्तांतरित कर सकता है।
ऐसा नहीं है कि पेटीएम वाला केवल पेटीएम वाले को ही पैसा हस्तांतरित करेगा, ठीक उसी तरह दूसरे छोर पर पैसा प्राप्त करने वाला एप्लीकेशन है तो ऐसा नहीं है कि वह केवल जी-पे का है तो जी-पे वाले से ही पैसा प्राप्त करेगा। वह किसी भी एप्लीकेशन से आये पैसे को स्वीकृत करेगा। मतलब यूपीआई एक ऐसा खुला नेटवर्क है जिसने इस एप्लीकेशन के निजी एकाधिकार को खत्म कर इसे और इन्हे सबके लिए खुला कर दिया है, भेदभाव रहित। और यूपीआई सुविधा के इस्तेमाल के लिए उन्हें इसी इकोसिस्टम का प्रयोग करना पड़ेगा, अलग से कोई अन्य निजी मंच नहीं।
अब इसे ऐसे समझिये कि यह यूपीआई की तरह ही अब हम सबके मोबाइल और गली मोहल्ले और सबके यहां काम करेगा। यह ई-कॉमर्स को किसी एक कंपनी या किसी वेबसाइट के एकाधिकार से तोड़कर जनतांत्रिक करने वाला है। यूपीआई की तरह यह एक ऐसा खुला नेटवर्क और डिजिटल कॉमर्स इकोसिस्टम होगा जिसमें ई कॉमर्स के सभी किरदार एक साथ इसपर होंगे चाहे वह ई कॉमर्स के मौजूदा खिलाडी हों, परदे के पीछे रहने वाले सेवा प्रदाता जैसे कि लॉजिस्टिक, पेमेंट गेटवे, किसी अनजान जगह का कोई कारीगर हो या हम जैसे ग्राहक। सिर्फ एक इकोसिस्टम जिस पर सभी ई कॉमर्स वाले को आना अनिवार्य किया जाने वाला है पर अब सब मिलेंगे। अब आप अमेजन पर जायेंगे तो सिर्फ अमेजन से जुड़े सेलर के ही लिस्टिंग नहीं दिखेगी आपको। आपके सर्च के आधार पर इसपर पंजीकृत हुए सभी विक्रेता मिलेंगे भले ही वह अमेजन की जगह फ्लिपकार्ट या किसी और मंच से जुड़े हों या उनका अपना खुद का पोर्टल हो।
इस खुले नेटवर्क पर निजी ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म जो की एक डब्बे की तरह काम करते थे जिसमें एक बंधन बंडल के रूप में लॉजिस्टिक प्रोवाइडर, विक्रेता, पेमेंट गेटवे, कूपन आदि बंधे रहते थे। अब वह सब अनबंडल हो जायेंगे मतलब स्वतंत्र रूप से इस मंच पर आ जायेंगे और पुनः आवश्यकतानुसार रीबंडल होंगे। एक सेवा प्रदाता या एक छोटा सा दुकानदार अब लॉजिस्टिक समस्या से मुक्त रहेगा। उसे इसी मंच पर कई मौजूद लॉजिस्टिक वाले मिल जायेंगे जिसके साथ वह जुड़कर कर अपना धंधा बढ़ा सकता है। अब तकनीक चुनिंदा हाथों की बपौती नहीं रहेगी यह सबके लिये रहेगी। चूंकि यह खुले सोर्स कोड का मंच होगा अतः कोई भी इसका इस्तेमाल कर इस मंच पर आ सकता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)