संतोष कुमार तिवारी
जहां भारत विश्व के देशों में अपनी अलग पहचान स्थापित करने, विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने, विकसित राष्ट्र तथा विश्व गुरू बनने के लिए लगातार प्रयासरत है, वही देश के ही नेता अपनी गंदी सोच व मानसिकता से विश्व में भारत का नाम खराब करने से नही चूक रहे है। ये ऐसे नेता है जिनको लाखों लोगों ने अपना वोट देकर संसद इसलिए भेजा है कि वे देश के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले तथा गंदी सोच रखने वाले नेता जीतने के बाद जैसे मतदाताओं के मत की कीमत को समझते नही और खुद को ही सब कुछ मानकर मनमानी कार्य करते है। कुछ लोग बोलने की स्वतंत्रता के नाम पर देश की मर्यादा, संस्कृति, सम्मान और संस्कार को भी भूल जाते है और मात्र कुछ लोगों को खुश करने के लिए ऐसा कार्य करते है जिससे उनकी जगहसाई होती है लेकिन ऐसे नेताओं को क्या पड़ी है देश की संस्कृति और इज्जत से, उनको तो केवल तुष्टिकरण की राजनीति करके देश को तोड़ने में ही मजा आता है।
18वीं लोकसभा के शपथ ग्रहण के दौरान देश के कुछ नेताओं ने भारत की छवि को धूमिल करके अपने अंदर भारत के प्रति छिपी सोच को भी उजागर कर दिया। कहने को तो हैदराबाद से पांचवी बार सांसद चुने गये अससुद्दीन ओवैसी एक शिक्षित मुस्लिम नेता है, ओवैसी अपने कट्टरता के लिए जाने जाते है और इसी वजह से हमेशा सुर्खियों में बने रहने के कारण फालतू बयान देकर देश को कमजोर करने की फिराक में रहते है लेकिन ओवैसी ने अपनी गंदी सोच और मानसिकता का सबसे वीभत्स उदाहरण तब पेश किया जब उसने भारतीय संसद में शपथ ग्रहण के दौरान, जय भारत की जगह पर जय फिलीस्तीन का नारा लगा दिया। सत्ता पक्ष के लोग तो थोड़ा असहज देखे गये, कुछ ने विरोध किया लेकिन विपक्ष ने ओवैसी के देशविरोधी नारे पर एक बार भी विरोध करने की हिम्मत न जुटाई।
सत्ता के लालच में और सत्ता पक्ष के विरोध में देशविरोधी नारा लगाने वाले का मूक समर्थन करने से विपक्ष के नेताओं की भी मानसिकता पर प्रश्न चिह्न लग गया है। वही भारतीय संसद में भाजपा के लोग जब जय श्री राम का नारा लगाते तो सपा के नेता और समर्थक जय अवधेश का नारा बुलंद करते रहे। सपा समेत अन्य विरोधी दलों को भारत, भारतीय संस्कृति से इतनी एलर्जी क्यों है? भाजपा के विरोध में राम का विरोध करना सपा, कांग्रेस या अन्य दलों को आगे आने वाले चुनाव में भारी पड़ेगा क्योकि भगवान श्री राम के क्षेत्र से चुनाव जीतने वाला सांसद सपा का है लेकिन केवल तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में राम का नाम लेने की हिम्मत नही है।
जहाँ श्री राम ने पूरे विश्व को अपने कार्यों के माध्यम से एक उदाहरण पेश किया और विश्व के तमाम विद्वान राम के बारे में तमाम रिसर्च कर रहे है, वही दो कौड़ी के नेता अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में भाजपा और नरेन्द्र मोदी का विरोध करते करते भगवान श्री राम का भी विरोध करने में लग गये है।
भारतीय संसद में जिस तरह ओवैसी ने जय फिलीस्तीन का नारा लगा दिया, वैसे ही कोई अब जय पाकिस्तान, जय खालिस्तान, जय आतंकवाद समेत कोई भी नारा लगा सकता है और इसे बोलने की आजादी के डिब्बे में डालकर भुला दिया जाये। यदि ओवैसी के खिलाफ भारतीय संसद या माननीय न्यायालय सदस्यता रद्द करने तथा राष्ट्रदोह का मुकदमा नही चलाती तो देश विरोधी सोच रखने वाले ऐसे ही देश की संसद तथा विधानसभाओं में ऐसे ही नारा लगाते रहेंगे। ओवैसी द्वारा लगाये गये नारे जय फिलीस्तीन को हटाने मात्र से कुछ नही होगा। ओवैसी जैसे देशद्रोही नेताओं के खिलाफ कार्यवाही होनी जरूरी है।
जिस तरह 18वीं संसद के शपथग्रहण के दौरान ओवैसी ने जय फिलीस्तीन का नारा देकर विश्व में खुद को चर्चा में रख लिया और विश्व के फिलीस्तीन सभर्थक देश भी ओवैसी की तारीफ कर रहे है तथा देश में बैठे देश के गद्दार भी ओवैसी के इस नारे से खुश है लेकिन जिन नेताओं को देश की जनता ने चुनकर संसद में भेजा ,वही नेता ओवैसी जैसे नेता के नारे का विरोध करना तो दूर, एक बयान भी नही दिये। विपक्ष के नेताओं को सत्ता सुख के लिए देश की एकता और अखण्डता से कोई लेना देना नही है। देश रहे चाहे लुट जाये, किसी तरह सत्ता मिले। ओवैसी के नारे के बाद कांगेस, सपा समेत सभी विपक्षी दलों का मूक समर्थन देश के भविष्य के लिए चिंताजनक है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)