हमास के कारण 20 हजार से अधिक फिलिस्तीनियों का कत्ल, ऐसे तत्वों से सावधान रहे भारतीय मुसलमान

हमास के कारण 20 हजार से अधिक फिलिस्तीनियों का कत्ल, ऐसे तत्वों से सावधान रहे भारतीय मुसलमान

हालिया खबरों में, मलप्पुरम में जमात-ए-इस्लामी की युवा शाखा, सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट द्वारा आयोजित फिलिस्तीन समर्थक रैली में हमास नेता खालिद मशाल के एक आभासी संबोधन ने न केवल भारतीय गुप्तचर संस्थाओं के कान खड़े कर दिए हैं अपितु दुनिया के अमनपसंद लोगों ने भी इसकी आलोचना की है। यह चिंता का विषय है। इस संबोधन पर न केवल राज्य के विभिन्न राजनीतिक गुटों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, बल्कि भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मशाल ने अपने भाषण में हमास के विरोधियों पर कार्रवाई की बात कही। उन्होंने न केवल इजरायली बेस पर हमले की बात कही अपितु इजरायल को किसी भी प्रकार के समर्थन करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई का आह्वान किया। यह खतरनाक है और वैश्विक इस्लामिक आतंकवाद का एक विभत्स रूप है। इसका समर्थन करना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।

खालिद के संबोधन ने विचार के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए हैं। खालिद मशाल हमास का नेतृत्व करते हैं, जो एक फिलिस्तीनी संगठन है जिसे संयुक्त राष्ट्र और कई देशों द्वारा आतंकवादी समूह के रूप में नामित किया गया है। हमास को संयुक्त राष्ट्र ने एक खतरनाक संगठन के रूप में चिंहित कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय फिलिस्तीनी राज्य से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को अधिकृत निकाय के रूप में मान्यता दे रखा है। इसके विपरीत, हमास 1970 के दशक में प्रमुखता में आया और उसने पीएलओ के अधिकार को प्रभावी ढंग से चुनौती दी। इसके बाद हमास ने पीएलओ से अपदस्थ कर दिया और फिलिस्तीन का खुदमुख्तार बन गया है। इसे दुनिया के कई मुस्लिम देशों ने भी प्रतिबंधित कर रखा है। इससे हमास की वैधता पर सवाल उठता है। सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में फिलिस्तीनी जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है? यह तथ्य कि हमास को संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है, महत्वपूर्ण है। यही नहीं दुनिया के कई प्रेक्षक यह भी मानते हैं कि हमास फिलिस्तीन के लिए नहीं अपतु इजरायल के लिए ही काम करता है। यही कारण है कि जब-जब हमास ने इजरायल के खिलाफ मोर्चा खोला है तब-तब इजरायली सेना फिलिस्तीनियों का दम कर अपने क्षेत्र का विस्तार किया है। फिलिस्तीनी नेतृत्व के भीतर विभाजन लंबे समय से फिलिस्तीनी-इजराइली संघर्ष के लिए एकीकृत दृष्टिकोण प्राप्त करने में बाधा रहा है। भारत सहित दुनिया के कई देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इन पदनामों से जुड़े व्यापक निहितार्थों और कानूनी दायित्वों को ध्यान में रखते हुए ऐसे संगठनों के साथ अपनी बातचीत में सावधानी बरतें।

धार्मिक पहलू अक्सर इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के साथ जुड़े हुए हैं। अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम में गहरा महत्व रखता है और इससे संबंधित कोई भी कार्रवाई या बयान दुनिया भर में मुस्लिम समुदायों के बीच मजबूत भावनाएं पैदा करता है। खालिद मशाल की अल-अक्सा का समर्थन करने की अपील कई लोगों के साथ मेल खाती है जो इस मुद्दे को वे धार्मिक चश्मे से देखते हैं। हालाँकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह संघर्ष स्वयं राजनीतिक, ऐतिहासिक और क्षेत्रीय आयामों के साथ बहुआयामी है। धर्म का पार्ट तो बहुत छोटा है। जबकि फिलिस्तीनी मुद्दा कई लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है, खासकर उनके लिए जो न्याय और मानवाधिकारों की वकालत करते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी कारण के समर्थन में की गई कार्रवाई अनजाने में समाज के भीतर अशांति को न बढ़ावा दे। किसी विशेष मुद्दे पर एकजुटता व्यक्त करने और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना फिलहाल हमारे देश और समाज दोनों के लिए जरूरी है।

खालिद मशाल के संबोधन और व्यापक इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को लेकर विवाद और बहस के बीच, यह याद रखना जरूरी है कि गाजा की स्थिति ऐसी है जिसने कई हलकों से गहरी चिंता और आलोचना पैदा की है। जबकि इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष की जटिलताएं निर्विवाद हैं, सैन्य अभियानों के दौरान नागरिक जीवन के लिए आनुपातिकता और सम्मान के सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता एक सार्वभौमिक नैतिक दायित्व है। इन कार्रवाइयों की आलोचनात्मक जांच की जानी चाहिए और मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के किसी भी उल्लंघन की निंदा की जानी चाहिए। रचनात्मक बातचीत, कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से इस लंबे संघर्ष का उचित और स्थायी समाधान खोजा जा सकता है। शांति की खोज में, यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि गाजा की लड़ाई और न कहीं भड़क जाए और अन्य क्षेत्र के लोग इससे प्रभावित हो जाएं। हमास की बेवकूफी के कारण फिलिस्तीन में अबतक 20 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए।

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