नई दिल्ली/ पाकिस्तान के एक हिंदू सांसद ने संसद के निचले सदन में विधेयक पेश कर संविधान में धार्मिक अल्संख्यकों का उल्लेख ‘गैर-मुस्लिम‘ के रूप में करने का अनुरोध किया है। इसके पीछे सांसद ने तर्क दिया है कि इससे देश में भेदभाव खत्म करके प्रत्येक नागरिक के लिये समानता और न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा।
विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के सांसद कीसो मल कीआल दास ने नेशनल असेंबली प्रक्रिया एवं कामकाज संचालन नियम, 2007 के नियम 118 के तहत नेशनल असेंबली में गैर-सरकारी विधेयक पेश किया।
संविधान संशोधन अधिनियम, 2021 नामक इस विधेयक का मकसद पाकिस्तानी गैर-मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव खत्म करना है, जिन्हें संविधान में अल्पसंख्यक कहा गया है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को स्वीकार कर तत्काल प्रभाव से पेश किया जाना चाहिये।
सरकार ने विधेयक का विरोध नहीं किया है और मामला संबंधित स्थायी समिति को भेज दिया गया है। सदन की द्विदलीय समिति द्वारा इसकी समीक्षा किए जाने के बाद, इसे मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
दास ने विधेयक में कहा, ‘‘देश की बड़ी आबादी को अल्पसंख्यक घोषित करके उनसे भेदभाव करना संविधान, 1973 की भावना के विरुद्ध है। इस आबादी ने जीवन के हर क्षेत्र और देश के विकास तथा उज्ज्वल भविष्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।‘‘
उन्होंने कहा, ‘‘(संविधान में) चार बार ‘अल्संख्यक‘ और 15 बार ‘गैर-मुस्लिम‘ शब्द का उपयोग किया गया है, जो संविधान निर्माताओं के आशय को दर्शाता है। लिहाजा, अल्पसंख्यक की जगह गैर-मुस्लिम शब्द का उपयोग कर विसंगति को दूर किया जाना चाहिये।‘‘
उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन पाकिस्तान में प्रत्येक नागरिक के लिए समानता और न्याय स्थापित करने का एक रचनात्मक प्रयास होगा। पाकिस्तान की कुल 22 करोड़ की आबादी में गैर-मुस्लिमों की आबादी 3.5 प्रतिशत के करीब है।
पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। आधिकारिक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू रहते हैं। हालांकि, हिंदू समुदाय के अनुसार उनकी आबादी 90 लाख से अधिक है।
पाकिस्तान में हिंदू आबादी का एक बड़ा हिस्सा सिंध प्रांत में बसा है। हिंदुओं के अलावा पाकिस्तान में अन्य अल्पसंख्यकों में ईसाई, अहमदी, बहाई, पारसी और बौद्ध शामिल हैं।