गौतम चौधरी
पंजाब एक बार फिर से उबला पड़ा है। इस बार खालिस्तानी सोच को किसी अमृतपाल सिंह नामक युवक का नेतृत्व मिला है, जो लगातार प्रचार कर रहा है कि पंजाब के साथ नाइंसाफी हुई है और उसके लिए सीधा केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। अमृतपाल का यह भी तर्क है कि जब सामाजवाद, इस्लामिक राष्ट्र और हिन्दू राष्ट्र पर चर्चा हो सकती है तो फिर खालिस्तान पर चर्चा क्यों नहीं हो सकती है। ऐसी चर्चा है कि पंजाब के सिख युवक अमृतपाल में संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को देख रहे हैं। अमृतपाल के बारे में कोई कुछ भी कहे, कि वह अपनी बाल कटा चुका है, कि वह पक्का सिख नहीं है, कि वह किसी खास मकसद के लिए सिख युवकों का उपयोग कर रहा है लेकिन उसकी ताकत दिन व दिन बढ़ रही है। जिस प्रकार अमृतपाल को पंजाब में महत्व दिया जा रहा है उससे साफ जाहिर होता है कि उसके पीछे कोई खास लाॅबी काम कर रही है। हालांकि इसका पता लगाना खुफिया एजेंसियों का काम है लेकिन जिस प्रकार अमृतपाल की हैसियत बढ़ रही है और वह जिस सोच को लेकर आगे बढ़ रहा है, उससे साफ लगता है कि पंजाब की फिजाओं में बारूद की गंध है।
इसकी आशंका पहले भी व्यक्त की जा चुकी है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सरदार प्रकाश सिंह बादल दोनों यह कह चुकी हैं कि पंजाब जैसे संवेदनशी प्रदेश की जिम्मेदारी अनुभवही व्यक्ति को नहीं सौंपा जा सकती है। लेकिन यहां लोकतंत्र है और लोकतंत्र में तो जिसकी बहुमत होती है उसी की सरकार बनती है। हालिया विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिली और उसने अपना नेता एक विदूषक को चुना। कल तक मस्खरी कर वाहवाही लुटने वाला व्यक्ति आज पंजाब का नीति निर्धारक है। ऐसे में पंजाब का वही होना था जो फिलहाल हो रहा है। पंजाब में जिस पार्टी की सरकार है उसका न तो दिल्ली में कोई जनाधार रहा है और न ही पंजाब में है। दिल्ली प्रदेश में भाजपा के असंतुष्टों ने आम आदमी पार्टी को मजबूती प्रदान की है। साथ ही बिहार और उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने क्षणिक लाभ के लिए आम आदमी पार्टी का समर्थन किया, जो कभी कांग्रेस के वोटर हुआ करते थे। पंजाब में आम आदमी पार्टी का जनाधार भी दिल्ली की तरह फंतासी है। यही कारण है कि पंजाब को एक बार फिर से उग्रवाद अपने चंगुल में दबोचने का प्रयास कर रहा है।
पंजाब की समस्या के पीछे जो दिख रहा है वही नहीं है। इस समस्या पर गहराई से पड़ताल की जरूरत है। बता दें कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की कुछ आर्थिक सुधार वाली नीतियों के कारण देश के खुदरा व्यापारियों में असंतोष है। इस असंतोष का सबसे ज्यादा असर देश के पश्चिम और उत्तरी क्षेत्र में है। इसके अंतर्गत मुंबई, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मे कश्मीर और लद्दाख आते हैं। यही कारण है कि इस पूरी पट्टी में से भाजपा केवल दो प्रांतों के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर पायी, बांकी के राज्यों में बुरी तरह हार चुकी है। जानकारों की मानें तो गुजरात 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अगर कोई पटेल चेहरे को आगे कर चुनाव नहीं लड़ती तो वहां भी हार सूनिश्चित थी। हरियाणा में भी भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं बतायी जा रही है।
अभी हाल के किसान अन्दोलन के पीछे भी इसी खुदरा व्यापारियों की भूमिका चिंहित की गयी है। केन्द्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि विधयक को भी पंजाब के व्यापारियों ने विरोध किया और सरकार के विरुद्ध आन्दोलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान पंजाबी व्यापारियों ने बढ़-चढ़ कर आम आदमी पार्टी का समर्थन किया। इस समर्थन के दौरान वे यह भूल गए कि पंजाब की आम आदमी पार्टी दिल्ली की आम आदमी पार्टी से एकदम भिन्न है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के पीछे वे लोग हैं जो कभी खलिस्तान और पृथकतावाद का समर्थन करते थे। अब जब सरकार बन गयी तो आम आदमी पार्टी के अंदर जो क्षद्म पृथकतावादी समूह था, उसका चेहरा अब बेनकाब होने लगा है। पंजाब के खत्री, बनिया और बाभन एक बार फिर अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अबकी बार उन्हें न तो कांग्रेस का सहयोग मिल रहा है और न ही भाजपा का। वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस अब हिन्दुओं के सहयोग की स्थिति में नहीं है। रही बात भाजपा की तो इन्होंने आम आदमी पार्टी का सहयोग किया, इसलिए अमृतपाल के मामले में केन्द्र सरकार भी कन्नी काट रही है।
पंजाब में दो प्रकार का नैरेटिव सेट किया गया है। पहला कि केन्द्र सरकार पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करती है और दूसरा कि अमृतपाल केन्द्रीय एजेंसी का बंदा है। गौर करने पर यह दोनों नैरेटिव गलत लगता है। यदि पंजाब के साथ केन्द्र सौतेला व्यवहार करता तो पंजाब को दी जाने वाली रियायत बंद कर दी गयी होती। दूसरा, अमृतपाल केन्द्रीय एजेंसी का बंदा होता तो भला वर्तमान पंजाब पुलिस उसे इतनी छूट क्यों दे रखी है? सच तो यह है कि अमृतपाल पंजाब की पृथकतावाद समर्थक शक्तियों का नया डिजाइन है। इस डिजाइन को विदेशी शक्तियों ने प्रशिक्षित किया है और वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार में कुछ ऐसे तत्व हैं जो उसकी तरफदारी कर रहे हैं। हां, इस मामले में केन्द्र सरकार भी कोई दूध की धुली नहीं है। वह भी अपनी रोटी सेंक रही है। उसे पता है कि कांग्रेस के पराभव के बाद पंजाब में कांग्रेसी हिन्दू उनकी ओर तभी झुकेंगे जब पूरी तरह आतंकवाद से त्रस्त होंगे। अमृतपाल के मामले में केन्द्र सरकार की ढ़ील का यह भी एक कारण हो सकता है।
मामला चाहे जो भी हो यदि इस नासूर को जल्द ठीक नहीं किया गया तो पंजाब देश के लिए कैंसर साबित होगा। यह प्रदेश फिर से आतंकवाद की गिरफ्त में होगा। हालांकि इस देश को अब तो कुछ होना जाना नहीं है लेकिन पंजाब और पंजाबियत को बहुत घटा पहुंचेगा। इसलिए पंजाब को बंदूक की राजनीति का अखाड़ा बनने से रोकना होगा। इसे विदेशी शक्तियों से भी महफूज रखना होगा क्योंकि पंजाब इस पूरे खित्ते के लिए भविष्य का नेता है।