भयंकर बेरोज़गारी की मार झेल रही पंजाब की जनता

भयंकर बेरोज़गारी की मार झेल रही पंजाब की जनता

गुरप्रीत चोगावां

पंजाब में बेरोजगारी सारी हदें पार कर चुकी है। सरकारी पक्का रोजगार मिलना तो दूर की बात है, अब लोगों के लिए निजी क्षेत्र में भी रोजगार के मौके लगातार कम हो रहे हैं। पंजाब सरकार के “रोजगार मेले” और “घर-घर रोजगार” जैसी योजनाएँ हवा-हवाई ही साबित हुई हैं। कोरोना लॉकडाउन के बाद गैर-रस्मी रोजगार का भी उजाड़ा होने के कारण बेरोजगारी की समस्या और भयंकर हो गई है।

भारतीय संसद में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कुल बेरोजगारी दर 7.3ः है, जो कि पूरे भारत की औसत बेरोजगारी की दर 5.8ः से ज्यादा है। पंजाब सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट (2020-21) के अनुसार 15 से 29 साल के नौजवानों में बेरोजगारी दर 21 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह 7.7 प्रतिशत है। अगर पढ़े-लिखों में बेरोजगारी की बात करें तो 12 वीं पास में बेरोजगारी दर 15.8 प्रतिशत, डिप्लोमा पास में 16.4 प्रतिशत, ग्रैजुएट पास में 14.5 प्रतिशत, और पोस्ट-ग्रैजुएट में 14.1 प्रतिशत है। पंजाब में बेरोजगारी की भयानकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगस्त 2021 में हुई पटवारी की भर्ती के पेपर में सिर्फ 1150 आसामियों के लिए 2 लाख से अधिक नौजवानों ने फॉर्म भरे। राज्य के 47 सरकारी कॉलेजों में 1995 के बाद अब 2021 में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती हुई है।

एक अनुमान के अनुसार इस समय पंजाब के सरकारी कॉलेजों में केवल 325 नियमित अध्यापक ही काम कर रहे हैं। लगभग 50 सरकारी स्कूलों में कोई भी पक्का अध्यापक नहीं है। ऐसी हालतों में भी पंजाब सरकार ने अपने “खर्चे” कम करने के लिए बिजली बोर्ड में 40,000 पद खत्म करने का काम शुरू कर दिया है। इसी साल जुलाई महीने में गुरु गोबिंद सिंह सुपर थर्मल प्लांट, रोपड़ में 720 पद खत्म कर दिए गए हैं। लहरा मुहब्बत थर्मल प्लांट में 274 आसामियाँ खत्म कर दी गईं। 2020 में बिजली बोर्ड में से 3216 आसामियों को खत्म किया गया। जिक्र लायक यह है कि बिजली बोर्ड में 75,757 पद मंजूरशुदा हैं, जिनमें से 40,000 खाली थे, लेकिन नई भर्ती करने की जगह पर पंजाब सरकार इन पदों को ही खत्म करने की योजना बना चुकी है। खाली पदों में 762 ग्रुप ए, 2862 ग्रुप बी, 30,702 ग्रुप सी, 6158 ग्रुप डी हैं। ये 40,000 पद पिछले कई सालों से खाली पड़े हैं। इसके अलावा रोजाना दिहाड़ीदारों, ठेका मुलाजिमों की आसामियों में 20ः की कटौती की जाएगी।

गौरतलब है कि इस समय पंजाब बिजली बोर्ड में 6427 दिहाड़ीदार, ठेका मुलाजिम काम कर रहे हैं। ये सब तब हो रहा है जब पंजाब में बेरोजगारी भयंकर स्तर पर पहुँच चुकी है। निजीकरण उदारीकरण की नीतियाँ लागू करने में पंजाब सरकार किसी भी पक्ष से मोदी सरकार से पीछे नहीं है। जनता के टैक्सों से बनी सरकारी संपत्ति कौड़ियों के भाव निजी हाथों में सौंपी जा रही है। ऐसे भयानक बेरोजगारी के दौर में जो नौकरी निकलती भी है, उनमें भी सरकारी अफसरशाही की घपलेबाजी के कारण नौकरी प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। ज्यादातर मामलों में पहुँच वाले लोगों को ही नौकरी मिलती है। कुछ समय पहले हुई कांस्टेबल भर्ती में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध जब बेरोजगार नौजवानों ने धरना लगाया तो जालंधर में उन पर लाठीचार्ज किया गया। इस लाठीचार्ज में कई नौजवान जख्मी हो गए। बी.एड टैट पास अध्यापक भी अपनी माँगें मनवाने के लिए धरने लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री परगट सिंह और मुख्यमंत्री चन्नी की ओर से तरह-तरह के वादे और लाठियों के सिवाय इन अध्यापकों को कुछ नहीं मिला। वैसे तो परगट सिंह ने 9000 खाली आसामियाँ भरने के लिए नोटिफिकेशन जारी करने का वादा तो किया है, लेकिन फिर भी अध्यापकों ने नोटिफिकेशन निकलने तक संघर्ष जारी रखने का फैसला किया है।

पंजाब रोडवेज, पनबस, पी.आर.टी.सी. के कच्चे मुलाजिम भी पिछले कुछ समय से हड़ताल पर हैं। 2011 के बाद कच्चे मुलाजिम लगातार संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने इन्हें पक्का नहीं किया। सरकार उल्टा मुलाजिमों पर पर्चे करने और नौकरी से निकालने की धमकी दे रही है। कोरोना काल में भर्ती किए “कोरोना योद्धे” भी सरकार से पक्की नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हर साल पक्की नौकरी के टेस्टों के नाम पर करोड़ों रुपए के फॉर्म भरवा लिए जाते हैं, या तो टेस्ट का नतीजा नहीं निकलता या फिर नकल, धोखाधड़ी के नाम पर परीक्षा रद्द कर दी जाती है। जिसके कारण नौजवान मानसिक तनाव का और बेगानगी का शिकार हो रहे हैं।

नौजवानों में नशे और आत्महत्याओं के बढ़ने का बड़ा कारण बेरोजगारी भी है।ढइतझइन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि पंजाब में किसी भी पूँजीवादी राजनीतिक पार्टी ने बेरोजगारी की समस्या दूर करने के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया, बल्कि निजीकरण, उदारीकरण की नीतियों से लोगों की तकलीफों में और वृद्धि ही हुई है। अब 2022 में भी चुनाव का मौसम नजदीक होने के कारण रंग-बिरंगी राजनीतिक पार्टियाँ जनता को मुफ्त खैरात, सेवाएँ मुफ्त करने के वादे तो कर ही रही हैं, लेकिन इनमें से कोई भी पूँजीवादी राजनीतिक पार्टी का कोई ठोस हल करने में असमर्थ है। आप, कांग्रेस, अकाली आदि कोई भी पार्टी कोई ठोस आर्थिक नीति पेश नहीं कर रही (असल में वो कर ही नहीं सकते)।ढइतझबेरोजगारी के लिए आम तौर पर बढ़ती आबादी को बड़ा कारण बनाकर पेश किया जाता है। ये पूँजीवादी बुद्धिजीवियों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाना वाला कुतर्क है।

पहली बात, आबादी बढ़ने से चीजों और सेवाओं की माँग भी बढ़ती है और यह बढ़ी माँग नया रोजगार भी पैदा करती है। दूसरी बात, अगर काम करने वालों की गिनती बढ़ी भी हो तो काम के घंटे कम करके अधिक लोगों को रोजगार दिया जाता है। तीसरी बात, पंजाब में 1971 के बाद आबादी की वृद्धि दर लगातार कम हुई है। 1971 में पंजाब में आबादी की वृद्धि दर 2.4ः थी जो 2011 में 1.4ः रह गई। पंजाब में जनन दर जो 1971 में 5.2ः थी वह 2018 में 1.6ः तक आ गई है। ये जनन दर समाज में आबादी को स्थिर रखने की दर से 2.1ः से भी कम है। जबकि पंजाब के आर्थिक साधन लगातार बढ़े हैं। असल में पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजी का केंद्रीकरण होने से बड़ी पूँजी छोटी पूँजी को खत्म करती जाती है।

पूँजीवाद में बड़ी पूँजी के हाथों छोटी पूँजी का उजाड़ा अटल है जिससे छोटे मालिक, छोटे किसान, छोटे व्यापारी उजड़कर मजदूरों में शामिल होते हैं। उत्पादन के साधन मुठ्ठी-भर पूँजीपतियों के पास इकट्ठे हो जाते हैं। पूँजीपति हमेशा चाहते हैं कि वो कम-से-कम मजदूरों से अधिक-से-अधिक काम लें और उन्हें कम-से-कम वेतन दें। नई उन्नत मशीन आने के कारण मजदूरों की छँटनी कर दी जाती है। इस तरह मजदूरों की एक विशाल आरक्षित फौज तैयार हो जाती है। समाज में फैली बेरोजगारी का भी पूँजीपतियों को ही लाभ होता है। इस आरक्षित फौज का इस्तेमाल करके वेतन को कम रखने की कोशिश की जाती है। जनता में बेरोजगारी के प्रति भी कई भ्रम पैदा किए जाते हैं जैसे कि दूसरे धर्म, जाति, नस्ल के लोग आपकी नौकरियाँ छीन रहे हैं आदि, ताकि लोग बेरोजगारी के असल कारण से परिचित ना हो सकें, इस पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध जनता में चेतना ना उभर सके।ढइतझबेशक बेरोजगारी इस व्यवस्था की समस्या है, जिसे इस व्यवस्था में रहकर कभी भी हल नहीं किया जा सकता है। लेकिन अपने आपको जनवादी कहलवाने वाली व्यवस्था का यह फर्ज बनता है कि वो हर नागरिक को रोजगार दे।

हमें हर व्यक्ति के रोजगार, और रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ते की माँग करनी चाहिए। वर्तमान हालत में भी इस व्यवस्था में रोजगार के काफी अवसर पैदा किए जा सकते हैं। स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा का निजीकरण रोका जाना चाहिए। लेकिन पंजाब की राजनीतिक पार्टियाँ सिर्फ निजी पूँजी के हितों के लिए काम करती हैं। जनता का ख़ून चूसकर पूँजीपतियों के मुनाफे को शिखर पर पहुँचाना यही इन राजनीतिक पार्टियों का काम है। इस काम के लिए जोर-शोर से निजीकरण की नीतियाँ लागू करने में इनमें से कोई भी राजनीतिक पार्टी पीछे नहीं है।ढइतझइसलिए क्रांतिकारी संगठनों का फर्ज बनता है कि वो इस व्यवस्था में सबके लिए रोजगार और बेरोजगारी भत्ते की माँग करते हुए जनता को बेरोजगारी के असल कारणों के बारे में भी जागरूक करें और पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध जनांदोलन खड़ा करें। जितनी देर ये पूँजीवादी व्यवस्था रहेगी उतनी देर बेरोजगारी की समस्या रहेगी। पंजाब में भी भले ही किसी भी पार्टी की सरकार बन जाए, उनके पास मेहनतकश जनता को देने के लिए ना मुफ्त शिक्षा है, ना रोजगार है।

(लेखक मुक्ति संग्राम मासिक पत्रिका के नियमित स्तंभकार हैं। लेखक के अपने निजी विचार हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »