गौतम चौधरी
हाल ही में, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने पूरे देश को चौंका देने वाली घटना को अंजाम दिया। दरअसल, पीएफआई की युवा शाखा, कैंपस फ्रंट आॅफ इंडिया के नेताओं ने सेंट जॉर्ज स्कूल के साथ ही साथ कोट्टंगल, चुंगप्पारा और पठानमथिट्टा के कुछ विद्यालय जाने वाले विद्यार्थियों (ज्यादातर गैर-मुस्लिम) की वर्दी पर ‘मैं बाबरी’ संदेश वाला स्टिकर चिपका दिया। पीएफआई की युवा शाखा ने यह स्टिकर केवल चिपकाया ही नहीं उन लोगों ने बाकायदा उसका वीडियो उतारा और सोशल मीडिया पर प्रचार भी किया। कैंपस पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नेता केरल के के इन जिले में 06 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की वर्षगांठ मना रहे थे। यह घटना कोई साधारण घटना नहीं है। यह उस स्मृतियों को बनाए रखने की कोशिश है, जिसके कारण देश बहुत परेशान हो चुका है।
कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने वर्षगांठ शब्द की व्याख्या करते हुए लिखता है कि यह उस दिन के रूप में परिभाषित किया है जिस दिन पिछले वर्ष में एक महत्वपूर्ण घटना हुई थी। जन्म वर्षगाँठ, मृत्यु वर्षगांठ, विवाह वर्षगाँठ आदि मनाने की परंपरा पुरानी रही है लेकिन किसी अप्रिय घटना की याद अमूमन कम ही देखने को मिलता है। खासकर एक राष्ट्र के लिए यदि कोई घटना सामाजिक सौहार्द को क्षति पहुंचाने वाली हो और उसकी बरसी मनाई जाए तो यह साफ तौर पर देश विभाजक मानसिकता का परिचायक है। बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना इस देश के लिए बेहद खतरनाक घटना थी। इस घटना को लेकर कई वर्षों तक देश के दो समुदायों के बीच गतिरोध कामय रहा। इसे फिर से जीवित करने की कोशिश देश की एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ है। पीएफआई की युवा शाखा के द्वारा यह कार्यक्रम निश्चित रूप से राष्ट्र के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का अतीत हिंसक रहा है।
यह संगठन इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा में विश्वास करता है और ओटोमन साम्राज्य की तरह खिलाफत परंपरा को फिर से जीवित करने की कोशिश में लगा है। इसे विवेक, सांप्रदायिक सद्भाव, भाईचारे आदि से कोई लेना देना नहीं है। यह संगठन भारत की सहिष्णुतावादी सांस्कृतिक परंपरा के खिलाफ देश को विभाजित करने की योजना में लगा है। इसकी योजना भारतीय उपमहाद्वीप में आईएसआईएस जैसे संगठन को खड़ा करना और उसी प्रकार के इस्लामिक आन्दोलन को प्रारंभ करना है। यह सांप्रदायिक हिंसा, उग्रवाद, आतंकवाद, इस्लामिक स्टेट आदि जैसे शब्दों के साथ सहानुभूति रखता है और अपनी पहचान के साथ इन चिंतनों को जोड़कर रखने की कोशिश करता है। इससे साफ हो जाता है कि पीएफआई भारतीय उपमाद्वीप को सीरिया बनाने की कोशिश में लगा है।
मै बाबरी बाला स्टिकर वाले प्रकरण के दौरान तीन चीजें काफी परेशान करने वाली थी, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। पहला, जबकि पूरा देश आगे बढ़ चुका है, पीएफआई जैसे संगठन अभी भी सस्ते राजनीतिक लाभ के लिए निर्दोष मुसलमानों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करके माहौल को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश कर रहा है। दूसरे, पीएफआई के कार्यकतार्ओं ने अपने नफरत के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मासूम स्कूल जाने वाले बच्चों को भी नहीं बख्शा, जो पीएफआई के कामकाज के तौर-तरीकों पर सवालिया निशान लगाता है। अंतिम यह की (पीएफआई) के जघन्य कृत्य से पता चलता है कि विशेष रूप से केरल राज्य में पीएफआई कैडरों के बीच निडरता की भावना है जो हिंसा के इतिहास और राज्य में पीएफआई कैडरों की दोषसिद्धि की कमी से और अधिक प्रभावशाली हुआ है।
पदम जंगल में हथियार प्रशिक्षण शिविर लगाना, एक प्रोफेसर के हाथ काटना, आईएसआईएस और एक्यूआईएस में शामिल होने वाले पीएफआई कैडर, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या, बदला लेने की हत्या आदि ने बार-बार साबित किया है कि पीएफआई कैडर केरल को एक और सीरिया में बदलने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। किशोर बच्चों पर बाबरी का बैज लगाना एक महत्वपूर्ण घटना है। हालांकि अपराधियों के खिलाफ केरल में मामले दर्ज किए गए हैं, भारत के न्यायिक इतिहास में ऐसा देखा गया है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में खामियों का फायदा उठाते हुए, पीएफआई कार्यकर्ताओं ने हमेशा पैसे, ताकत और हेरफेर का उपयोग करके खुद को बचाता रहा है। इसलिए यदि भविष्य में भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखना है तो इस्लाम के ओटोमन एवं ब्रदर हुड वर्जन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया जाए।