पटना/ सब कुछ ठीक रहा तो बिहार भाजपा आसन्न लोकसभा एवं उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव उत्तर प्रदेश के तर्ज पर लड़ेगी। इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों ने, बिहार फतह करने के लिए हार्डकोड हिन्दुइजम को अपना हथियान बनाने का फैसला तो किया ही है, साथ ही उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एक खास जाति विशेष को दरकिनार करने की रणनीति भी बना ली है।
बिहार भाजपा विगत कई चुनावों में कई प्रयोग कर चुकी है। यहां तक कि भाजपा ने यादव जाति में अपना जनाधार मजबूत करने के लिए नित्यानंद राय को न केवल प्रदेश अध्यक्ष बनाई, अपितु मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करने का इशारा भी किया। बावजूद इसके यादवों का बड़ा तबका आज भी लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ खड़ा दिख रहा है। इस रणनीति के कारण भाजपा के पारंपरिक वोटर भी नाराज होते रहे हैं।
जब से बिहार में गुजरात मूल के संगठन मंत्री भिक्खू भाई दलसानिया का प्रभाव बढ़ा है, तब से भाजपा हार्डकोड हिन्दुइजम के साथ ही पिछड़ी जातियों में अपना जनाधार बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रही है। दलसानिया के बारे में बताया जाता हैं कि वे न केवल मझे हुए रणनीतिकार और सधे हुए संगठनकर्ता हैं, अपतु संगठन के गुजरात व उत्तर प्रदेश माॅडल के जानकार भी हैं। दलसानिया गुजराती पटेल हैं। हालांकि गुजरात में पटेल यानी पट्टीदार उच्च वर्ग में आते हैं लेकिन अन्य प्रांतों में पटेल यानी कुर्मी पिछड़ी जाति के अंग हैं। बिहार में कुर्मियों की संख्या अच्छी है। इसके साथ ही कुशवाहा की संख्या भी यादव के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि बिहार सरकार के द्वारा जारी हालिया जातिगत जनगणना में कुशवाहा की संख्या बहुत कम बतायी गयी है लेकिन इसकी संख्या प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में मिल जाती है।
दलसानिया, यादव को छोड़ अन्य पिछड़ जाति पर अपना ध्यान केन्द्रित करने लगे हैं। उन्हें पक्का भरोसा है कि केवल हार्डकोड हिन्दुइजम के सहारे बिहार फतह नहीं किया जा सकता है। इसके लिए गुजरात की तरह जातीय समीकरण को भी साधना होगा। बता दें कि गुजरात में नरेन्द्र भाई मोदी ने भाजपा को स्थापित करने के लिए कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंक वाले ‘खाम’ समीकरण के खिलाफ एक मजबूत जातीय समीकरण खड़ा किया। उस समीकरण में मोदी ने भाजपा के पारंपरिक वोटर पट्टीदार को तो शामिल किया ही साथ में अनुसूचित जाति व जनजाति, ब्राह्मण, वैश्य एवं अन्य पिछड़ी जाति को भी भाजपा के साथ जोड़ दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज भी गुजरात भाजपा का अभेद्य किला बना हुआ है।
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने अन्य पिछड़ी जाति को अपने साथ जोड़ा है। इसमें यादवों को भाजपा किनारे लगा रखी है। खास कर हाल बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा यादव जाति के नेताओं से परहेज कर ली। बिहार में भाजपा यही समीकरण दुहराने की योजना बनायी है। भारतीय जनता पार्टी के एक खास नेता ने बताया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बिहार में यादव नेताओं का टिकट काटेगी। उसके स्थान पर अन्य पिछड़ी जाति के नेताओं को टिकट दिया जाएगा। यही नहीं इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा पटना, उजियारपुर, मधुबनी आदि सीटों पर किसी उच्च वर्ग के नेता को भी चुनाव लड़ा सकती है।
इस मामले में यदि ऐसा कहा जाए कि राजस्थान के रहने वाले भूपेन्द्र यादव की रणनीति पर काम करने वाली बिहार भाजपा अब यादवों से कन्नी काटने की योजना बना ली है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस मामले में भाजपा के रणनीतिकारों का तर्क यह है कि पाटलीपुत्र लोकसभा क्षेत्र में निःसंदेह यादवों की संख्या अच्छी है लेकिन रामकृपाल यादव को यादवों का वोट कम और राष्ट्रीय जनता दल को अधिक प्राप्त होता है। यही स्थिति उजियारपुर में नित्यानंद राय की भी है। मधुबनी से अशोक यादव भी यादवों के वोट से नहीं जीतते हैं। जानकारों की मानें तो पटना, उजियारपुर और मधुबनी में भूहिार एवं मैथिल ब्राह्मण इन्हें वोट न दे तो इनकी जीत कभी संभव नहीं हो पाएगी।
यदि बिहार प्रदेश भाजपा महामंत्री संगठन भिक्खू भाई दलसानिया का यह ‘आॅपरेशन यादव’ सफल रहा तो आने वाले 2025 के विधानसभा में भी भाजपा उसी समीकरण को दुहराएगी और यादवों को दरकिनार कर चुनाव मैदान में उतरेगी। जिसके आसार अभी-से दिखने लगे हैं। इसी समीकरण के तहत बिहार भाजपा ने एक मजबूत कुशवाहा नेता को पार्टी की कमान सौंपी है।