पुरोला की घटना : एक बार फिर माननीय न्यायालय ने अपनी निष्पक्षता साबित की

पुरोला की घटना : एक बार फिर माननीय न्यायालय ने अपनी निष्पक्षता साबित की

हसन जमालपुरी 

विगत दिनों उत्तराखंड स्थित जिला उत्तरकाशी के पुराला शहर में एक घटना घटी। उस घटना के दौरान एक संप्रदाय विशेष के लोगोें की कई दुकाने जला दी गयी। यही नहीं स्थानीय लोगों ने उस संप्रदाय विशेष को यह चेतावनी भी दे दिया कि वे जल्द से जल्द पहाड़ खाली कर दें। इस मामले की जब तह तक जांच की गयी तो मामला लव जिहाद से जुड़ा सामने आया। दरअसल, दो युवकों द्वारा एक नाबालिग हिंदू लड़की का कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया था। अपहर्ता में एक मुस्लिम युवक का नाम भी सामने आया। जैसे ही मुस्लिम युवक का नाम सामने आया, कुछ लोगों ने इसे साम्प्रदायिक रंग दे दिया। हालांकि यह एक आपराधिक घटना है लेकिन इन दिनों पूरे देश में ऐसा देखने को मिल रहा है। इस प्रकार के सामान्य आपराधिक मामलों में जैसे ही दूसरे समुदाय के लोगों का नाम आता है, लोग उसे साम्प्रदायिक रंग देने लगते हैं। पुरोला में भी ऐसा ही हुआ। इसे विभिन्न समुदायों के लोगों की संलिप्तता ने इस आपराधिक घटना को सांप्रदायिक रंग दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप पुरोला में एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों पर आक्रमण होने लगे और उन्हें अपना काम-धंध छोड़ पलायन को मजबूर होना पड़ा। 

अब सवाल यह उठता है कि क्या सामान्य आपराधिक घटना को सांप्रदायिक रंग दिया जाता रहे या फिर इस पर विराम लगे? इस प्रकार के आपराधिक घटनाओं को साम्प्रदायिक रंग देने से अपराधकर्ताओं का मनोबल बढ़ता है और जांच अभिकरणों को अनुसंधान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि हमें स्वस्थ लोकतंत्र में जीना है तो इस प्रकार की मनोवृति को त्यागना होगा। पुराला की घटना में कथित तौर पर हिन्दू लड़की के अपहरण में दो युवकों की संलिप्तता थी। इसमें से एक युवक हिन्दू था जबकि दूसरा मुसलमान। अब इस मामले को एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ कैसे बताया जा सकता है और इसे लव जिहाद का रंग कैसे दिया जा सकता है? हमें इस दिशा में गंभीरता के साथ सोचना चाहिए। हमारा संविधान जाति, पंथ, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि की परवाह किए बिना संपूर्ण देशवासियों को कई प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करता है। आपराधिक मामलों में भी हमारा कानून पूर्वाग्रही नहीं है। इसलिए सामान्य या विशेष प्रकार के आपराधिक घटनाओं को जाति, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा आदि के चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए। साथ ही कानून एवं न्यायालय पर भरोसा कर इसे शासन के जिम्मे छोड़ देना चाहिए। जैसे ही इसका रंग साम्प्रदायिक होता है वैसे ही अपराधी अपने आप को मजबूत समझने लगता है। इसका खामियाजा अंततः सभ्य समाज को भी भुगतना होता है। इसलिए ऐसे मामलों में समाज को सतर्क दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। 

इसका एक दूसरा पक्ष भी है। ऐसे मामलों में कुछ निहित स्वार्थ वाले लोग अपनी गोटी सेट करने में लग जाते हैं। उनका भी अपना कुछ एजेंडा होता है, जिसके लिए वे लंबे समय से इंतजार कर रहे होते हैं। ऐसे मौकों पर उनका कुछ राजनीतिक फायदा हो जाता है। पुरोला घटना में सांप्रदायिक पैटर्न नजर आने की जल्दी थी, लेकिन सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के बजाय इसे एक आपराधिक मामले के रूप में देखना चाहिए था। संभावित परिणामों से अवगत प्रशासन ने सीआरपीसी 144 लागू करके कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए निवारक उपाय किए, जो एक निर्दिष्ट क्षेत्र में व्यक्तियों की सभा को प्रतिबंधित करता है। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय के त्वरित हस्तक्षेप किया। इसके कारण सांप्रदायिक रूप से प्रेरित महापंचायत को टाल जा सका। प्रशासन ने क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल करने में तत्परता दिखाई। कानूनी प्रणाली को ऐसे मामलों की जांच करने और निर्णय लेने की अनुमति देना महत्वपूर्ण है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक भावनाओं या सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों के दबाव के आगे झुके बिना आम जनता को न्याय दिया जा सके। 

पुराला की घटना में माननीय उच्च न्यायालय की भूमिका की सराहना की जानी चाहिए। साथ ही स्थानीय प्रशासन ने भी अपने राष्ट्रीय धर्म का निर्वहण किया। निष्पक्ष न्यायपालिका द्वारा समर्थित स्थानीय प्रशासन ने  बड़ी संख्या में मुस्लिम व्यापारियों को वापस आने और बिना किसी बाधा के अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने में मदद की है। पवित्र शहर पुरोला में स्थिति तेजी से सामान्य हो रही है और आशा की जा रही है कि पूरे क्षेत्र का माहौल जल्द सामान्य हो जाएगा। साथ ही साम्प्रदायिक माहौल में जो जहर घोला गया है उसे भी समय के साथ समाप्त कर दिया जाएगा। 

भारत जैसे विविध और बहुलतावादी समाज में, कानून का शासन और न्यायपालिका न्याय, समानता और सद्भाव सुनिश्चित करने में मौलिक भूमिका निभाते हैं। संविधान में निहित सिद्धांत किसी के धर्म, जाति या लिंग की परवाह किए बिना व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देते हैं। नागरिकों के लिए कानूनी प्रणाली में विश्वास रखना और ऐसे संवेदनशील मामलों को संबोधित करने और हल करने के लिए अदालतों पर भरोसा करना जरूरी है। यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि पुरोला जैसी घटना हमारे यहां बार-बार घट रही है। इस प्रकार की घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर कुछ लोग राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश लगातार कर रहे हैं लेकिन देश के कानून ने ऐसी कई घटनाओं को नाकाम किया है। इसमें प्रशासन और न्यायपालिका की भूमिका बेहद सराहनीय होती है। सामान्य नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे सतर्क रहें और सांप्रदायिक राजनीति के जाल में न फंसें। विभिन्न धार्मिक और जातीय समूहों के बीच एकता, समझ और सम्मान को बढ़ावा देकर, हम इस तरह के विभाजन पर काबू पा सकते हैं। साथ ही अपने लोकतंत्र को लंबे समय तक के लिए जीवंत रख सकते हैं। 

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना देना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »