गौतम चौधरी
मैं आजकल भूली बिसरी आंचलिक प्रेम कहानियों की खोज में रहता हूं। दरअसल, इन कहानियों में रोचकता और रोमांच तो है ही साथ ही कभी-कभी इससे कई अनसुलझे इतिहास से भी मुठभेड़ हो जाता है। निःसंदेह, इन प्रेम कथाओं में कई बार अतिरेक का अनुभव होता है, तो कई मिथक जुड़ते दिखते हैं। मेरे जैसा आदमी उन प्रेम कहानियों से न तो अतिरेक को अलग कर पाता है और न ही मिथकों को छांटने में सिद्धस्त होता है। इसलिए कहानी जैसी कही-सुनी जाती है, उसी अंदाज में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूं। ऐसी ही एक कहानी बेगूसराय के मंझौल पास की है। पत्रकार महेश भारती ने इस पर बाकायदा उपन्यास भी लिखा है। उपन्यास की चर्चा मैं बाद में करूंगा पहले कहानी सुना देता हूं। प्रेम कहानी कजोमा नामक एक लड़की की है। लगभग 150 वर्ष पहले यह घटना घटी थी।
“कजोमा” यानी सुंदर कन्या नामक लड़की दो बहने थी। कजोमा का प्रेम एक अंग्रेस अधिकारी से हो जाता है। प्रेम तो प्रेम ही होता है। इसपर किसी का बस नहीं चलता। कथा प्रारंभ होती है अंग्रेज अधिकारी से। आज से लगभग 160 वर्ष पहले नील की खेती कराने और नील खेती को गति देने व कोठी बनवाने के लिए फिरंगी हुक्मरानों ने एक अंग्रेज अधिकारी मैकफर्सन की नियुक्ति की। मैकफर्सन युवा और रशिक मिजाज था। जहां नील कोठी की नीब रखी गयी थी वहीं एक पंसारन यानी पान बेचने वाली महिला अपनी दो बेटियों के साथ रहती थी। बड़ी बेटी का नाम कजोमा था और छोटी बेटी का नाम अरहुलिया। अंग्रेज अधिकारी की भाषा अंग्रेजी थी और कजोमा की भाषा ठेठ मैथिली लेकिन दोनों की आंखें मिली और दोस्ती हो गयी। उन दिनों का समाज बेहद रूढ़िवादी था और विधर्मियों से किसी प्रकार का कोई रिश्ता पाप से कम नहीं माना जाता था। कजोमा ने इसकी परवाह नहीं की, तो दूसरी ओर मैकफर्सन ने भी अपनी गरिमा और मर्यादा को ताक पर रख दिया। दोनों के प्रेम परवान चढ़ने गले। रात के अंधेरे में दोनों बूढ़ी गंडक के प्रसांत कछार पर मिलते और प्रेमालाप करते। जब दोनों का मन भर जाता तो अपने-अपने घर चले जाते। पहले इस बात की जानकारी कजोमा की बहन अरहुलिया को मिली। अब अरहुलिया भी कजोमा के साथ प्रेमालाप में शामिल होने लगी। अरहुलिया के साथ भी उस अंग्रेज अधिकारी के संबंध विकसित हो गए। अब दोनों बहने मैकफर्सन के प्रेम में पड़ चुकी थी। इसी बीच दोनों की मां पनसारन को पता चला कि उसकी बेटियां रात में कहीं जाती है। इस बात का पता लगाने के लिए पनसारन ने दोनों का पीछा किया तो उसके पैर के नीचे की जमीन खिसक गयी। उन दिनों स्थानीय स्तर पर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष प्रभावशाली हो रहा था। पनसारन ने सुबह उठकर दोनों की खबर ली और पूछी की आखिर उस अंग्रेज से दोनों क्यों मिलती है? इस प्रश्न का जवाब दोनों ने ऐसा दिया, जिसकी पनसारन कल्पना तक नहीं कर सकती थी। मैकफर्सन के प्रेम की स्वीकार्यता की बात दोनों ने बताई। प्रेम में अपार शक्ति होती है। मां ने धमकाया तो दोनों ने कहा कि चाहे कुछ भी हो हम मैकफर्सन से प्रेम करने लगे हैं और करते रहेंगे। अब यह रुक नहीं सकता है। जैसा हर प्रेम कथा का एक खलनायक होता है, इस प्रेम कहानी में भी एक खलनायक सामने आता है। हालांकि वह आम समाज के लिए एक नायक था लेकिन मैकफर्सन और उसकी दोनों प्रेमिकाओं के लिए वह खलनायक साबित हुआ। उन दिनों अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्षद्म युद्ध करने वालों की एक टीम थी। उस टीम में स्थानीय स्तर पर एक साधु सक्रिय था। उस साधू के बारे में कोई नहीं जानता। कुछ लोग उसे स्थानीय राजा बताते थे लेकिन वास्तविक पता किसी को नहीं थी। कजोमा और उसकी बहन का अंग्रेज अधिकारी मैकफर्सन के साथ प्रेम की जानकारी साधू तक पहुंची। साधु को मानो अंग्रेजों के खिलाफ हथियार मिल गया हो।
अब साधू दोनों बहनों पर नजर रखने लगे। बारिश की रात थी। कजोमा अपनी बहन अरहुलिया के साथ मैकफर्सन से मिलने गंडक घाट की ओर चल दी। साधू ने तय कर लिया कि आज मैकफर्सन की हत्या कर देनी है। साधू पहले बाघ की छाल पहले और अपनी उंगलियों में बघनखा लगाकर नदी किनारे के जंगल में छुप गए। दोनों बहनों के साथ मैकफर्सन भी आए। प्रेमालाप प्रारंभ हुआ। इसी बच साधु की गतिविधि का अंदाज मैकफर्सन ने लगा लिया। उसे पता चल गया कि आसपास कोई खतरा है। वह बंदूक लेने अपनी कोठी की ओर दौरा। अरहुलिया घर की ओर भागी और कजोमा नदी की ओर। इस बात से साधू भी वाकिफ थे। उन्होंने समझ लिया कि उनकी योजना फेल हो चुकी है। वे वापस चले गए। कजोमा का क्या हुआ किसी को पता नहीं लेकिन अरहुलिया जिंदा बच गयी। इसके बाद अंग्रेज अधिकारी भी सतर्क हो गया। कुछ दिनों बाद मैकफर्सन ने अरहुलिया से शादी कर ली और जहां उसके प्रेम परवान चढ़े थे वहां कजोमा की याद में एक शिलापट लगवाया। अरहुलिया मैकफर्सन के साथ कहां गयी किसी को पता नहीं। पनसारन का क्या हुआ, साधु कहां गए, किसी को जानकारी नहीं है लेकिन यह प्रेम कहानी मंझौल के आसपास के कई गांवों में आज भी कही सुनी जाती है।
इस कहानी को केन्द्र बनाकर वरिष्ट पत्रकार महेश भरती जी ने “कजोमा घाट” नामक एक उपन्यास भी लिखा है। उपन्यास बेहद रोचक है। हालांकि आंचलिकता के कारण थोड़ी त्रूटि है, बावजूद इसके उपन्यास पठनीय है। महेश भारती बेगूसराय जिले के स्वतंत्र पत्रकार और पर्यावरणविद हैं तथा इस प्रांत के इतिहास, वर्तमान, राजनीति एवं पर्यावरण तथा वन्यजीवों के विषय मे लंबे समय से लिखते रहे हैं। लेखक से मेरा भी संक्षिप्त परिचय रहा है तथा यदा-कदा मिलना होता रहता है।