शिशिर कौंडिण्य
अभी हाल ही में सेना प्रमुख कार्यालय से पाकिस्तानी सेना के 1971 के सरेंडर वाली तस्वीर हटी ली गयी। कहा जा रहा है कि उसके स्थान पर फिलहाल धार्मिक पेंटिंग लगाई गई है। 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना द्वारा आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की ऐतिहासिक घटना, जो भारत की सबसे बड़ी सैन्य जीत का प्रतीक है, की तस्वीर को सेना प्रमुख के कार्यालय से हटाया जाना एक बड़ी घटना बतायी जा रही है। इसके स्थान पर फिलहाल महाभारत से प्रेरित नई पेंटिंग लगाई गई है। यह तस्वीर दशकों तक कार्यालय में टंगी थी, जहां अक्सर विदेशी गणमान्य व्यक्तियों और सैन्य जनरलों के साथ आधिकारिक बैठकों की पृष्ठभूमि में नजर आती रही थी। इस संदर्भ में सफाई देते हुए भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि नई पेंटिंग नए मायनों में भारत की संस्कृति के साथ जुड़ी है। इस पेंटिंग का नाम उन्होंने कर्म क्षेत्र बताया और कहा कि इसको बनाने का श्रेय 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब को जाता है। उन्होंने यही भी बताया कि नयी सैन्य चुनौतियों को रेखांकित करती यह तस्वीर अब हमें नया मार्गदर्शन कर रही है। हालांकि इस घटना की आलोचना भी खूब हो रही है लेकिन सरकार के अपने पक्ष हैं।
तस्वीर को हटाए जाने की खबर सबसे पहले द टेलीग्राफ ने दी थी, जिसमें बताया गया था कि इस नामचीन ऐतिहासिक तस्वीर के स्थान पर एक नई पेंटिंग लगा दी गई है, जो कथित तौर पर महाभारत से प्रेरित है। लगाए गए नए पेंटिंग में लद्दाख में पैंगोंग झील के तट पर टैंकों और हेलीकॉप्टरों को दर्शाया गया है, जिसमें एक रथ पर सवार योद्धा, एक भगवा वस्त्रधारी ऋषि और एक पक्षी को दिखाया गया है।
कई आलोचकों ने अनुमान लगाया है कि यह बदलाव राजनीति से प्रेरित है। कुछ का मानना है कि सरकार शायद 1971 की जीत की विरासत से खुद को अलग करने की कोशिश कर रही है। दरअसल, वर्तमान सरकार जिस चिंतन पर आधारित है वह पुरानी सरी उपलब्धियों को नकारने की कोशिश कर रही है और यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि जो भी हो रहा है मात्र 2014 के बाद की ही उपलब्धि है। तस्वीर में कही कहीं भारत की प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी का पराक्रम साफ तौर पर दिखता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से प्रभावित नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार इंदिरा के उस पराक्रम के सामने अपने आप को बौना महसूस रही है। संभवतः यही कारण है कि तस्वीर को सैन्य मुख्यालय से हटा दिया गया।
हालांकि, आलोचनाओं के जवाब में रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द टेलीग्राफ के समक्ष ‘कर्म क्षेत्र-कर्मों का क्षेत्र’ शीर्षक वाली नई पेंटिंग का बचाव किया और इसे सेना की ‘धार्मिकता के प्रति शाश्वत प्रतिबद्धता’ का प्रतिनिधित्व बताया। अधिकारी ने बताया कि 28 मद्रास के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब द्वारा बनाई गई यह पेंटिंग, आधुनिक तकनीकी प्रगति के साथ-साथ महाभारत की शिक्षाओं और चाणक्य के ज्ञान से प्रेरित होकर धर्म के प्रति सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
सच पूछिए तो तस्वीर को बदलने के समय ने लोगों को हैरान किया है। खासकर इसलिए क्योंकि नई कलाकृति पूर्वी लद्दाख की मौजूदा जमीनी स्थिति के विपरीत है, जहां भारत और चीन चार साल तक चले सैन्य गतिरोध के बाद पीछे हट गए हैं। इस विषय में एक पूर्व ब्रिगेडियर ने अखबार से कहा, ‘यह चौंकाने वाला है कि सैन्य नेतृत्व ने तस्वीर हटाने पर कोई आपत्ति नहीं जताई और इसके बजाय राजनीतिक दबाव के आगे झुक गया।’
तस्वीर हटाने को लेकर एक बड़ी आलोचना की वजह यह भी है कि यह ऐसे समय में हुआ जब बांग्लादेश का एक बड़ा कट्टर धार्मिक समूह मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका को नजरअंदाज कर रहा है। इन दिनों वह समूह पाकिस्तान की तरहफ झुका हुआ है और भारत की भूरि-भूरि आलोचना कर रहा है। ढाका में आत्मसमर्पण समारोह के दौरान ली गई इस तस्वीर में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट नियाज़ी को पूर्वी क्षेत्र में भारतीय और बांग्लादेशी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया है।
इस विषय में सोशल मीडिया मंच एक्स पर सेवानिवृत्त मेजर जनरल यश मोर ने निराशा व्यक्त की और तस्वीर को ‘हमारे आधुनिक इतिहास की एकमात्र सैन्य जीत’ बताया। उन्होंने कहा कि इसे हटाया जाना दिग्गजों और इतिहास के प्रति उत्साही लोगों के लिए बहुत दुखद है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे हमारे सैनिकों का मनोबल कमजोर होगा।
सेवानिवृत्त वाइस एडमिरल जग्गी बेदी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर चुटकी ली, उन्होंने कहा, ‘समय निश्चित रूप से बदल रहा है। ईख की तरह झुकना नई सामान्य बात है।’ जबकि पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने पोस्ट किया, ‘अन्य देशों के गणमान्य व्यक्ति और सैन्य प्रमुख सेना प्रमुख से मिलेंगे और भारत की सबसे बड़ी सैन्य घटना के प्रतीक को देखेंगे। अब, यह बेकार प्रयास – किसलिए?’
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने पोस्ट किया कि ‘भारत की हजार वर्षों में पहली बड़ी सैन्य जीत का प्रतीक फोटो को ऐसे लोगों द्वारा हटा दिया गया है, जो मानता है कि पौराणिक कथाएं, धर्म और खंडित सामंती अतीत भविष्य की जीत को प्रेरित करेंगे।’
इस तस्वीर हटाए जाने की घटना पर कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी ने सदन में अपने विचार रखे लेकिन सरकार इस मामले में अडिग है। पुराने आख्यानों पर चाहे जितना गुमान कर लिया जाए लेकिन इस तस्वीर को हटाए जाने को लेकर केवल मोदी और इंदिरा के पराक्रम की टकराहट को ही कारण नहीं माना जाना चाहिए। यह तस्वीर ऐसे समय में हटाया गया है जब दक्षिण एशिया में भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो रही है। एक-एक कर सभी पड़ोसी हमारे खिलाफ हो चीन-पाकिस्तानी गठबंधन के साथ होते जा रहे हैं। लद्दाख से लेकर अरुणंचल प्रदेश तक हिमालय चीनी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस प्रकार के कृत्य चाहे जिस किसी राजनीतिक वैमश्यता के लिए किए गए हों देश की सुरक्षा और सैन्य मनोबल को कमजोर करने वाला ही साबित होगा।
लेखक बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता और पेटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता हैं। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।