गौतम चौधरी
अभी हाल ही में ‘धर्मांतरितों को आरक्षण नहीं’ विषय पर विश्व संवाद केंद्र एवं गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में सर्वसमत्ति से तय हुआ कि धर्मांतरण कर मुसलमान अथवा ईसाई बन गए अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों एवं सरकारी स्तर पर दी जाने वाली अन्य सुविधाओं को तत्काल बंद कराने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा। विगत दिनों भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने रांची से छपने वाले एक प्रमुख हिन्दी अखबार को दिए गए अपने साक्षात्कार में साफ तौर पर कहा कि अनुसूचित जाति हो या जनजाति धर्म बदल चुके लोगों को आरक्षण का लाभ कतई नहीं मिल सकता है। उन्होंने इसे संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ बताया। उरांव ने तो यहां तक कह दिया कि इस प्रकार की व्यवस्था हमारे समाज को तोड़ने और समाप्त करने की एक सोची-समझी चाल है। समीर कहते हैं कि धर्मांतरित लोग दो प्रकार की सुविधाओं का लाभ एक साथ ले रहे हैं। उन्हें अल्पसंख्यकों का लाभ भी मिल रहा है और अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण का भी। कायदे से किसी भी व्यक्ति को एक प्रकार का लाभ मिलना चाहिए लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा है।
इन दनों घटनाओं में समानता कई प्रकार की समानता है। पहली समानता यह है कि समीर जिस चिंतन वाले संगठन में प्रशिक्षित हुए हैं उसी चिंतन के संगठन वालों ने उक्त संगोष्ठी का आयोजन किया था। विश्व संवाद केन्द्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक विचार परिवार का ही एक अंग है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार के विभिन्न संगठनों में इस प्रकार की बात पहले से चलती रही है कि धर्मांतरित लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। यह संविधान की मूल भावना की अवहेलना है।
धर्मांतरण और आरक्षण पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र में जस्टिस (सेवानिवृत्त) शिवशंकर ने कहा कि कनवर्जन का मतलब होता है एक फेथ (आस्था) को पूरी तरह छोड़कर दूसरी आस्था को अपनाना और जब अपनी पुरानी आस्था को छोड़ दिया तो उसके अंतर्गत मिलने वाले आरक्षण या अन्य लाभ की मांग क्यों?
डिक्की के चेयरमैन पद्मश्री मिलिंद कांबले ने कहा कि जिनका कम प्रतिनिधित्व था, उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। किंतु, उसका लाभ जिन्हें मिलने चाहिए था, उनसे छीनकर धर्मांतरित लोग (ईसाई व मुस्लिम) ले गए। यहां बता दें कि डिक्की अनुसूचित जाति व जनजाति व्यापारियों की एक संस्था है। यह ठीक उसी प्रकार काम करती है जैसे देश के अन्य आर्थिक संगठन। मिलिंद ने कहा कि अभी भी आरक्षण पर डाका डालने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरितों को आरक्षण देने के नाम पर कुछ लोग देश में पॉलिटिकल पावर हथियाना चाहते हैं। धर्मांतरित लोगों को अपने अधिकारों का रोना अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष रखना चाहिए।
इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि मीम-भीम का नारा अनुसूचित समाज को समाप्त करने का षड्यंत्र है। उनके मन में अनुसूचित जाति के कल्याण की भावना नहीं है, उनका उद्देश्य केवल अपनी संख्या बढ़ाना है। यदि वास्तव में अनुसूचित जाति के हितों की चिंता होती तो अपने (ईसाई व मुस्लिम) संस्थानों में उन्हें आरक्षण का लाभ प्रदान करते, अल्पसंख्यकों को मिलने वाली स्कॉलरशिप में धर्मांतरितों को लाभ देते।
उन्होंने कहा कि यह वर्ष स्वामी दयानंद सरस्वती का 200वां जयंती वर्ष भी है। स्वामी जी ने कहा था कि अस्पृश्यता अवैध है, यानि वेदों में कहीं वर्णित नहीं है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरितों को आरक्षण के विषय पर कोई एक व्यक्ति निर्णय नहीं लेगा, पूरा देश निर्णय लेगा। इसलिए इस कॉंक्लेव के माध्यम से एक विषय प्रारंभ हुआ है, इस विषय पर राष्ट्रव्यापी चर्चा होनी चाहिए। इस दो दिवसीय विमर्श के व्यापक परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने शिक्षाविदों, विधिवेत्ताओं, और समाजशास्त्रियों से आह्वान किया कि इस विषय को देशव्यापी चर्चा के केंद्र में लाएं।
इससे पूर्व के सत्रों में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष अरुण हल्दर ने कहा कि शोषित-पीड़ित समाज को आगे लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था हुई थी। जाति आधारित आरक्षण से पिछड़ा समाज आगे आए यह हेतु था। उन्होंने कहा कि ष्लोभ-लालच और दबाव से धर्मांतरित लोगों को आरक्षण दिया गया, तो यह गलत होगाष्।
प्रोफेसर डॉ. एससी संजीव रायप्पा ने अपना पेपर प्रस्तुत करते हुए कहा कि कंवर्टेड लोग अधिक प्रोटेक्टेड होते हैं, हम एससी लोग अनसंग हीरोज हैं। और धर्मांतरित लोगों को आरक्षण देने से धर्मांतरण बढ़ेगा। कंवर्टेड एससी सर्टिफिकेट में अपना नाम नहीं बदलते हैं, आरक्षण का लाभ लेते रहते हैं। उन्होंने कहा कि धर्मांतरित लोग उसी गांव में रहकर वहाँ के मूल धर्म वाले लोगों पर दबाव डालेंगे, कमाएंगे, धमकाएंगे, तो वो लोग कहां जाएंगे।
धर्मांतरित लोगों को आरक्षण मिले या बंद हो, यह लंबे विमर्श का विषय है लेकिन इससे संबंधित एक खास विषय जो व्यपक बहस छेड़ने की ताकत रखता है, वह आस्था का है, जिसपर सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिवशंकर ने इशारा किया है। सच पूछिए तो ईसाइय और इस्लाम में जाति की अवधारणा है ही नहीं। भारत के संविधान में जाति के आधार पर आरक्षण का विधान है। यदि किसी धर्म में जाति व्यवस्था हो ही नहीं उसे भारतीय संविधान के अनुसार आरक्षण कैसे दिया जा सकता है।