सरसंघचालक की दश दिवसीय झारखंड यात्रा और RSS पर कई सवाल

सरसंघचालक की दश दिवसीय झारखंड यात्रा और RSS पर कई सवाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बेहद व्यवस्थित और संवेदनशील संगठन है। हिन्दू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को केन्द्र में रखकर खड़ा किया गया यह संगठन ब्रितानी हुकुमत के बेहद निकट रहे डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे और हुकुमत के खिलाफ लगातार संघर्ष करने वाले विनायक दामोदर सावरकर के चिंतन का फ्यूजन कहा जा सकता है। वर्ष 1925 में गठित इस संगठन ने बहुत उतार और चढ़ाव देखे। सरकार के द्वारा तीन बार इस संगठन पर प्रतिबंध भी लगाया गया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का लगातार विस्तार होता रहा। अभी भी संगठन का दावा है कि वह लगातार मजबूत हो रहा है, लेकिन 10 वर्षों तक लगातार विचार परिवार के राजनीतिक संगठन, भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र और कई प्रांतों में कई वर्षों से चली आ रही सरकार ने संगठन के सामने कई बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। इसका नमूना इस बार के संगठन के सर्वोच्च नेता सरसंघचालक मोहनराव भागवत के रांची प्रवास के दौरान देखने को मिला।

दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल में दो बार अखिल भारतीय स्तर की बैठक करता है। हालांकि एक बैठक और होती है, लेकिन उस बैठक को सांगठनिक मान्यता प्राप्त नहीं है। वह बैठक तृतीय वर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के बाद किया जाता है। यह बैठक प्रति वर्ष संघ मुख्यालय नागपुर में रखी जाती है, जबकि दो अन्य बैठकों के स्थान और तारीख बदलते रहते हैं। संघ की एक बैठक प्रतिनिधि सभा की होती है। जिसमें कुछ वर्ष पहले तक विभाग प्रचारक और उसी स्तर के कार्यकर्ताओं को बुलाए जाने की परिपार्टी थी। चूंकि संगठन बड़ा हो गया है और पदाधिकारियों की संख्या भी ज्यादा हो गयी है, इसलिए उस बैठक में अब चयनित प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है। अमूमन इस बैठक में प्रांत स्तर के पदाधिकारी बुलाए जाते हैं। एक बैठक प्रांत प्रचारकों की होती है। इस बैठक में भी प्रांत प्रचारक और उससे उपर के पदाधिकारी शामिल होते हैं। इसी बैठक के सिलसिले में सरसंघचालक मोहनराव रांची आए थे।

बैठक के दौरान तीन प्रेस विज्ञप्तियां जारी की गयी। इसमें कुछ खास नहीं था लेकिन बैठक के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, सुनिल अम्बेकर ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित की। उस पत्रकार वार्ता में उन्होंने बैठक के संबंध में मुकम्मल जानकारी सार्वजनिक की। अम्बेकर ने बैठक में चर्चा के कुल सात मुद्दे प्रेस के सामने रखे। पहला, संघ साल 2025 में अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करेगा। इस पर होने वाले कार्यक्रमों के बारे में उन्होंने जानकारी दी। दूसरा, उन्होंने कहा कि संघ ने 2012 में ज्वाइन आरएसएस अभियान शुरू किया था। ऑनलाइन चलने वाले इस अभियान से हर साल 1 से सवा लाख लोग संघ की अलग-अलग गतिविधियों से जुड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, इस साल जून के अंत तक 66529 लोगों ने संपर्क किया और संघ से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की। तीसरा, उन्होंने कहा कि इस साल से संघ के प्रशिक्षण वर्गों की रचना और पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है। चौथा, उन्होंने संघ के आगामी योजना को लेकर बताया कि यह साल अहिल्यादेवी होल्कर की त्रि-शताब्दी का वर्ष है। संघ इसपर बड़ा आयोजन करेगा। पांचवा, उन्होंने कहा हमलोग ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से गौ सेवा व ग्राम विकास को मिलाकर विशेष योजना बना रहे हैं। उसे लागू करेंगे। छठा, पर्यावरण पर संघ के कार्यक्रम और दृष्टिकोण के बारे में बताया। साथ अच्छे नागरिक बनने के गुण बताए। सातवां, आम्बेकर ने मतांतरण और धर्मातरण पर संघ की कार्ययोजना एवं दृष्टिकोण के बारे में जानकारी दी।

अपने पत्रकार वार्त के दौरान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने डीलिस्टिंग, सरना धर्म कोर्ड, पेसा कानून, बांग्लादेशी घुसपैठ आदि पर कोई चर्चा नहीं की। झारखंड ही नहीं ये चारों मुद्दे देश के सभी आदिवासियों के साथ किसी न किसी रूप से जुड़ा है। पत्रकार वर्ता में एक और बात दिखी और वह रहस्यमय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पहले अपने दो सरसंघचालक की जन्म शताब्दि समारोह मना चुका है। वर्ष 80 के आसपास संघ ने अपने आद्य सरसंघचालक का शताब्दि वर्ष मनाया था। पुराने स्वयंसेवक बताते हैं कि उन दिनों संघ ने इसकी मुकम्मल योजना बनायी थी और उस कार्यक्रम के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी की थी। छपरा के एक पुराने स्वयंसेवक ने बताया, संघ ने हेडगेवार जी के जन्मशताब्दि समारोह के लिए बड़े पैमाने पर विस्तार भी निकाले थे। तीन वर्ष पहले से योजना बनी थी और पूरे देश भर में व्यापक कार्यक्रम आयोजित किए गए। उसी प्रकार दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर के जन्म शताब्दि समारोह को और भव्य बनाया गया लेकिन संघ अपनी स्थापना का शताब्दि समारोह हल्के में ले रहा है। यह अम्बेकर के उस पत्रकार वार्ता से साबित हो रही है। इससे साफ लगता है कि संघ कई प्रकार के अवसाद का शिकार है।

इस बार की रांची वाली बैठक के स्थान को लेकर भी कई प्रकार के विवाद हैं। पहला विवाद तो यह है कि वह स्थान भारतीय जनता पार्टी के झारखंड प्रदेश महासचिव डॉ. प्रदीप वर्मा के नियंत्रण वाला था। संघ अमूमन इस प्रकार का कार्यक्रम गैर-राजनीतिक व्यक्ति के स्वामित्व वाले स्थान पर करता रहा है। यही नहीं प्रदीप वर्मा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। ऐसे में वहां कार्यक्रम करना राजनीतिक एजेंडे का संकेत देता है। दूसरा विवाद, कार्यक्रम के सिलसिले में आए संघ के कई पदाधिकारी भाजपा में अच्छी पकड़ रखते हैं। जानकार बताते हैं कि उन अधिकारियों से मुलाकात करने और विधानसभा में अपनी सीट पक्की कराने के लिए भाजपा के कई नेताओं ने प्रदीप वर्मा का सहारा लिया। तीसरा विवाद, इस अखिल भारतीय कार्यक्रम को लेकर रांची महानगर संघ के कार्यकर्ताओं की कोई मुकम्मल योजना नहीं बनी थी। संघ के इस प्रकार की बैठकों के लिए शाखा सह कार्यकर्ता तय किए जाते हैं, जो कार्यक्रम के दौरान विभिन्न प्रकार के कार्यों का संपादन करते हैं, जैसे-भोजन परोसना, सुरक्षा, भोजन सामग्री आपूर्ति, स्वागत और वाहन व्यवस्था आदि-आदि। इस बार की बैठक को लेकर कार्यकर्ताओं का मुकम्मल नियोजन नहीं किया गया। इसके कारण बैठक के दौरान कई विसंगति देखने को मिली। इसकी पूर्ति के लिए बैठक के प्रबंधक संघ पदाधिकारियों से मुलाकात के नाम पर बड़ी संख्या में भाजपा व बिना सूचि के कार्यकर्ताओं को बैठक स्थल में प्रवेश करा दिया।

इन तामम विषय पर एक पुराने स्वयंसेवक ने बताया कि संघ की शक्ति लगातार घट रही है। यही कारण है कि संघ अब अपने कार्यक्रमों में भी प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को जुटाने में असफल हो रहा है। साथ ही संघ कई राष्ट्रीय मुद्दों पर निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। इसका खामियाजा पूरे हिन्दू समाज को भुगतना पड़ रहा है। आने वाले समय में इसका दायरा बढ़ेगा। अम्बेकर डिजिटल शाखा के बारे में तो ब्योरा दे रहे हैं लेकिन संघ का जो मूल आधार उसकी पारंपरिक दैनिक शाखा है उस पर किसी का ध्यान नहीं है। अब न तो कोई विभाग प्रचारक संघ की शाखा की चिंता करता है और न ही प्रांत प्रचारकों को इससे कोई मतलब है। 90 प्रतिशत संघ पदाधिकारी ऐसे हैं जो प्रतिदिनि की शाखा से कट चुके हैं। उन्होंने तो यहां तक बताया कि कई प्रचारकों को तो पूरी प्रार्थना, शाखा की आज्ञांएं और प्रतिज्ञां तक याद नहीं है। ऐसे में यदि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कहता है कि अब उसे संघ की जरूरत नहीं है तो इसमें बुरा क्या है?

One thought on “सरसंघचालक की दश दिवसीय झारखंड यात्रा और RSS पर कई सवाल

  1. बहुत ही सटीक विश्लेषण । अद्भुत । राँची में पूँजीपतियों के एक वर्ग ने संघ के कार्यक्रम को हाईजैक कर लिया था । बहुत ही सार्थक

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