प्राचीनतम खुडूक भाषा पर सेमिनार, विकास भारती में साहित्य व लिपि को लेकर तीन दिनों तक चला मंथन-चिंतन

प्राचीनतम खुडूक भाषा पर सेमिनार, विकास भारती में साहित्य व लिपि को लेकर तीन दिनों तक चला मंथन-चिंतन

रांची/बिशुनपुर/ विकास भारती बिशुनपुर के बिशुनपुर केंद्र स्थित अंबेडकर सभागार में आयोजित तीन दिवसीय कुडूख भाषा सेमिनार का आज समापन हो गया। समापन समारोह को संबोधित करते हुए संस्था के सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने कहा, आज कुडूख भाषा समृद्धि की ओर बढ़ रही है। हमें यह जानकर खुशी है कि दुनिया में इस भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या उत्तरोत्तर बढ रही है। भगत ने कहा कि हमारा प्रयास झारखंड के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में कुडूख भाषा माध्यम को प्राथमिकता दिलवाना है। उन्होंने कहा उरांव समाज को घबराने की जरूरत नहीं है। समाज के लोग अब जाग चुके हैं और वे अपना संवैधानिक अधिकार प्राप्त लेकर के दम लेंगे। भगत ने कहा हम सकारात्मक प्रयास कर रहे हैं। समाज और संस्कृति दोनों को बचाने का बढ़िया प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा कि डॉ नारायण उरांव, डॉक्टर महादेव टोप्पो, गजेंद्र भगत, सरन उरांव, शिव शंकर उरांव, महेंद्र भगत आदि योद्धा समाज के लिए समर्पित हो रहे हैं। अब हमारे साथ डॉक्टर एतवा उरांव जैसे लोग भी जुड़ रहे हैं। यह संघर्ष लगातार कई वर्षों से चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इसका हमें पूरा विश्वास है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी जनजातीय मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक, शिव शंकर उरांव ने कुडूख भाषा में संबोधन करते हुए कहा कि दुनिया की संपूर्ण संस्कृतियों की जननी आदिवासी संस्कृति है। भारत में जो सनातन संस्कृति देखने को मिलती है उसका मूल हमारे आदिवासी संस्कृति में सन्निहित है। शिव शंकर उरांव ने कहा कि हमें आदिवासी होने और खास करके उरांव आदिवासी होने पर गर्व की अनुभूति होती है।

कार्यक्रम के मंच से प्रोफेसर डॉ. महादेव टोप्पो ने कहां की हमारा अपना धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक चिंतन है। आदिवासी समाज सदियों से इस चिंतन को मानता रहा है और यही चिंतन दुनिया को बचाएगा। कार्यक्रम के दौरान राजकीय बुनियादी उत्क्रमित उच्च विद्यालय शेंद्रा, लोहरदगा की शिक्षिका डॉक्टर वैजयंती उरांव ने अपने संबोधन के क्रम में आदिवासी खानपान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारा खान-पान बेहद वैज्ञानिक और समय के अनुकूल है। हमारे खान पान में ऐसे तमाम अवयवों को समावेशित किया गया है, जो हमारे शरीर के लिए उपयोगी और पौष्टिक है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पारंपरिक मौसम वैज्ञानिक, गजेंद्र उरांव ने कहा की आदिवासी विज्ञान में धान के बीज को देखकर मौसम का अनुमान लगाना बेहद तथ्यपरक मामला है। उन्होंने कहा मेरे पुरखे इस विज्ञान को जानते थे और उन्होंने हमें इसकी जानकारी प्रदान की। हम धान के बीज को देखकर यह समझ जाते हैं कि इस वर्ष का मानसून कैसा होगा। उन्होंने बताया कि हम मानसून को तीन भागों में विभाजित करके अनुमान लगाते हैं और वह हनुमान लगभग सकी बैठता है। समापन समारोह को संबोधित करते हुए अद्दी अखड़ा के उपाध्यक्ष सरन उरांव ने कहा कि हमारे पारंपरिक गीतों में ज्ञान छुपा हुआ है। उसे डिकोड करने की जरूरत है। संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर नारायण उरांव ने किया कार्यक्रम का संयोजन विकास भारती विशुनपुर के संयुक्त सचिव महेंद्र भगत ने किया। कार्यक्रम में उरांव समाज के प्रमुख कार्यकर्ता एवं आदिवासी चिंतन के विद्वान भिखारी भगत, विकास भारती बिशुनपुर के उपाध्यक्ष अनिल भगत, आदिवासी चिंतक भुवनेश्वर उरांव आदि कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »