रांची/ अंतरराष्ट्रीय तिरहुत अनुसंधान प्रतिष्ठान, रांची के बैनर तले आज विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने सुबह जहां एक ओर विद्यापति चौक स्थित कवि कोकिल विद्यापति की मूर्ति पर माल्यार्पण का कार्यक्रम संपन्न किया, वहीं दूसरी ओर शाम अशोक नगर क्लब में सांस्कृतिक भारत के आधार निर्माण में कवि कोकिल विद्यापति के योगदान विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया।
सेमिनार को संबोधित करते हुए हिंदी साहित्य के उद्भट विद्वान और रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पांडेय ने कहा कि विद्यापति बहुमुखी प्रतिभा संपन्न महाकवि थे। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मैथिली में साधिकार कविताएं लिखीं। वे मूलतः प्रेम और भक्ति के कवि थे। उन्होंने सांस्कृतिक भारत के निर्माण में महती भूमिका निभाई है। विद्यापति को अभिनव जयदेव कहा जाता है। क्योंकि उनकी रचनाओं में संस्कृत के महाकवि जयदेव की सरसता और मिठास है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने विद्यापति की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि जयदेव की देववाणी की स्निग्ध पीयूष धारा, जो काल की कठोरता में दब चुकी थी, अवकाश पाते ही लोकभाषा की सरसता में परिणत होकर मिथिला की अमराइयो में विद्यापति के कोकिल कंठ प्रकट हुई और आगे चलकर ब्रज के करीब कुंजों में फैल मुरझाये मनों को ससींचने लगी।
आचार्यों की छाप लगी आठ वीणा श्री कृष्ण की लीलाओं का गान करने के लिए उठीं, उनमें सबसे ऊंची,सुरीली और मधुर झंकार अंधे कवि सूरदास की वीणा की थी।ष्जहां एक और भक्ति है वहीं दूसरी ओर प्रेम की अविरल धारा प्रवाहित है। विद्यापति ने रानी लखिमा देवी के मुखारविंद का वर्णन चंद्रमा से किया है। डॉ पांडेय ने कहा कि शायद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सीता के स्वरूप का वर्णन विद्यापति से प्रेरित होकर की होगी।
डॉ पांडेय ने विद्यापति पर एक से एक बातें प्रस्तुत की। उन्होंने कहा की जिसने विद्यापति को नहीं पढ़ा वह भारत की संस्कृति और सभ्यता को और भारत की सांस्कृतिक परंपरा को समझ नहीं सकता है। डॉ पांडेय ने कीर्तिलता और कीर्तिपताका का तो वर्णन किया ही, साथ ही साथ भू-परिक्रमा, दुर्गा भक्ति तरंगनई, पुरुष परीक्षा, शिव सर्वस्व सार और विद्यापति के द्वारा विराजित पदावली का वर्णन किया और उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की।डा पाण्डेय ने कहा कि बिहार में दो कवि ऐसे पैदा हुए जिनके जोड़ के कवि भविष्य में पैदा होंगे या नहीं इसमें पूरा पूरा संदेह है। आदिकाल में मैथिल कोकिल विद्यापति और आधुनिक काल में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर।
कार्यक्रम में विषय प्रवेश कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार गौतम चौधरी ने कहा कि जब तुर्क और पश्चिमी इस्लामी साम्राज्यवादी ताकतों ने भारत पर आक्रमण किया और भारत की अस्मिता धूल-धूसरित हो गई, ऐसे वक्त विद्यापति कवि का प्रादुर्भाव हुआ। विद्यापति ने भारत के मन को इतना सबल बनाया जिस पर पूरा मध्यकालीन भारत प्रभावशाली तरीके से अपनी संस्कृति की सुरक्षा करने में सफल हो सका। विद्यापति सांस्कृतिक भारत के आधार निर्माण में महत्वपूर्ण किरदार के रूप में अवतरित होते हैं। गौतम ने कहा की विद्यापति कई बार दिल्ली गये, खिलजी को समझाया लेकिन खिलजी जब नहीं माना, तो लौट कर अपने घर आ गये और यह मान लिया कि अब हमारा राजनीतिक शासन लौट नहीं सकता है इसलिए हमें लोगों का जागरण करना होगा। कवि कोकिल विद्यापति ने लोक जागरण के माध्यम से समाज को खड़ा करने का भरसक प्रयास किया और वह प्रयास इतना प्रभावशाली था कि उसका संपूर्ण भारत पर प्रभाव पड़ा। विद्यापति की लेखनी से जहां एक ओर बांग्ला साहित्य प्रभावित हुआ, वहीं दूसरी ओर उड़िया साहित्य पर भी बड़ा प्रभाव देखने को मिला। ब्रजभाषा से लेकर के अवधि तक पर उनकी लेखनी का प्रभाव दिखता है। इसलिए हम ऐसा कह सकते हैं कि भारत के सांस्कृतिक आधार निर्माण में विद्यापति की अद्भुत भूमिका थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इतिहास के विद्वान प्राध्यापक और रांची विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के अध्यक्ष रह चुके डॉ दिवाकर मिंज ने कहा की भाषा संस्कृति की अभिव्यक्ति है। विभिन्न भाषाओं को जब मैं देखता हूं तो उसमें मुझे गुमला की सादरी, मिथिला की मैथिली और बंगाल की बांग्ला, बहुत मीठी लगती है। मैं तो इतना ही कहना चाहूंगा की विद्वान, कलाकार, इतिहासकार, साहित्यकार और वैज्ञानिक किसी जाति या क्षेत्र के नहीं होते हैं। वह पूरी मानवता के होते हैं। हमें विद्यापति को जाति और क्षेत्र की सीमा में निकालना होगा। विद्यापति हम सबके हैं, पूरे राष्ट्र के हैं। इन्हें स्वतंत्र रूप से पूरे राष्ट्र की संपत्ति माने तो ज्यादा यथेष्ट होगा।
कार्यक्रम में अवकाश प्राप्त गणित के प्राध्यापक एवं अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के झारखंड अध्यक्ष अमरनाथ झा ने भी संबोधित किया।आगत अतिथियों का भव्य स्वागत गौतम चौधरी ने जय जय भैरवी की प्रस्तुति प्रेमचंद झा ने सुंदर संचालन कुंदन कुमार सिंह ने और धन्यवाद ज्ञापन मिथिला और मैथिली के कार्यकर्ता रविनाथ किशोर ने किया। विद्यापति को चाहने वाले लोग भारी संख्या में उपस्थित थे।संपूर्ण कार्यक्रम का प्रबंधन अंतरराष्ट्रीय तिरहुत अनुसंधान प्रतिष्ठान के सहसंयोजक अमितेश आनंद ने की।राष्ट्र गान से संगोष्ठी पूर्ण हुई।