डॉ अरविन्द मिश्रा
यदि हम सोशल मीडिया की बात करते हैं तो सबसे पहले और प्रमुखता के साथ फेसबुक और वाट्सऐप का नाम दिमाग में कौंधता है। फिर यूट्यूब जो पूरी तरह विजुअल मीडिया है। इन्स्टाग्राम आपको सेलिब्रिटी बनाने का चारा फेकता है तो ट्विटर का अलग आकर्षण है।
फेसबुक ने अपने फीचर्स में ढ़ेर सारे बदलाव इन वर्षों में कर डाला है। विज्ञापनों की भरमार है। हर चार या पांच पोस्ट के बाद कोई न कोई विज्ञापन आ टपकता है। फिर तमाम समूह बने हैं जिनके सदस्यों से चैट करने के जटिल तौर तरीके हैं। फेसबुक के हर प्रोफाईल को प्रोफेशनल यानि व्यावसायिक बनाने के भी आफर हैं।
मगर सोशल मीडिया के साथ एक बड़ी मुश्किल यह हो गयी है कि बहुत सारी अनचाही, अयाचित और अवांछित सामग्री जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं होती है और वह किसी भी दृष्टि से न तो आपके लिए और न ही समाज के लिये उपयोगी होती है आपसे साझा होती रहती है।
चाहे वह फेसबुक की आपकी टाईमलाईन हो अथवा मेसेज बाक्स या फिर वाट्सअप का आपका पेज या इन्स्टाग्राम या ट्विटर के कुछ फीचर्स, अवांछित सामग्री का ढ़ेर इकट्ठा होता रहता है। वाट्सअप पर साझा की गयी सामग्री तो आपके फोन के संग्रह स्पेस को भी तेजी कम करती चलती है।
मित्रता के चयन का अधिकार निसंदेह आपका है मगर मित्रगण बिना अगले की रुचि जाने समझे सामग्रियों का अग्रेषण बिना दिमाग लगाये यंत्रवत करते रहते हैं। और कुछ मित्र तो इस मामले में एकदम बेरहम होते हैं।वे दनादन दनादन नमस्ते पूर्व अग्रसारित, ज्यादातर निरर्थक सामग्रियों का अग्रसारण करते हैं। कुछ मेसेज बाक्स में मित्रता स्वीकार करते ही आ टपकते हैं और ऊलजलूल लिखना शुरू हो जाते हैं।
कुछ तो निष्काम भाव से अल्लसुबह गुडमार्निंग नमस्कार के साथ ही पुष्प गुच्छों को भेजते हैं। माना कि यह वे मित्र के प्रति अपने स्नेह सम्मान के कारण ऐसा करते हैं मगर एक साथ कितने ही मित्रों का यह पुष्पयुक्त सम्मान सुबह सुबह ही एक बोझ बन जाता है। किसका देखें किसका छोड़े। किसका बिना देखे ही डिलीट मार दें।
मित्रो से बहुत विनम्रता पूर्वक निवेदन भी करने का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलता कि भाई कभी कभार एकाध पुष्प भले ही अर्पित कर दिया करें ये रोज रोज का बुके मत भेजा करें, नागवार लगता है। इस पर कई मित्र बुरा मान जाते हैं संवाद तक तोड़ देते हैं। कुछ और मित्र जिनमें जन्मना बटुक बन्धुओं की भरमार होती है हिन्दुत्व की ललकार वाले वीडियो जोरशोर से पोस्ट करते हैं कभी कभार ही उनमें कोई एकाध ही गंभीर और बुद्धिगम्य होते हैं।बाकी निरर्थक। कई सीनियर मित्रों को तो संकोचवश मना भी नहीं कर पाते।
मेरी ही नहीं, आपकी भी रोजगार और घर परिवार की ढ़ेर सारी व्यस्तताएं होती होंगी मगर मित्रगण को इसकी कहां परवाह, न जाने कहां से उन्हें इतनी फुरसत मिल जाती है कि वे अपने स्नेहिल सम्मान (नृशंसता) से आपको नवाजे बिना नहीं रहते। उनका यह प्रेम इतनी बढ़ जाता है कि वे आपका ध्यान बार बार किसी धीर गंभीर काम से विकर्षित कर देते हैं। कितना और भी कुछ डिजिटल मीडिया पर उपयोगी रहता है जिसे पढ़ना गुनना ज्यादा जरुरी है जिसके लिये समय कम पड़ जाता है। और उन्हें तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। इसलिये सोशल मीडिया की एक आचार संहिता जरुर होनी चाहिए जिसका अनुपालन हम सभी को समर्पित भाव और समझ के साथ करना चाहिए। जैसे कुछ सुझाव निम्नवत हैं।
बिना खुद किसी सामग्री को ठीक से पढ़े और उसकी व्यक्ति या समूह के लिये उपयोगिता को परखे कदापि साझा ध्अग्रसारित न करें। रोज रोज बुके या धार्मिक सामग्री भजन या हिन्दू जागरण के पोस्टरादि साझा न करें। हो सकता है कि प्रेष्य का झुकाव और अभिरुचि आप सरीखी न हो। यदि आप वाकई किसी के घनिष्ठ मित्र हैं तो उसकी अभिरुचियों से जरूर अवगत होंगे, फिर तो उसकी गहरी अभिरुचि और आवश्यकता का आकलन करके ही सामग्री साझा किया करें, तभी वह सार्थक भी होगी और संवाद स्थापित करेगी। कुछेक मित्र समाचार पत्रों में छपे अपने मुद्रित लेख को जरुर साझा करेंगे। अब भला बासी सामग्री सोशल मीडिया पर साझा करने की क्या जरुरत है। अपने वाल पर भले कर लीजिये। मित्र के संदेश बाक्स तक क्यों ले जाते हैं? सोचते हैं शाबाशी मिलेगी? वाहवाही होगी? जबकि ठीक इसके विपरीत मित्र की प्रतिक्रिया होती है कि ये नामुराद फिर आ टपका।
इसके अलावे किसी ने आपकी मित्रता रिक्वेस्ट का सम्मान यदि कर दिया है तो उसके मेसेज बाक्स में गदर मचाना मत शुरु कर दीजिये। फेसबुक पर ऐसे धूमकेतु और उल्कापिंड सरीखे मित्र ब्लाक भी उतनी ही तीव्रता से होते हैं। सोशल मीडिया का शुरुआती उद्येश्य भले ही स्वजनों या स्वधर्मियों के बीच संवाद समन्वय, हालचाल और हलो हाय के लिए था मगर अब उसके अनेक आयाम हो चुके हैं जिन्हें आप द्वारा अपनाया और उपयोग में लाया जाना चाहिए। मात्र अपने किसी डिजिटल प्रोडक्ट या दवाओं और सामग्रियों की बिक्री के लिये मित्रों का शोषण न करें। विज्ञापन के लिये सोशल साईट्स के अलग प्रावधान हैं। उनका सहारा लें। इधर फेसबुक के यूजर प्रोफाइल के क्लोन कर धोखाधड़ी की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। ऐसे में कृपया अपनी एक प्रोफाईल होते हुये दूसरी तीसरी बनाकर भ्रम न उत्पन्न करें। या यदि यह किन्ही कारणों से जरुरी हो तो पूर्व संदेश देकर करें। जब तक कोई जीवन मृत्यु का प्रश्न न हो तो कृपया अपने असली चेहरे व शख्सियत के साथ ही फेसबुक पर रहें। फेसबुक की नीति भी पारदर्शिता की है। पिछले वर्षों ऐसे ही एक दो सज्जन धरती से विदा हो गये मगर श्रद्धांजलि मिली उनकी छद्म प्रोफाइल को। हिन्दी पट्टी में किसी भी पोस्ट को बिना पढ़े ही लाईक कर देने और यहां तक कि कुछ आंय शांय कमेन्ट भी कर देने की प्रवृत्ति है। श्रद्धांजलि के बजाय बधाई तक दे आते हैं। फौक्स पाक्स। कृपया इससे बचें। आपकी यह अशोभनीय लीला गंभीर पाठक ध्पोस्टकर्ता पर भारी गुजरती है । यह आपकी शख्सियत को भी कमजोर करता है। माना कि आप बहुत सुदर्शन हैं मगर बारंबार अपनी प्रोफाइल पिक्चर मत बदलिये। इसके बजाय अपनी पोस्ट करने की सामग्री ध्कंटेट की गुणवत्ता पर ध्यान दीजिये। बार बार प्रोफाइल डालने से आपके चेहरे के कतिपय दोष से भी सौंदर्य पारखी अवगत हो आपसे विमुख हो सकते हैं, यदि सोशल मीडिया पर आपका एकमात्र मकसद अपना चेहरा ही दिखाना रह गया तो गांठ बांध लीजिये ऐब्सल्यूट शारीरिक सौंदर्य केवल एक यूटोपिया है, यथार्थ नहीं। सोशल मीडिया एक उपहार है इसे अभिश्राप बनने में योगदान मत करिये।
(लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख का कोई लेनादेना नहीं है।)