शव के साथ सेक्स/ सर्वोच्च न्यायालय ने यह क्या कह दिया?

शव के साथ सेक्स/ सर्वोच्च न्यायालय ने यह क्या कह दिया?

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 4 फरवरी 2025 को नेक्रोफिलिया (महिला के मृत शरीर से यौन क्रिया) को बलात्कार मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत बलात्कार के तहत अपराध नहीं है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने कर्नाटक सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे की जाँच करना और जरूरी होने पर कानून में प्रासंगिक बदलाव करना संसद का काम है। अदालत ने कहा कि कानून नेक्रोफीलिया को अपराध नहीं मानता। इसलिए हाई कोर्ट द्वारा आरोपित को बलात्कार के आरोप से बरी करने के लिए आदेश में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

कर्नाटक सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता अमन पंवार ने तर्क दिया कि धारा 375(सी) के तहत ‘शरीर’ शब्द में मृत शरीर को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बलात्कार की परिभाषा के 7वें विवरण कहा गया है कि ऐसी स्थिति जहाँ महिला सहमति नहीं दे सकती है, उसे बलात्कार माना जाएगा। इस प्रकार, यहाँ भी मृत महिला सहमति नहीं दे पाएगी। पंवार ने कहा कि कोर्ट को धारा 375 में शवों को शामिल करने के लिए उदारतापूर्वक इसकी व्याख्या करनी चाहिए। उन्होंने पंडित परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष न्यायालय के 1995 के निर्णय का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार शवों पर भी लागू होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्टेट बनाम ब्रोबेक मामले में टेनेसी के सर्वाच्च न्यायालय सहित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों ने शवों को बलात्कार के दायरे में लाने के लिए इसी तरह के दंडात्मक प्रावधानों का विस्तार किया है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ अतिरिक्त महाधिवक्ता अमन पंवार की दलील से संतुष्ट नहीं हुई थी और अपील को खारिज कर दिया। दरअसल, यह मामला कर्नाटक का है। इस मामले में आरोपित ने 21 साल की एक महिला की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसने शव के साथ यौन संबंध बनाए थे। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपित को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या और आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार के लिए दोषी ठहराया था। इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया। इस मामले में सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने मई 2023 में कहा कि नेक्रोफीलिया भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार या धारा 377 के तहत अप्राकृतिक सेक्स वाले अपराध के दायरे में नहीं आता। इसलिए आरोपित को रेप का दोषी नहीं नहीं माना जा सकता है। इसके बाद हाई कोर्ट ने आरोपित को हत्या का दोषी माना लेकिन रेप के आरोप से मुक्त कर दिया।

हाई कोर्ट ने कहा कि नेक्रोफीलिया एक ‘मनोवैज्ञानिक विकार’ है जिसमें पीडोफीलिया (बच्चों का यौन शोषण), एग्जिबिशनिज्म (किसी अनजान व्यक्ति को अपना जननांग दिखाना) और यौन आत्मपीड़ा (दर्द, प्रताड़ना या तिरस्कार में यौन उत्तेजना महसूस करना) शामिल है। न्यायालय ने कहा, यह हमारे संज्ञान में लाया गया है कि अधिकांश सरकारी और निजी अस्पतालों में, विशेष रूप से युवा महिलाओं के शवगृह में रखवाली के लिए नियुक्त परिचारक शव के साथ संभोग करते हैं। इसलिए राज्य सरकार के लिए यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि ऐसा अपराध न हो जिससे महिला के शव की गरिमा बनी रहे।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने आगे कहा, “दुर्भाग्य से भारत में महिला के शव के प्रति अपराध और उसके अधिकारों की रक्षा करने तथा उसकी गरिमा बनाए रखने के उद्देश्य से भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों सहित कोई विशिष्ट कानून नहीं बनाया गया है।” हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि शवों से दुष्कर्म की घटना को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करने के लिए कानून बनाने के लिए कहा।

आरोपित को रेप के केस से मुक्त करने के हाई कोर्ट के फैसले को कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद इसे रेप मानने से इनकार कर दिया और कर्नाटक सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित कानून के लिए संसद को मार्ग बताया।

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