अदनान कमर
भारम इस्लामिक देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों को लेकर बराबर चर्चा होती है। चर्चा के केन्द्र में कई विषय होता हैं। उन विषयों में जो खास बात होती है, उसमें भारत और इस्लामिक देशों के बीच संबंधों में बदलाव, को इन दिनों बेहद अहमियत दी जा रही है। ऐसा क्यों हो रहा है यह तो नहीं पता लेकिन भारत जिस मूल्यों पर अपनी नीति को आधारित कर रखा है उसमें कोई बदलाव के संकेत नहीं दिखे हैं। ऐसे में आपसी संबंधों में बदलाव के कोई चिंह नहीं दिख रहे हैं। अभी हाल की घटना है। समावेशिता एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम में, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और भारतीय संबंधों को प्रदर्शित करने के लिए सऊदी अरब के मदीना की ऐतिहासिक यात्रा की। इस यात्रा के दौरान स्वाभाविक रूप से उनके साथ वरिष्ठ अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रतिनिधिमंडल भी मदीने की यात्रा की। इस दौरान ईरानी ने मुस्लिम नागरिकों के लिए वार्षिक हज यात्रा की व्यवस्था में सुधार के कई पहलुओं पर अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को बहाल करने की पूरी कोशिश करती दिखी। यह उल्लेखनीय भाव भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और सांप्रदायिक सद्भाव को प्रदर्शित करता है।
स्मृति ईरानी, एक कर्मकांडी हिंदू महिला, ने रियाद के बजाय मदीना को प्राथमिकता दी और अपनी यात्रा के दौरान पारंपरिक भारतीय साड़ी और बिंदी पहनी, जो भारत की सांस्कृतिक, सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति का प्रतीक है। उन्होंने मदीना के मरकजिया क्षेत्र में अल मस्जिद अल नबवी की परिधि का दौरा किया, इसके बाद ईरानी ने उहुद पर्वत और क्यूबा मस्जिद का भी दौरा किया। ईरानी के इस व्यवहार से इस्लामवादी और अशरफ नाराज हो गए और मदीना में भारतीय मंत्री की यात्रा की अनुमति देने के लिए सऊदी अधिकारियों की निंदा करना शुरू कर दिया। इसे इस्लाम की उनकी व्याख्या के साथ असंगत माना। उन्होंने सऊदी राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि यह दौरा आस्था की उनकी समझ से हमें भटकाता है। भारतीय मंत्री हमारी आस्था और संस्कृति को नहीं जानती हैं। वह अनभिज्ञ हैं। एक गैर-मुसलमान महिला को मदीना में जाने की अनुमति देकर सरकार ने भारी गलती की है। अब इन नव इस्लामवादियों को कौन समझाए। इन्हें पता नहीं है, इस मामले में इस्लाम कितना सहिष्णु है। इस्लाम के अंतिम नवी पैगम्बर मुहम्मद ने खुद गैर-मुस्लिमों की मेजबानी की थी। इस्लाम चिंतन के माहिर जानकारों की मानें तो अंतरधार्मिक संवाद के लिए वर्ष 631 में 60 ईसाइयों का एक प्रतिनिधिमंडल यमन से मदीना आया था। इसे इस्लामिक जगत का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक संवाद माना जाता है। इस यात्रा के दौरान उन ईसाइयों को पैगंबर मोहम्मद ने अपने घर के पास उनके रहने और प्रार्थना की व्यवस्था की थी, यहां तक कि मुसलमानों को अपना तम्बू लगाने का भी आदेश दिया था।
यह देखना सुखद है कि हज यात्रा के लिए सुचारू और सुव्यवस्थित व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए मंत्री ने स्वयं सऊदी अधिकारियों के साथ बात की। भारतीय मंत्री स्मृति ईरानी इसलिए भी इस यात्रा को महत्व दे रही थी कि बड़ी संख्या में भारतीय मुस्लिम महिलाएं धार्मिक यात्रा पर वहां जाती हैं। इधर के दिनों में बिना किसी पुरूष संबंधियों के भारतीय महिलाएं धार्मिक यात्रा कर रही हैं। ऐसे में महिलाओं को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना होता है। मंत्री के पास कई शिकायतें भी गयी हैं। ईरानी एक संवेदनशील महिला के साथ ही प्रभावशाली मंत्री भी हैं। उन्होंने भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए इस यात्रा को और अधिक सहज बनाने की कोशिश के तहत हालिया प्रयास किया है। इसे किसी धार्मिक चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए।
बता दें कि तीर्थयात्री जब वापस लौटते हैं तो अक्सर हज के दौरान अपने भयानक अनुभव के बारे में सरकार से शिकायत करते हैं। स्मृति ईरानी इसी भयावहता को समाप्त करने की कोशिश की है। इस प्रयास को सकारात्मक तरीके से लिया जाना चाहिए। यह भारत सरकार की सहिष्णु प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसमें कहीं कोई धार्मिक गतिरोध का स्थान ही नहीं है। भारतीय मुसलमानों को इस कदम का स्वागत करना चाहिए, जिसका उद्देश्य हज को सुविधाजनक और आसान बनाना है।
स्मृति ईरानी ने सऊदी अधिकारियों के साथ विभिन्न मोर्चों पर चर्चा की, व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी में सहयोग के रास्ते तलाशे। धार्मिक संदर्भ से परे, इस यात्रा का उद्देश्य भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाना भी था। दोनों देशों ने ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध बनाए रखे हैं और यह यात्रा आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक सहयोग को गहरा करने के अवसर के रूप में कार्य करती है।
इस यात्रा ने भारत को हज के मौसम के दौरान अपने नागरिकों और वहां रहने वाले भारतीयों को दिए गए आतिथ्य के लिए आभार व्यक्त करने का अवसर भी प्रदान किया। तीर्थयात्रा व्यवस्थाओं की देखरेख में सहयोग ने सभी तीर्थयात्रियों की सुरक्षा, कल्याण और आध्यात्मिक पूर्ति सुनिश्चित करने की साझा प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला।
(आलेख के लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता, वक्ता, चुनाव रणनीतिकार और पसमांदा मुसलमानों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)