गौतम चौधरी
कमाल की बात है। विगत दिनों तमिलनाडु के किसी मंत्री ने एक सार्वजनिक सम्मेलन में सनातन, यानी हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को जड़ से समाप्त करने की बात कही। उक्त मंत्री ने सनातन धर्म और संस्कृति की तुलना मलेरिया, डेंगू और कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी से भी की लेकिन इस बयान पर न तो देश की केन्द्रीय सरकार ने संज्ञान लिया और न ही स्थानीय सरकार ने कोई कार्रवाई की। हालांकि, इस विषय को लेकर कुछ हिन्दू संगठन और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने प्रतिक्रिया जरूर दी है। कुछ हिन्दू संगठनों ने उक्त मंत्री के खिलाफ आन्दोलन भी चला रखे हैं। इस मामले में माननीय किसी न्यायालय ने भी अब तक स्वतः संज्ञान नहीं लिया है। यह विचार करने योग्य बात है कि ऐसी ही कोई टिप्पणी मुसलमान या ईसाइयों के लिए होती तो क्या देश का सत्ता प्रतिष्ठान इसी तरह चुप रहता? सवाल गंभीर है और जवाब किसी के पास नहीं है।
कुछ समय पहले की घटना है। भारतीय जनता पार्टी की नेता नूपुर शर्मा ने इस्लाम के संस्थापक पर कुछ नकारात्मक टिप्पणी की थी। उस टिप्पणी की प्रतिक्रिया इतनी जबरदस्त हुई कि राजस्थान के उदयपुर निवासी गरीब हिन्दू दर्जी का सरेआम गला रेत दिया गया। हर कोई देखता रहा और भारत का संपूर्ण सत्ता प्रतिष्ठान सांप के चले जाने के बाद लकड़ी पीटता रहा। इस प्रकार की घटनाएं होती रहती है। आने वाले समय में होती भी रहेगी। मामला चाहे जो भी हो लेकिन झारखंड की एक लड़की को एक खास धर्म विशेष के युवक ने इसलिए जिंदा जला दिया क्योंकि उसने उससे विवाह करने के लिए मना कर दिया था। आज से कई वर्ष पहले झारखंड की ही एक लड़की को कुछ खास धर्म विशेष के युवकों ने इसलिए बेरहमी से बलात्कार किया क्योंकि वह बहुसंख्यक समाज की थी और किसी के सामने घुटने टेकने के लिए तैयार नहीं थी। बोकारो की उस लड़की के साथ किसी तरह का अमानवीय व्यवहार हुआ यह उन दिनों के सुर्खियों से पता लगाया जा सकता है। घटनाएं तमाम तरह की है लेकिन ऐसी बहुसंख्यक विरोधी घटनाओं पर सत्ता प्रतिष्ठान मौन हो जाता है और माननीय न्यायालय स्तब्ध! ऐसे में स्वाभाविक रूप से बहुसंख्यकों को कभी-कभी यह सोचने के लिए मजबूर तो होना ही पड़ता होगा कि आखिर हम जिस देश में निवास कर रहे हैं वह देश हमारा ही है क्या?
हम हाल के उस मंत्री के बयान की गहराई को खंगालते हैं तो पता चलता है कि उनके दादा भी हिन्दू विरोधी गतिविधियों में शामिल रहते थे। यही कारण है कि उन्होंने अपने बेटे का नाम रूस के साम्यवादी तानाशाह स्टालिन के नाम पर रखा। हालांकि स्टालिन के बारे में यदि वे मुकम्मल जानते तो ऐसा नहीं करते लेकिन ऐसा उन्होंने किया। यही नहीं उनके प्रिय पुत्र आज भी उस नाम के साथ अपने को संबद्ध रखे हुए हैं। जहां पूरी दुनिया स्टालिन को मानवता का विरोधी मान रही है वहीं भारत के दक्षिण में स्टालिन नए सिरे से पूजनीय हो रहे हैं। वो ऐसा कर सकते हैं। उनकी स्वतंत्रता है। तमिलनाडु के उक्त मंत्री ने जिस कार्यक्रम में अपना ओजस्वी भाषण प्रस्तुत किया वह कार्यक्रम ही सनातन उन्मूलन के लिए रखा गया था। उस कार्यक्रम का विषय सनातन उन्मूलन सम्मेलन था। उस कार्यक्रम में वह मंत्री अकेले नहीं थे। वहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभावशाली नेता मधुकर रामालिंगम, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता तमिल साहित्यकार एवं सांसद सु वेंकटेशन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और वर्तमान राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एस. पीटर अल्फोंस, हिन्दू धर्मार्थ बंदोबस्ती मंत्री पीके. शेखर बाबू आदि कई गणमान्य हस्ती उपस्थित थे।
अब जरा सोचिए इस देश के बहुसंख्यकों को समाप्त करने के लिए कोई कार्यक्रम हो, वहां देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रभावशाली नेता शामिल हों और उनमें बहुसंख्यकों को समाप्त करने की बाकायदा योजना बने और इसकी प्रतिक्रिया में कोई दल, संगठन या व्यक्ति लोकतांत्रिक तरीके से आन्दोलन करे तो वह साम्प्रदायिक कैसे हो सकता है? हरियाणा के नूह में दंगे हुए, उत्तराखंड के पुरोला में घटना घटी, मणिपुर में भी घटना घटी। मणिपुर की घटना पर माननीय न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया। उत्तराखंड की घटना पर भी माननीय न्यायालय ने हस्तक्षेप किया लेकिन नूह की घटना पर माननीय मौन रहे। यह देश के बहुसंख्यकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार है या नहीं?
इसके बाद भी कुछ लोग इस देश की सत्ता को अल्पसंख्यक विरोधी करार देने पर तुले हैं। देश में ही नहीं बाहर भी माहौल खराब किया जा रहा है। विदेश में बैठे पाकिस्तान समर्थकों के साथ मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत विरोधी कार्यक्रम किए जा रहे हैं और उसमें प्रस्ताव पारित किया जा रहा है कि भारत में अल्पसंख्यक परेशान हो रहे हैं। यह विडंबना है। यदि यही सब चलता रहा तो देश की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने में हम किसी कीमत पर कामयाब नहीं रह सकते। जो लोग यह आरोप लगाते हैं कि भारत का बहुसंख्यक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के कारण ध्रुवीकृत हो रहा है वे गतल हैं। इस देश के बहुसंख्यकों के पास कोई विकल्प नहीं है। दूसरी बात यह है कि देश का बहुसंख्यक यदि ध्रुवीकृत हो रहा है तो उसके लिए विपक्षी पार्टियों की करतूत एवं सत्ता प्रतिष्ठान में बैठे कुछ पूंजी परस्त कथित प्रगतिशील प्रभावशाली व्यक्ति जिम्मेदार है।
तमिलनाडु में जिस प्रकार का कार्यक्रम हुआ और हिन्दू विरोधी शामिल हुए, वैसे कार्यक्रम होते रहे तो आरएसएस और भाजपा का काम आसान होता रहेगा। ये लोग और संगठन भाजपा का काम आसान कर रहे हैं। इससे बहुसंख्यकों में डर पैदा होगा और वह डर भाजपा एवं संघ के लिए खाद-पानी का काम करेगा। याद रहे हिटलर, स्टालिन, मुसोलिनी एक दिन में पैदा नहीं हो जाता है। परिस्थितियां इस प्रकार के तानाशाहों को खुद व खुद नेतृत्व सौंप देती है। वर्तमान भारत में लगभग इसी प्रकार की परिस्थिति पैदा हो रही है। इससे पूंजी परस्तों को फायदा होगा। पश्चिमी जगत यही तो चाहता है और खास कर अमेरिका भारत को उसी रास्ते ले जाना चाहता है। इससे तो यही साबित हो रहा है कि भारत के कुछ प्रभावशाली प्रगतिशील सोच वाले लोग अमेरिकी नीतियों को लागू करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहे हैं। तमिलनाडु का सनातन उन्मूलन सम्मेलन संभवतः इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।