डॉ अरविन्द मिश्रा
आज घने कुहरे के कारण सुबह का टहलना मन मारकर स्थगित करना पड़ा। कुहरा (या कोहरा) क्यों पड़ता है, आज हम इसका वैज्ञानिक कारण जानते हैं मगर जब आधुनिक विज्ञान का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था तब भी प्रकृति से जुड़ी तमाम जिज्ञासाएं थीं, प्रश्न थे और तत्कालीन विद्वतजनों ने उन बहुमुखी जिज्ञासाओं का समाधान भी अपने तरीके से किया था।और यह जिम्मा अक्सर कथा वाचक उठाते थे।
विंध्याचल पर्वत एक श्रृंखला के रुप में क्यों है? धरती कांपती क्यों है (भूकंप))? हिमालय पर्वत इतना ऊंचा क्यों है? सूरज और चांद समय समय पर अदृश्य क्यों हो जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों का जवाब कथा वाचकों ने दिये थे और लोगों की जिज्ञासाओं का शमन किया था। वे जवाब आज भी पुराकथाओं के रुप में मौजूद हैं। बहुसंख्य जनता के मन में आज भी वही कथायें रची बसी हैं। इसलिये भी कि वे बहुत रोचक हैं।
जैसे हिमालय और विंध्य पर्वत में होड़ हुई कि कौन सबसे ऊंचा उठकर सूर्य का मार्ग रोक सकता है। इस प्रतिस्पर्धा में पल प्रतिपल ऊंचे और ऊंचे होते जाते दो युवा जोशीले पर्वतों से संभावित महाविनाश को लक्ष्य कर अगत्स्य मुनि को आपदा प्रबंध के लिये देवताओं द्वारा भेजा जाता है।
विंध्य पर्वत अपने गुरु को आता देख दंडवत, साष्टांग धराशायी हो जाता है और गुरुवर अगत्स्य उसे उनके दक्षिण यात्रा से वापस होने तक ऐसे ही लेटे रहने का आशीर्वाद (या उद्दंडता पर शाप?) देकर आगे बढ़ जाते हैं। आसन्न विकट स्थिति टल जाती है। और अभी मुनिश्री दक्षिणायन से लौटे ही नहीं हैं । कथा का आखिरी छोर कथाकार ने खुला ही रखा है जो श्रोताओं की कल्पनाशीलता को कुरेदता है। यदि अगस्त्य मुनि वापस लौटे तो? हलांकि आज हमारे पास विंध्य पर्वत के एक श्रृंखला रुप में होने का वैज्ञानिक विश्लेषण है।
बात कोहरे की हो रही थी। सवाल उठा होगा कि कुहरा क्यों वजूद में आया या आता है? कथा रच ली गयी। एक थे ऋषि पराशर। सुबह वे गंगा नदी को पार करते थे। उस दिन उन्हें नाव से गंगा पार कराने आयी निषाद कन्या अत्यंत रुपवती थी। देखते ही ऋषिवर मोहित हो गये। प्रणय याचना कर बैठे। सवेरा हो आया था। सब कुछ दृश्यमान था। ऐसे में संसर्ग? ऋषिवर कन्या का संकोच भाप गये। तुरत एक धुंध का सृजन कर डाला। काम क्रीड़ा के उपरांत कन्या मत्स्यगंधा से निःसृत गंध सुगंध में बदल गयी और वह ऋषि कृपा से पुनः अक्षत यौवना बन गयी। जिस बेटे को जन्म दिया वही विश्व विश्रुत विद्वान वेदव्यास हुये। तो यह रही कुहरे के जन्म की पुराकथा। आज के विज्ञान के पास कुहरा क्यों होता है, एक अलग जवाब है।
दरअसल, कोहरा तब बनता है जब जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी पानी की बूंदों में बदल जाती है जो हवा में लटकती रहती हैं। ऐसा तब होता है जब हवा का तापमान ओस बिंदु तक गिर जाता है। कोहरा एक प्रकार का बादल ही है जो जमीन के करीब बनता है।जब गर्म हवा ठंडी हवा से मिलती है, तो हवा में मौजूद जलवाष्प इतना ठंडा हो जाता है कि वह तरल में बदल जाता है। हवा जल्दी ठंडी हो जाती है और पहले जितनी नमी धारण नहीं कर पाती। परिणामस्वरूप, जलवाष्प छोटे कणों में बदल जाता है।
आज सुबह का टहलना स्थगित हुआ तो समय का सदुपयोग यह पोस्ट आप तक पहुंचाने में हो गया। आज के कुहरे का विस्तार तो देखिये। जूम अर्थ इसे लाहौर से लगातार प्रयागराज तक एक मोटे चादर के रुप में दिखला रहा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)