आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के लिए घृणित कृत्यों की निंदा और युवाओं में राष्ट्रीय सोच डालने की जरूरत

आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के लिए घृणित कृत्यों की निंदा और युवाओं में राष्ट्रीय सोच डालने की जरूरत

विगत 9 जून, 2024 को जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में हिंदू तीर्थयात्रियों को निशाना बनाकर किए गए आतंकवादी हमले की निंदा जरूरी है। लेकिन केवल निंदा से काम नहीं होगा। इसके लिए देश के सभी सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होना होगा। साथ ही इस प्रकार के आतंकवाद के खिलाफ देश में एक प्रकार की सकारात्मक और समावेशी शक्ति विकसित करनी होगा। इस क्रूर हमले में, शिव खोरी मंदिर से कटरा तक 53 तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर आतंकवादियों ने हमला किया, जिसमें नौ लोगों की दुखद मौत हो गई और 33 अन्य घायल हो गए। भारी गोलीबारी की चपेट में आने के बाद पोनी क्षेत्र के टेरयाथ गांव के पास बस सड़क से उतरकर गहरी खाई में गिर गई। इस प्रकार की घटना के लिए जो लोग भी जिम्मेदार हों वे न तो किसी कौम का हित कर सकते हैं और न ही किसी धर्म या संप्रदाय का। इस घटना की सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने निंदा की है, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिज्ञा की है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

इस विनाशकारी हमले के आलोक में, पूरे समुदाय के लिए ऐसी हिंसा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना महत्वपूर्ण है। यह हमला सिर्फ पीड़ितों और उनके परिवारों पर नहीं किया गया है, बल्कि हमारे समावेशी समाज के शांति और सद्भाव पर प्रहार किया गया है। सभी धर्मों के लोगों के लिए यह आवश्यक है कि वे आतंक के इस कृत्य की स्पष्ट रूप से निंदा करें और शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें और धर्म के नाम पर की जाने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा को खारिज करें।

आतंकवाद का मुकाबला करने और शांति के संदेश को बढ़ावा देने में सामुदायिक नेताओं, संगठनों और परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। युवाओं को उनके धर्म की सच्ची शिक्षाओं के बारे में शिक्षित करना, जो शांति, करुणा और सह-अस्तित्व की वकालत करती है, सर्वाेपरि है। युवाओं को आतंकवादी समूहों की चालाकीपूर्ण रणनीति के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिए, जो व्यक्तियों को भर्ती करने और कट्टरपंथी बनाने के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं।

युवा पीढ़ी को राष्ट्र व समाज विरोधी तत्वों, नफरत फैलाने वालों का शिकार बनने से रोकने के लिए कई उपाय लागू किए जाने चाहिए। धार्मिक और सामुदायिक नेताओं द्वारा आयोजित सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम युवाओं को आतंकवाद के खतरों और राष्ट्रीय एकता के महत्व के बारे में शिक्षित कर सकते हैं। स्थानीय कानून प्रवर्तन के साथ मजबूत संबंध बनाने से समुदायों के भीतर कट्टरपंथ के प्रयासों को पहचानने और रोकने में मदद मिल सकती है। स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में ऐसे कार्यक्रमों को शामिल करना चाहिए जो आलोचनात्मक सोच, सहिष्णुता और विविधता के मूल्य को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, आतंकवादी समूहों के दुष्प्रचार का प्रतिकार करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से सकारात्मक संदेश और प्रति-कथाएँ फैलाई जानी चाहिए।

इस दुखद घटना के जवाब में, मुस्लिम समुदाय के लिए आतंक के ऐसे कृत्यों के खिलाफ कड़ी निंदा करना महत्वपूर्ण है। हालांकि कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसकी निंदा की भी है। इसके अतिरिक्त, मुस्लिम युवाओं को शिक्षित और संवेदनशील बनाने और उन्हें ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से इनकार करने और इसके बजाय इन खतरों के खिलाफ एकजुट होने के लिए मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। शांति के संदेश को बढ़ावा देकर और हिंसा को अस्वीकार करके, समुदाय एक सुरक्षित और सामंजस्यपूर्ण भारत को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ मिलकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि नफरत और विभाजन की ताकतों को हराया जाए, जिससे हमारा देश विविधता और सद्भाव के प्रतीक के रूप में विकसित होता रहे।

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