विजय सहगल
बीते 9 अगस्त 2024 को एक बार फिर देश के उच्च सदन, राज्यसभा मे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के लिये अत्यंत अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया गया। लोकतन्त्र के सर्वाेच्च सदन राज्यसभा की वरिष्ठ, अनुभवी और परिपक्व समाजवादी पार्टी की सदस्या जया बच्चन से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा किया। सभापति के लिये प्रयुक्त उनकी भाषा और व्यवहार की जितनी भी निंदा की जाय, कम हैं।
राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने जब किसी विषय पर समाजवादी सांसद को बोलने के लिये आमंत्रित करते हुए कहा, सदस्यों इस मुद्दे पर श्रीमती जया अमिताभ बच्चन आखिरी वक्ता होंगी, मैडम, कृपया बोलें! इसके बाद जया बच्चन जब बोलने के लिये खड़ी हुई और उन्हे जिस विषय पर जो बोलना था, उसके इतर जो बोला, उसको सुनकर न केवल राज्यसभा के सभापति, राज्यसभा के सारे सदस्य और टीवी पर देख रहे लाखों करोड़ो दर्शक हतप्रभ रह गए। उन्होने कहा, सर, मै जया अमिताभ बच्चन बोलना चाहती हूँ, मै कलाकार हूँ। बॉडी लैड्ग्वेज समझती हूँ। एक्स्प्रेश्न समझती हूँ, और सर, मुझे माफ करिएगा, मगर आपका टोन (बोलने का लहजा) हमे अस्वीकार हैं। आप सभापति के आसन पर आसीन हैं। राज्यसभा मे कुछ क्षणों के लिये तो मानों सन्नाटा छा गया। प्रतिक्रिया स्वरूप सत्तापक्ष के लोगो ने भी प्रतिवाद किया।
सभापति का भी प्रत्युत्तर भी अपेक्षित था। सभापति ने जया बच्चन से आग्रह पूर्वक कहा आप बैठ जाइये!, कृपया बैठ जाइये। तब उन्होने बड़े धैर्य और सम्मान से कहा, जया जी, आपने अपने जीवन मे बड़ी ख्याति और सम्मान अर्जित किया हैं लेकिन आपको पता होगा कि एक अभिनेता, निर्देशक के तहत कार्य करता है। आप वहाँ से वो सब नहीं देख सकती जो मै यहाँ हर दिन, देखता हूँ। मै अपनी सीमा से परे सदस्यों का ध्यान रखता हूँ और आप मेरे बोलने के लहजे पर बात करती हैं? बस बहुत हुआ। आप कोई भी हों, आप एक विख्यात और यशस्वी व्यक्ति है पर आपको सदन की गरिमा का सम्मान करना होगा।
इस प्रकरण मे ये बात याद रखने की हैं कि सभापति ने तो जया बच्चन को आमंत्रित किया था राज्यसभा मे बोलने को लेकिन जया बच्चन ने अपने विचार रखना तो दूर, सीधे ही सभापति के बोलने के लहजे पर अकारण, असमय और अनावश्यक रूप से घृणित और अपमानित टिप्पणी कर दी? बड़ा खेद और अफसोस हैं कि जया बच्चन ने बिना किसी आधार के बेबुनियाद और अनर्गल टिप्पणी कर, न केवल सभापति का अनादर और अपमान किया है अपितु हमारे देश के उपराष्ट्रपति का निरादर और तिरस्कार किया। उन्हे ये याद रखना होगा कि जगदीप धनखड़ कोई व्यक्ति के रूप मे नहीं अपितु दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतन्त्र के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पदासीन, उपराष्ट्रपति पद का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और जया बच्चन ने सभापति की गरिमा, शान और मर्यादा का ही नहीं, सारे देश का अपमान किया हैं. उन्हे तुरंत ही सभापति से क्षमा मांगना चाहिये अन्यथा राज्य सभा को उनके विरुद्ध कठोर से कठोर कार्यवाही करना और आवश्यकता पड़ने पर उन्हे कठोरतम दंड के रूप मे सदन से निलंबित किया जाने पर नहीं झिझकना चाहिये।
यदि किसी विषय पर कभी उन्हे लगा होता कि सभापति के बोलने का लहजा अनुचित है तो उन्हे तभी शालीनता पूर्वक उनसे अपना प्रतिवाद दर्ज़ कराना चाहिये था? कल की घटना मे तो सभापति ने शालीनता और सम्मान पूर्वक उन्हे सदन को संबोधित करने के लिये आमंत्रित किया था, फिर तथाकथित किसी पुरानी घटना से जोड़कर इस तरह के अनैतिक आरोप लगाना पूरी तरह अनावश्यक और अनुचित था। सदन मे बोलने के अपने नियम और परम्पराएँ है। सभापति को भी सदन का सुचारु रूप से संचालन के लिये सदन द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करना आवश्यक हैं, सैकड़ों की संख्या मे उपस्थित सदस्यों का भी ये नैतिक और वैधानिक कर्तव्य हैं कि सदन, अनुशासित ढंग से चले, फिर जया बच्चन या मल्लिकार्जुन खडगे क्यों चाहते हैं कि सदन उनकी इच्छा या आकांक्षा या उनकी मर्जी से चले? यदि मतभिन्नता है तो लोकतन्त्र के तहत विपक्ष को सदन से बहिर्गमन का अधिकार तो मिला ही है?
जब से लोकसभा 2024 के चुनावो मे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को तीसरी जीत को कॉंग्रेस सहित इंडि गठबंधन के लोग अब तक पचा नहीं पा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी दलों के नेता एक पूर्वनियोजित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु दोनों सदनों मे समान रूप से आसंदी के विरुद्ध कोई न कोई षड्यंत्र कर रहे हैं अन्यथा लोकसभा के सभापति के विरुद्ध भी इसी तरह का अजेंडा न चलाते? लोकसभा मे भी लोकसभा अध्यक्ष के ओम बिड़ला के उपर राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अन्य इंडि गठबंधन के नेताओ द्वारा बार-बार पक्षपात पूर्ण आरोप लगाना, उनका निरादर, तिरस्कार और अवज्ञा, न की जाती। राज्य सभा मे भी उसी नक्शे कदम पर चलते हुए जया बच्चन ने भी वही आख्यान और अभियान चलाया!! कॉंग्रेस इस समय येन केन प्रकारेण किसी भी तरह सत्ता के बिना मछ्ली की तरह तड़प रही हैं। उन्हे उम्मीद थी कि इस लोकसभा के चुनाव मे भ्रामक और छद्म प्रचार के बल बूते वो सत्ता मे आ जाएंगे लेकिन वे इस कूटप्रबंध मे कामयाब न हो सके?
उक्त प्रकरण मे विपक्षी दलों के वॉक आउट के पश्चात सदन के बाहर जया बच्चन का जो आचरण देखने को मिला, वह तो मर्यादाओं की सभी सीमा को लांघ गया। सदन के बाहर प्रेस और मीडिया को संबोधित करते लिये उन्होने पुनः दोहराया कि सभापति के बोलने का लहजा ठीक नहीं था। सभापति की ओर इशारा करते हुए उन्होने कहा कि सदन के बाहर वे आम सांसदों की तरह एक सांसद हैं। वे हमारे कोई अन्नदाता नहीं हैं। अपने सांसद होने का इतना अहंकार और दंभ? भारत के उपराष्ट्रपति के पदासीन व्यक्ति को आम सांसद बतलाना उनकी सीमित, संकुचित और संकीर्ण सोच को दर्शाता हैं। आगे सभापति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा उनसे (जया बच्चन से) माफी की मांग से नीचे कोई सम्झौता न करना उनके मानसिक दिवालियापन की चरम सीमा थी। जया बच्चन द्वारा स्वयं अपने दुर्व्यवहार के लिये, सभापति से माफी मांगने की बजाय सभापति से माफी की मांग करना!! ये तो वही बात हो गयी कि, ष्चोरी और सीना जोरीष् या ष्उल्टा चोर कोतवाल को डांटेष्।
सभापति के साथ अपनी बेअदबी और बदमिजाजी को बड़ी सफाई से न्यायोचित ठहराते हुए उन्होने प्रेस कॉन्फ्रेंस मे नेता प्रतिपक्ष के साथ दुर्व्यवहार और महिलाओं के साथ अनुचित व्यवहार का मुद्दा भी जोड़ दिया ताकि राज्यसभा मे सभापति को बोले, अपने अमर्यादित, अनैतिक और अशोभिनीय व्यवहार पर पर्दा डाला जा सके। अपने सम्बोधन मे स्वयं को कलाकार बतलाने पर जया बच्चन जी को कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन सभापति महोदय द्वारा उन्हे सेलिब्रिटी कहने पर एतराज था और इसे महिलाओं के आत्मसम्मान से जोड़ कर अपने आपको निरीह महिला की तरह पेश करने के छद्म आरोप सभापति पर लगाना, क्या स्वयं जया बच्चन द्वारा महिलाओं के ही अपमान को नहीं दर्शाता?
जया बच्चन 2004 से अर्थात पिछले 20 वर्षों से समाजवादी पार्टी की राज्य सभा सदस्य हैं। बदमिजाजी के सिबाय उनका कोई उल्लेखनीय योगदान राज्य सभा मे नहीं रहा। उन जैसे वरिष्ठ सदस्य से अपेक्षा थी कि वे अपने व्यवहार से कोई ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करती जो एक नज़ीर के रूप मे उल्लेख किया जाता लेकिन दुर्भाग्य से वे ऐसा नहीं कर सकी? काँच के महलों मे रहने वालों को लोगों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिये, इस किवदंती के दृष्टिगत आज आवश्यकता इस बात की हैं कि सत्ताधारी दल और विपक्ष को आपस मे मिल बैठ कर संसद को दोनों सदनों को बिना किसी पूर्वाग्रह के चलाने के लिये सभापति का सहयोग करना चाहिये ताकि देश का लोकतन्त्र और मजबूत होकर दुनियाँ मे एक उदाहरण बन सके। यहां एक बात और बता दें कि एक छोटे पर्दे की कलाकार को देश की जनता ने केवल इसलिए नीचे गिरा दिया क्योंकि उन्होंने संसद भवन के अंदर एक प्रतिपक्षी नेता पर आंख मारने वाली टिप्पणी की थी। यह देश लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर करने वाला देश है। जया जी को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे गठबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)