रांची/ शहर स्थित विद्यापति चैक आज सुबह से ही गुलजार दिखन लगा। सुबह करीब आठ बजे बाबा विद्यापति प्रतिमा स्थल पर झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय सहित कई शैक्षणिक संस्थाओं के विद्यार्थी एकत्र हुए और बाबा की मूति व चबूतरे की साफ-सफाई की। इस दौरान विद्यार्थी सांस्कृतिक भारत की क्या पहचान देसी भाषा देसी बोल के नारे लगा रहे थे।
वरिष्ठा पत्रकार गौतम चैधरी, अमितेश आनंद एवं सुरेश कुमार सिंह के नेतृत्व में प्रतिमा स्थल पर पहुंचे छात्रों ने पहले तो बाबा चमूतरे की सफाई की फिर नारा लगाते हुए बाबा की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। इसके बाद विश्वविद्यालयीन छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए पत्रकार गौतम चैधरी ने कहा कि आज जिस भाषा से हम आपस में संवाद करते हैं उसके प्रणेता कवि कोकिल विद्यापति ही हैं।
विश्वविद्यालयीन छात्र-छात्राओं द्वारा बाबा के प्रति श्राधासुमन अर्पित किया गया। कार्यक्रम की अगुवाई गौतम चैधरी, नितेश कुमार तथा विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र सुरेश कुमार सिंह कर रहे थे। कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के छात्र कौशिक रंजन, अभिषेक कुमार, रोहित साहू, जयराज नंदन सिंह, अभिषेक कुमार हिमांशु, शिवदयाल मधुकर, आकाश कुमार, सारस्वत सोलंकी, राजवीर सिंह, सिद्धांत कुमार गुप्ता, शिवम सिंह, गौरव गिल, अनुष्ठान रानी, रितिका सिंह तथा प्रथम वर्ष के छात्र ज्वाला गौतम, अनंत कुमार, ओम निवास, आदर्श आदि मौजूद थे।
विद्यार्थियों के साथ संवाद में गौतम चैधरी ने विद्यापति के बारे में बताया कि 14 वीं सदी में जब विश्व काव्यसाहित्य करवट बदल रहा था तब विद्यापति के नेतृत्व में हिंदी मैथली काव्यसाहित्य उच्चतम गति में था उन्होंने बताया की बाबा विद्यापति हिंदी मैथली समेत 13 अन्य भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने यह भी बताया कि स्वयं भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए थे।
उन्होंने कहा कि आज युवाओं को बाबा विद्यापति और उनसे जुड़े सभी साहित्यों को पढ़ना चाहिए, बाबा विद्यावती देसीपन की पहचान थे और इन्हीं के दिखाए गए मार्ग पर चलकर भारत के विश्व गुरु का सपना दोबारा सरकार हो सकता है।
विद्यापति का जन्म भारत के उत्तरी बिहार के तिरहुत क्षेत्र स्थित, मधुबनी जिले के बिसफी नामक गांव में हुआ था। विद्यापति भारतीय, साहित्य की भक्ति रस के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली भाषा के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। विद्यापति ठाकुर के विरहिनी काव्य और प्रेमकाव्य के माध्यम से उन्होंने राधा-कृष्ण भक्ति को सुंदरता से प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में भक्ति और साधना के माध्यम से व्यक्त होने वाली अद्वितीय प्रेम की भावना को दर्शाया गया है।
विद्यापति ठाकुर की रचनाओं में उनकी गायकी भी प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी कविताएं स्वयं गाकर प्रस्तुत किया है। जिससे उनकी कविताएं आज भी सुनी जाती हैं।