एक घोषित आतंकी समूह का समर्थन फिलिस्तीनी जनता के साथ धोखा 

एक घोषित आतंकी समूह का समर्थन फिलिस्तीनी जनता के साथ धोखा 

एक व्यक्ति जिसके पास बेसुमार ताकत है लेकिन वह परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यवहार व चिंतन में लचीलापन नहीं लाता, ऐसा व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में टूट जाता है, ऐसे व्यक्ति की सफलता में सदा संदेह बना रहता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यवहार में समझौतों का समावेश नहीं करता है। वहीं दूसरा व्यक्ति काल और परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यवहार व चिंतन में समझौतों को समावेश करता है तथा व्यवहार में लचीलापन रखता है। ऐसे व्यक्ति की सफलता में कहीं कोई संदेह नहीं होता है। अपने प्रतिद्वंद्वी को मात देने में वह कामयाब होता है। इसकी व्याख्या करें तो इसे वीरतापूर्ण लचीलापन कहा जा सकता है। इस मामले में इमाम हसन की शांति संधि सबसे शानदार और ऐतिहासिक उदाहरण है। 

मध्य-पूर्व में लंबे समय से अशांति बनी हुई है। इसका कारण इजरायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्ष है। अभी हाल ही में हमास के एकतरफा आक्रमण के बाद एक बार फिर-से संघर्ष तेज हो गया है। इस संघर्ष ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। इस मामले में दुनिया के कई देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भारत हमेशा-से फिलिस्तीन के प्रति अपना समर्थन दिखाता रहा है। इस बार के संघर्ष में भी भारत ने अपने पारंपरिक विदेश नीति के अनुसार ही व्यवहार किया और फिलिस्तीन की आम जनता के लिए संघर्ष को तत्काल रोकने की वकालत की। भारत बहुसांस्कृतिक देश है, इसलिए भारत को अपनी आंतरिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विदेशी व्यवहार को सिरे चढ़ाना होता है। भारत के द्वारा फिलिस्तीनी जनता के प्रति सदसयता ने कई सवालों को जन्म दिया है। सबसे पहला सवाल तो यह है कि भारतीय मुसलमानों को गाजा पट्टी के प्रभारी समूह हमास के बारे में किस प्रकार का नजरिया रखना चाहिए? यह सवाल तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब भारत के कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा आयोजित रैली को हमास के नेता आभासी माध्यम से संबोधित करते हैं। 

यह ध्यान में रहे कि फिलिस्तीन के लिए भारत का समर्थन वहां की आम जनता के लिए न्याय, आत्मनिर्णय और दो-राज्य समाधान के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए है। भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने फिलिस्तीन को 1988 से एक देश के तौर पर आधिकारिक रूप से मान्यता दे रखा है। यही नहीं भारत फिलिस्तीनी जनता के लिए सदा से अपनी चिंता जताता रहा है। भारतीय कूटनीतिकों ने संयुक्त राष्ट्र के साथ ही दुनिया के अन्य कई मंचों से फिलिस्तीनी प्रस्तावों का समर्थन किया है। समय समय पर भारत ने फिलिस्तीनी लोगों को वित्तीय और मानवीय मदद भी पहुंचाई है। अभी हाल के संघर्ष में भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से मानवीय सहायता फिलिस्तीन तक पहुंचाई है। फिलिस्तीनी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और उसके व्यक्तित्व का विकास, भारतीय वैदेशिक कूटनीति का अंग है। 

गाजा में हमास के शासन के दौरान फिलिस्तीनी राजनीति साफ तौर पर विभाजित दिख रहे हैं। फिलिस्तीनी गुटों में संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। यह हिंसक भी हो रहा है। ऐसे में फिलिस्तीन के अंदर राजनीतिक एकता एक बड़ी चुनौती है। यह सफल शांति वार्ता का महत्वपूर्ण पहलू है। एक सर्वमान्य अवधारणा है कि किसी एक गुट का समर्थन करना अलोकतांत्रिक है। एक खास गुट का समर्थन, वैधानिक लोकतंत्र और स्वशासन के बुनियादी सिद्धांतों को नष्ट कर देती है। दूसरी ओर, कई शांति पहलों को खारिज करने के अलावा, हमास ने इजरायल के अस्तित्व को ही खारिज कर दिया है। शांति पहल को विफल करने वाले संगठन का समर्थन कर स्थायी शांति की कल्पना नहीं की जा सकती है। हमास लगातार शांति समझौतों को खारिज करता रहा है। ऐसे में हमास को प्रोत्साहित करने से क्षेत्रीय स्थिरता बिगड़ सकती है और हिंसा की संभावना बढ़ जाएगी।

यहां हमें यह भी समझना होगा कि जब हमास जैसे गैर-राज्य तत्व, जिसकी वैश्विक मान्यता न हो, संघर्ष क्षेत्र में प्रवेश करत है तो आम जनता ही परेशान होती है। हमास जैसे संगठनों को यह समझना होगा कि यह दो गुटों के बीच संघर्ष के बजाय विशुद्ध रूप से मानवाधिकारों की लड़ाई है। यह जरूरी है कि मुसलमान और वैश्विक समुदाय हमास जैसे समूहों का समर्थन करते वक्त इस बात का खयाल रखें। चूंकि भारत सरकार फिलिस्तीनी लोगों की स्थिति के प्रति सहानुभूति रखती है, इसलिए भारतीयों, विशेषकर मुसलमानों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित हमास मिलिशिया के साथ जुड़ने के बजाय राजनयिक और शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा दें। यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष का एक मात्र समाधान शांतिपूर्ण समझौता ही है, जिसमें दोनों देशों को दोनों देशों के अस्तित्व स्वीकारना होगा। इजरायल यदि यह सोच रहा होगा कि हम फिलिस्तीन को मिटा देंगे, ऐसा संभव नहीं है। वहीं हमास या उग्रपंथी इस्लामिक चिंतक यदि यह समझ रहे होंगे कि इजरायल को यहां से खदेड़ दिया जाएगा तो फिलहाल यह भी संभव नहीं है। इसलिए दोनों पक्षों को लचीला व्यवहार तो अपनाना ही होगा। 

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