गौतम चौधरी
अभी हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू ऑरलियन्स में एक कथित इस्लामिक चरमपंथी द्वारा किया गया हमला दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया है। इस हमले को कई तरह से देखा और व्याख्या किया जा रहा है। कुछ लोग इसे धार्मिक नजरिए से देख रहे हैं तो कुछ जानकारों का मानना है कि इस प्रकार के हमले पूंजीवादी अवसाद का परिणाम है। दरअसल, यह हमला एक खास धर्म विशेष के धार्मिक ग्रंथों की नकारात्मक व्याख्या का परिणाम बताया जा रहा है। इस हमले ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी तथ्य की आधी-अधूरी जानकारी हद से अधिक खतरनाक है। इसलिए किसी भी तथ्य की व्याख्या समय और परिस्थिति के अनुकूल ही होनी चाहिए। यह वही कर सकता है जिसके पास विषय की गंभीर जानकारी के साथ ही आधुनिक परिस्थिति और तर्क शास्त्र का मुकम्मल ज्ञान हो।
मदरसों ने ऐतिहासिक रूप से मुस्लिम समाज में शिक्षा प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ज्ञान के इस परंपरा ने इस्लामी धर्मशास्त्र के विद्वानों और धार्मिक नेताओं का निर्माण किया है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि मदरसों के कारण आज मुस्लिम समाज धार्मिक शिक्षा के मामले में दूसरे अन्य समाज की तुलना में ज्यादा समृद्ध है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि धार्मिक शिक्षा से ही जीवन की सारी समस्याओं का समाधान निकल आएगा। दूसरी बात यह भी है कि मदरसे की शिक्षा को भी समय समय पर काल और परिस्थिति को देखते हुए आधुनिक बनाया जाता रहा है। यह जरूरी भी है। इसके बिना आधुनिक चुनौतियों का सामना करना असंभव है। न्यू ऑरलियन्स की घटना के पीछे धार्मिक शिक्षा को कारण बताया जा रहा है। यदि उस व्यक्ति में आधुनिक तर्क की ताकत होती तो वह इस प्रकार की घटना को अंजाम देने से हिचकता। आज, तेजी से बदलती दुनिया में अपने आप को स्थापित करने के लिए आधुनिक आवश्यक उपकरणों के साथ मुस्लिम युवाओं को लैस करने करने की जरूरत है। धर्मशास्त्रीय शिक्षा किसी के विश्वास और इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन आधुनिक शिक्षा किसी भी समाज या व्यक्ति को आसन्न चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
कई पारंपरिक मदरसों में आज भी रटंत पद्धति अपनाई जाती है। आज इसकी जरूरत नहीं है। इसके स्थान पर यदि समझ को विकसित किया जाए और तर्क की कसौटी पर तथ्यों को रख कर बच्चों को परोसा जाए तो इसका अधिक फायदा होगा। दुनिया भर में आधुनिक शिक्षा इसी प्रकार दी जा रही है। हालांकि रटंत पद्धति की भी अपनी खूबियां हैं, विशेष रूप से कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को संरक्षित करने के लिए, यह पद्धति बेहतर मानी जाती है। लेकिन शिक्षा का यहीं तक विस्तार नहीं है। इसके कारण सोचने और उसके आधार पर समझने की शक्ति का ह्रास होता है। सोच की इस कमी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। न्यू ऑरलियन्स अटैक जैसी घटनाओं पर विचार करें, जहां अपराधी ने कथित तौर पर कुरान की अपने तरीके से व्याख्या कर ली। इस घटना के व्याख्याकारों का यह मानना हे कि अपराधी ने घटना को अंजाम देने से पहले किसी प्रकार के तर्क का उपयोग ही नहीं किया। वह मध्ययुगीन चिंतन को आधुनिक समाज पर थोपने की कोशिश की और इसी सोच ने उसे अपराध करने की प्रेरणा दी।
धर्म, जैसा कि हम जानते हैं, सभी रूपों में ज्ञान की खोज को प्रोत्साहित करता हैं। इस्लामिक पवित्र ग्रंथों में भी बार -बार ब्रह्मांड के प्रतिबिंब, तर्क और अन्वेषण पर जोर दिया गया है। इस्लामिक पवित्र ग्रंथों में आधुनिक ज्ञान व विज्ञान तथा नई तालीम को सीखने पर जोर दिया गया है। यहां तक कि कई मौके खुद संदेश वाहकों ने यह कहा है कि ज्ञान के यदि चीन तक की यात्रा करनी पड़े तो करनी चाहिए। इस प्रकार आधुनिक शैक्षणिक तरीकों को अपनी शैली में शामिल कर मदरसा अपने विद्यार्थियों को जहां एक ओर चरमपंथी सोच से बचा सकता है वहीं आधुनिक चुनौतियों का सामना करने की उसे ताकत प्रदान कर सकता है।
मदरसों को आधुनिक बनाने के लिए, एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें पाठ्यक्रम सुधार शामिल हो सकता है। धर्मशास्त्र के साथ अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और कंप्यूटर कौशल जैसे विषयों को प्रस्तुत करना, बेहतर विकल्प हो सकता है। मदरसों में शिक्षकों को सीखने को इंटरैक्टिव और आकर्षक बनाने के लिए आधुनिक शिक्षण कार्यप्रणाली में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। आधुनिकीकरण के लिए संसाधन, धन और विशेषज्ञता प्रदान करना जरूरी है। इसके लिए सरकार को तो आगे आना ही चाहिए साथ में निजी क्षेत्र के लोगों को भी इसमें सहयोग करने की जरूरत है। मदरसों में समकालीन मुद्दों पर चर्चा को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। साथ ही आधुनिक तकनीक की शिक्षा भी एक बेहतर विकल्प है।
यह सोचना किसी के लिए भी सही नहीं है कि मदरसों को आधुनिक बनाना उनके धार्मिक चरित्र को मिटाना है। बल्कि आज की दुनिया में उनकी प्रासंगिकता को बढ़ाने के बारे में है। आधुनिक शिक्षा को एकीकृत करके, मदरसा मुस्लिम युवाओं की एक सशक्त पीढी का निर्माण कर सकता है। यह पीढी न केवल अपने विश्वास व आस्था में बेहतर होगा अपितु समाज में सार्थक योगदान देने के साथ ही आधुनिक चुनौतियों का सामना करने की ताकत भी रखेगा। यह परिवर्तन मुस्लिम शिक्षा और उच्च शिक्षा और पेशेवर अवसरों के लिए दरवाजे खोलने के बारे में रूढ़ियों को तोड़ने के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है कि मुस्लिम युवा एक वैश्विक दुनिया में समान पायदान पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। आधुनिकीकरण को गले लगाकर, मदरसा अपने दोहरे उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। पहला आधुनिक दुनिया की मांगों के लिए छात्रों को तैयार करना और दूसरा आध्यात्मिक विकास का पोषण करना। यह संतुलन समुदाय को सशक्त करेगा और इस्लाम के सीखने, प्रगति और मानवता के लिए सेवा के कालातीत संदेश की पुष्टि करेगा।