गौतम चौधरी
विगत दो दिनों से पूरा ईसाई जगत अपने पवित्र प्रभु के बेटे जीसस के शुभागमन उत्सव, क्रिसमस में डूबा हुई है। दुनियाभर के मसीही विश्वासी, मसलन ईसाई धर्मावलंबियों के मुख्यालय कहे जाने वाले वेटिकन से पोप प्रेम, करुणा, कोमलता का संदेश के साथ ही बुजुर्गों के प्रति सकारात्मकता का संदेश प्रसारित कर चुके हैं। ईसाई हो या नहीं लेकिन इन दिनों पूरी दुनिया क्राइस्टमैय दिख रहा है लेकिन जिस यूरोप की धरती से येशु के जन्म के उत्सव का संदेश पोप प्रसारित किए उसी यूरोप के एक छोटे से स्थान, सेलिसबरी में अभी दो दिन पहले हजारों लोग जुटे और विंटर सोल्सटिस नामक पर्व मनाया। इतिहासकार बताते हैं कि ब्रिटेन के सेलिसबरी में यह पर्व विगत पांच हजार साल से मनाया जा रहा है। 10 20 से लेकर 31 दिसंबर तक चलने वाले इस पर्व को सूर्योपासना से जोड़ा जाता है और यहां आने वाले लोगों की मान्यता है कि स्ओनहेंज के पत्थरों से लिपटने से फसल अच्छी होती है जीवन में उन्नति मिलती है। यहां आने वाले लोग सूर्य की पहली किरण पाने के लिए लालायित रहते हैं। स्ओनहेंज के पत्थरों के पास पूर्व दिशा में खड़े होगर सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। ये कौन लोग हैं और इस पर्व को क्यों मनाते हैं इसके बारे में दुनिया के लोग अनभिज्ञ हैं लेकिन ईसाई चिंतन के ही एक संप्रदाय के द्वारा जीसस के जन्म दिन पर विवाद खड़ा करने के बाद इस बात को बल मिलने लगता है कि यूरोप के लोग ईसाई बनने से पहले मूर्तिपूजक थे और सूर्योपासना की प्रथा पूरे यूरोप में प्रचलित थी।
रांची के बरियातू रोड पर एक चर्च है। यहां के ख्रिस्ती विश्वासी क्रिसमस का त्योहार नहीं मनाते हैं। इस प्रकार के चर्च दुनिया भर में हजारों की संख्या में होंगे लेकिन ये प्रभु के पवित्र पुत्र जीसस का जन्मोत्सव क्यों नहीं मनाते हैं, इसका सीधा संबंध ब्रितानी सेलिसबरी के उस स्टोनहेंज से है जो हजारों साल पुरानी है। ख्रिती विश्वासी में से सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट चर्च और चर्च आॅफ क्राइस्ट ऐसा संप्रदाय है जो जीसस का जन्मोत्सव, यानी क्रिसमस नहीं मनाता है। इन विश्वासियों का तर्क है कि बाइबिल में ईसा मसीह के जन्म की कोई तारीख का उल्लेख नहीं है। इन विश्वासियों का यह भी मानना है कि बेबीलोन से क्रिसमस की परंपरा आई जो यूरोप में प्रचलित हो गयी और चैथी शताब्दी के बाद उसी परंपरा को जीसस के जन्मोत्सव के साथ जोड़ दिया गया। इनका मामना है कि क्रिसमस मनाना बेबोलियन रिवाजों को ईसाइयत के आध्यात्मिक आदर्शों पर थोपना है।
सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट विश्वासी क्रिसमस के दिन न तो कोई आराधना करते और न ही यहां के अनुयायी किसी को हैप्पी क्रिसमस या मेरी क्रिसमस कहते हैं। इस संप्रदाय के वरिष्ठ याजक डॉ. जे एम कुजूर कहते हैं कि हमारी आस्था का एकमात्र स्रोत बाइबल है। बाइबल के न्यू टेस्टामेंट के चार समाचारों में ईसा मसीह की जीवनी है। ये चारों सुसमाचार मार्क्स, मैथ्यू, ल्यूक और जॉन द्वारा लिखे गए हैं। इनमें से किसी में ईसा की जन्म की तारीख नहीं बताई गई है। न्यू टेस्टामेंट में ईसा के स्वर्गारोहण के 300 साल बाद तक की घटनाओं का उल्लेख है। कहीं भी क्रिसमस मनाने की कोई चर्चा नहीं है। यहां तक कि 300 साल बाद तक के दृष्टांत में भी ईसा मसीह के जन्म की तारीख बाइबिल नहीं बताती है। कोई भी ऐतिहासिक तथ्य ईसा का जन्म 25 दिसंबर को होने की पुष्टि नहीं करते हैं।
जे एम कुजूर कहते हैं कि बेबीलोन में निमरोद नामक एक राजा हुआ। उसने अपने बेटे को चमत्कारी कहना शुरू किया और जनता को अपने बेटे का जन्मदिन मनाने के लिए बाध्य किया। उसके बेटे का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। बेबीलोन की जनता राजा के डर से उसके बेटे का जन्मदिन 25 दिसंबर को मनाने के साथ ही उसकी पत्नी की गोद में उसके बेटे की मूर्ति रखकर पूजा भी करने लगी। सालों साल की परंपरा ईसाइयत ग्रहण के बाद भी बरकरार रही। बेबीलोन से यह रोम पहुंचा। रोमन सम्राट कांटेस्टाइन के समय में ही ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित करने के बाद 25 दिसंबर को ईसा का जन्म दिन क्रिसमस के रूप में मनाया जाने लगा। वहीं निमरोद की पत्नी और बेटे की मूर्ति को लोग मदर मेरी और जीसस की मूर्ति मानकर घरों में स्थापित करने लगे।
पास्टर कुजूर कहते हैं कि यह निर्विवाद तथ्य है कि ईसा का जन्म तब हुआ जब उनके पिता जोसेफ और मां मेरी रोमन सम्राट कैसर के आदेश पर जनगणना में शामिल होने के लिए नाजरथ से यरूशलम जा रहे थे। उसी समय बेथलेहम में खुले आसमान तले सोये गड़ेरियों के बीच उनलोगों ने आसरा पाया और ईसा का जन्म हो गया। पूरे मध्यपूर्व में ऋतुएं एकसाथ आती हैं। यानी दिसंबर के महीने में इजरायल में भी जाड़ा पड़ता है। ऐसे समय में गड़ेरिए खुले आसमान तले नहीं सो सकते हैं। जाहिर है कि जब भी ईसा का जन्म हुआ होगा उस समय गर्मी का मौसम रहा होगा।
पास्टर के तर्क में सच्चाई झलकती है। इस विषय में इतिहासकारों का एक समूह यह भी कहता है कि ईसाइयत के प्रचार से पहले पूरा यूरोप सूर्योपासना का केन्द्र था। ब्रिटेन के सेलिसबरी में स्थित स्टोनहेंज और कुछ नहीं एक ज्योतिषीय प्रतीक है। किसी काल में इसे अंतरिक्ष गणना के लिए बनाया गया है। यह ठीक उसी प्रकार का निर्माण है जैसा भारत के कई शहरों में जंतर-मंतर का निर्माण कराया गया था। अंतरिक्ष गणना के लिए पहले गणना घरों का निर्माण होता था। ब्रितानी पुरातन स्टोनहेंज का पत्थर गणना गृह रहा होगा, जो समय के साथ खंडहरों में बदल गया है लेकिन परंपरा अभी भी यहां जिंदा है। लोग यहां आते हैं और इस बात का सबूत देते हैं कि यह पहले मूर्ति पूजक समाज रहता होगा। यूरोप के कई पुरातात्विक साइट पर आकाश देवी और उसकी गोद में विराजमान सूर्यपुत्र को दिखाता मूर्तियां मिली है। इससे यह साबित होता है कि आकाश देवी और उसी गोद में सूर्य की पूजा यूरोप की पुरानी मान्यताओं में से है। किसी दबाव या लालच में या फिर खुद के विश्वास से लोग अपनी मान्यता और धारणा बदल लेते हैं लेकिन उसकी संस्कृति लंबे समय तक नहीं बदलती। भारत में इसके कई उदाहरण मिल जाते हैं। दूसरी बात यह है कि एकेश्वरवाद का प्रचार तो यूरोप में हो गया लेकिन यूरोप की पुरानी परंपरा और मान्यताओं का रातोंरात बदलना आसान नहीं था। रोम के पोप ने इसके लिए एक तरकीब निकाली और चौथी शताब्दी में यीशु के जन्म की घोषणा कर दी। कहा गया कि 25 दिसंबर को ही प्रभु के पवित्र पुत्र का जन्म हुआ था। इसका न तो कोई धार्मिक प्रमाण है और न ही इतिहासिक प्रमाण। यह केवल और केवल पोप के मनगढ़ंत कपोल कल्पना पर आधारित एक संस्कृति का कायांतरण मात्र है।
बता दें कि एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर येशु का जन्म 7 ईसा पूर्व से 2 ईसा पूर्व के मध्य 4 ईसा पूर्व में हुआ था। जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान, सभी बातें अज्ञात है। इसका बाइबिल में भी कोई उल्लेख नहीं है। ईसाई जगत येशु मसीह का जन्मदिन 25 दिसंबर मानता है, परन्तु विलियम ड्यूरेंट ने येशु मसीह का जन्म वर्ष ईसा पूर्व चौथे वर्ष लिखा है। यह कितनी असंगत बात है कि ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है, जबकि ईसाई काल गणना येशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, और इनके जन्म से पूर्व के काल को ईसा पूर्व कहते हैं और जन्म के बाद की काल की गणना ईस्वी में की जाती है। हैरतअंगेज बात यह भी है कि आज सम्पूर्ण विश्व में ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है एक जनवरी। तो क्या ईसा का जन्म ईस्वी सन् से एक सप्ताह पहले हुआ? यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई? येशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर विद्वान भी एक राय नहीं हैं।
क्रिसमस के पर्व पर तर्क यह भी दिया जाता है कि प्राचीन काल में 25 दिसम्बर को मकर संक्रांति अर्थात शीतकालीन संक्रांति पर्व मनाया जाता था और यूरोप में धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना की जाती थी, जिसका निक्षेप ब्रिटेन का विंटर सोल्सटिस है। काल वेत्ताओं के अनुसार सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है। गणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करते हैं। यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलते हैं तो उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी कम होने की शुरुआत होती है। चूकि यूरोप उत्तरी गोलार्ध में है इसलिए यहां के लोग 25 दिसम्बर को मकर संक्रांति मनाते थे। विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया था। सबसे पहले 25 दिसम्बर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट के समय में 336 ईस्वी में मनाया गया था। इसके कुछ वर्ष बाद पोप जुलियस ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी, तब से दुनिया भर में 25 दिसम्बर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है।