यहां आज भी मौजूद है भगवान श्रीकृष्ण और राधा के पदचिन्ह

यहां आज भी मौजूद है भगवान श्रीकृष्ण और राधा के पदचिन्ह

अमरदीप यादव

झारखंड के साहिबगंज जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर गंगा के तट पर स्थित रुकन्हैया स्थान का नाम देश ही नहीं विदेशों तक प्रसिद्ध है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली माना जाता हैं। प्राचीनकाल में यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वैष्णव धर्म के प्रचारक श्री चैतन्य महाप्रभु को बाल रूप का दर्शन दिए थे। हिंदू धर्म ग्रंथ श्री चैतन्य चरितामृत के अनुसार 1505 इस्वी में श्री चैतन्य महाप्रभु बिहार के गया से अपने घर रुनवदीप लौटने के क्रम में यहां रुके थे। गया वे अपने माता पिता के पिडदान के लिए गए थे।

प्रेम विलास नामक पुस्तक के अनुसार 1505 ईसवी में यहां भव्य मंदिर था जिसमें राधा-कृष्ण की प्रतिमा स्थापित थी। उसी मंदिर में श्री चैतन्य महाप्रभु को मोर मुकुट धारण किए भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल रूप का दर्शन दिया। श्रीकृष्ण के बाल रूप को देख श्री चैतन्य महाप्रभु भावविभोर हो गए और उनसे भावविह्वल होकर आलिगनबद्ध हो गए। कहा जाता है कि इससे पूर्व द्वापर युग में भी श्रीकृष्ण एक बार यहां आए थे। ग्रंथों के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ महारास कर रहे थे। इस दौरान राधा के मन में गोपियों को लेकर द्वेष उत्पन्न हो गया। श्रीकृष्ण ने रुराधारानी की अंतरात्मा के विचारों को जान लिया और एक गोपनीय स्थान पर चले गये। इससे राधा परेशान हो गईं। उनके काफी अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने राधारानी को कन्हाई नाट्यशाला में लाकर प्रेम की भावना प्रकट किया। कालांतर में इस स्थल का नाम कन्हैयास्थान पड़ गया।

इस लीला के उपरांत भगवान श्रीकृष्ण व श्रीराधारानी अपने पदचिह्न यहां छोड़ गये, जो आज भी कन्हैयास्थान मंदिर में स्थापित है। कृष्णभक्त उत्तम प्रभु के अनुसार इस भव्य मंदिर को बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया। मंदिर में स्थापित राधा-कृष्ण की अष्टधातु हाल तक थी। 1994 में वह चोरी हो गई। वे कहते हैं कि विशाल प्राचीन मंदिर के अवशेष यहां आज भी मौजूद हैं। अगर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इसकी खुदाई हो तो इतिहास की परतों पर जमी धूल साफ हो सकती है। 1995 में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ (इस्कॉन) ने यहां मौजूद मंदिर का प्रबंधन अपने जिम्मे ले लिया। यहां अन्य मंदिरों का निर्माण भी कराया। वर्तमान समय में यहां अतिथि भवन, प्रवेश द्वार, शौचालय, ठहरने की व्यवस्था की व्यवस्था की गई है।

यहां गंगा तट को भी आकर्षक तरीके से सजाया गया है जहां दूर-दराज से आने वाले कृष्ण भक्त एवं पर्यटक गंगा स्नान करने आते हैं। पतित पावनी गंगा नदी के तट पर एक छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित कन्हैयास्थान इस्कॉन मंदिर में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, यूनान, चीन, रूस, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान सहित अन्य देशों से कृष्णभक्तों का आगमन सालोंभर होता रहता है। इससे यहां भक्ति की गंगा सदैव बहती रहती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्माष्टमी अत्यंत ही धूमधाम से यहां मनाया जाता है जिसमें झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा सहित अन्य राज्यों के हजारों कृष्ण भक्त कन्हैया स्थान आकर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं।

चैतन्य महाप्रभु पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के नवद्वीप शहर के रहनेवाले थे। नवद्वीप शहर अब नवद्वीप धाम के नाम से जाना जाता है। यहां के मायापुर में इस्कॉन का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है। यहां हर वर्ष लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं।

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