गौतम चौधरी
भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून पर 5 साल पहले ही मुहर लग गई थी। हालांकि, यह अब तक लागू नहीं हो पाया था। इसे लागू करने में इतना वक्त क्यों लगा इसके पीछे की जटिलताओं को भी केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने बताया है। सीएए को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन भी हुए थे। ऐसा इसलिए हुआ कि इसके बारे में आम लोगों को समय पर सही तथ्यों की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गयी। इसके लिए केन्द्र सरकार को दोषी ठहराया जा सकता है लेकिन सीएए किसी खास समुदाय के लिए हानिकारक है, इसमें रत्ती भर की सच्चाई नहीं है।
बता दें कि सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के लागू होने से अब तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी, जो दिसंबर 2014 तक किसी ना किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए। यह तर्क दिया जा सकता है कि सीएए का उद्देश्य 31 दिसंबर, 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को शरण प्रदान करना है। विचार यह है कि उन्हें भारत में नागरिकता और सुरक्षा प्रदान की जाए और इसका भारत में मुस्लिम नागरिकों की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इसके पक्ष में पहला तर्क मानवीय आधार पर है कि सीएए पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा के प्रति एक मानवीय प्रतिक्रिया है। उन्हें भारतीय नागरिक बनने का मौका देकर, इस कानून को उन लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के तरीके के रूप में देखा जाता है, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण उक्त देशों से भारत में आकर बस गए हैं। अब जहां तक मुसलमानों की बात है तो चूंकि जिन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से सताए गए अल्पसंख्यकों को सुविधा दी जाएगी, वहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है और वहां उन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जाता, इसलिए उन्हें इस अधिनियम से बाहर रखा गया है। दूसरे तथ्य के आधार पर अगर हम देखें तो ऐतिहासिक संदर्भों पर ध्यान दें तो इसमें हमें नजर आएगा कि सीएए सताए गए समुदायों को आश्रय प्रदान करने के भारत के ऐतिहासिक लोकाचार के अनुरूप है। ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला दिया जा सकता है, जहां भारत उत्पीड़न का सामना करने वाले समुदायों के लिए शरणस्थली रहा है, जिसके कारण भारत में एक समन्वयवादी संस्कृति विकसित हुई।
इस प्रकार का कानून इसलिए भी बनाया गया है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत में आकर शरण लिए उक्त देशों के धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के पास उचित दस्तावेज का आभाव है। इस कानून के बन जाने और लागू हाने से ऐसे प्रताड़ित जनों का कल्याण हो पाएगा। यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा में भी अहम भूमिका का निर्वहण करेगा। सीएए स्वाभाविक रूप से कुछ शरणार्थी समुदायों की स्थिति को औपचारिक बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देगा। इससे देश के भीतर ऐसी आबादी की उपस्थिति को ट्रैक करना और प्रबंधित करना आसान हो जाएगा, जिससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंच सकता है।
भारतीय संविधान में समानता और धर्मनिरपेक्षता निहित है क्योंकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में मुसलमानों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जाता था। इससे भारतीय मुसलमानों की नागरिकता की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। नागरिक संशोधन अधिनियम को लेकर एक कथित भेदभाव की भावना को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, बल्कि ऐसा नहीं है। चूंकि यह अधिनियम 2019 में अस्तित्व में आया और इसने अभी तक किसी भी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता की स्थिति को प्रभावित नहीं किया है, इसलिए इस अधिनियम से अल्पसंख्यकों को खासकर मुसलमानों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। इससे उनकी नागरिकता कतई प्रभावित नहीं होगी। इस कानून को लेकर कुद मौकापरस्त राजनेता, कथित धार्मिक नेता और बुद्धिजीवी आम लोगों को बड़गला रहे हैं। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका विरोध किया जाए और सरकार के प्रति पूर्वाग्रही रवैया अपनाया जाए।