गौतम चौधरी
मैं एक बार फिर आप पाठकों के लिए झारखंड के आंचलित क्षेत्रों में सुनी-सुनाई जाने वाली कथा प्रस्तुत कर रहा हूं। यह कहानी संथालपरगना वाले इलाके की है। कथा रोचक है और अलग तरीके की है। इसे इसलिए अलग कहा जाना चाहिए क्योंकि इस कथा का अंत बहुत दर्दनाक नहीं है। तो आइए सीधे हम कथा की ओर चलते हैं।
गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड के कल्हाझोर गांव के बैजल सोरेन नामक एक युवा चरवाहा रहता था। वह प्रतिदिन सुंदरपहाड़ी पर मवेशी चराते जाता था। उस दौरान वह बांसुरी बजाकर अपना मन बहला लिया करता था। आज भी जब आप बांसुरी की झारखंडी धुन सुनेंगे तो बरवस उसकी ओर खिंचे चले जाएंगे। झारखंडी बांसुरी की आवाज बड़ी प्यारी होती है। यह मेरे खुद का अनुभव है। बता दें कि चाहे वह गुर्जर चरवाहे हों या कोई अन्य, उनकी कहानियों में बांसुरी तो होती ही है। बैजल का पेशा ही यही था। वह प्रतिदिन मवेशी चराता और गहरी शाम को अपने घर चला आता था। एक दिन किसी कारण, स्थानीय साहूकारे ने उसके गांव के मवेशियों को बंधक बना लिया। उन मवेशियों में बैजल की मवेशियां भी थी। बैजल युवा था और क्रांतिकारी विचार से ओतप्रोत था। उन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में साहुकारों के प्रति आम आदिवासियों की धारणा अच्छी नहीं थी। गांव के लोग भी साहुकारे से नाराज थे। बैजल को यह अच्छा नहीं लगा। साहुकारे से गुस्साए बैजल ने उसका सिर काट कर पहाड़ पर टांग दिया। उन दिनों में अंग्रेजी राज कायम था। साधारण से साधारण अपराध पर प्रशासन चैकन्नी हो जाती थी। हत्या बड़ी बात होती थी। फिरंगियों ने बैजल को अपराधी घोषित कर गिरफ्तार कर लिया। युवा बैजल पर केस चला और उसे फांसी की सजा सुना दी गयी। अब उसकी मौत पक्की थी
इस बीच बैजल के साथ एक समानांतर कथा भी चल रही थी। हत्या के अपराध में बैजल को जब जेल में डाला गया तो वह अपनी बांसुरी न केवल साथ लाया अपितु मन बहलाने के लिए रात को बजा भी लिया करता था। उसकी बांसुरी इतनी मधुर थी कि जेल के अधिकारी भी प्रभावित हो गए। फिर वह जेल के अधिकारियों को अपनी बांसुरी सुनाने लगा। बांसुरी की धुन इतनी प्यारी थी कि अंग्रेज अधिकारी इसमें डूब जाते थे। उसी बांसुरी ने बैजल की जान बचा दी। समय बीत गया लेकिन बैजल की फांसी नहीं हुई। जेल के अधिकारी की एक बेटी भी थी। अंग्रेज अधिकारी के साथ उसकी बेटी भी बैजल की बांसुरी सुनती थी और रोमांचित होती थी। वह अंग्रेजन न जाने कब बैजल को अपना दिल दे बैठी। प्रेम में तो कुछ भी नहीं दिखता है। इस प्रेम कथा में बैजल सोरेन को कोई नहीं मारता। उसने न आत्महत्या की और न ही किसी ने छल से हत्या की। इस प्रमकथा का अंत दुखांत नहीं सुखांत है। जब अंग्रेजन बैजल से प्रेम करने लगी, तो वह महिला बैजल को अपने साथ इंग्लैंड ले गयी। इंग्लैंड में बैजल सोरेन का क्या हुआ किसी को नहीं पता लेकिन बैजल सोरेन की कहानी आज भी पूरे संथालपरगना में कही और सुनी जाती है। मसलन, बैजल की बांसुरी की धुन भी लोगों को याद है। कुछ लोग कहते हैं कि बैजल उस अंग्रेजन को प्रतिदिन बांसुरी सुनाया करता था। गोड्डा के सुंदरपहाड़ी इलाके में बैजल सोरेन के प्रेम और वीरता की आज भी गूंज सुनाई देती है।