गौतम चौधरी
जनपदों व ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कुछ ऐसी कथा सुनने को मिलती है जो प्रकृति से जुड़ी होती है लेकिन उसका मानवीय मिथकीकरण कर दिया गया है। उसका कोई इतिहासिक प्रमाण नहीं होता है लेकिन उसकी रोचकता इतनी व्यापक होती है कि कई पीढ़ियों सांस्कृतिक स्वरूप को वह एक साथ प्रतिबिम्बित करती है। ऐसी ही एक कथा झारखंड के खूंटी जिले की है। कथा अपने आप में स्थानीय माटी की गंध में सराबोर है। आपने तीसरी कसम फिल्म तो जरूर देखी होगी। उसमें फिल्म का नायक नायिका को एक कथा सुनाता है। वह कथा आंचलिक है लेकिन प्रकृति का मानवीय मिथकीकरण का एक उदाहरण भी है। ठीक उसी प्रकार की यह कथा है। तो आइए बिना किसी लाग लपेट के यह कथा आपको सुनाते हैं।
झारखंड स्थित खूंटी जिले में पंचघाघ नामक एक जलप्रपात है। उस जलप्रतात से संबंधित एक प्रेम कहानी जुड़ी हुई है। कथा मूलतः प्रेम कहानी है। कहानी आज भी लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। स्थानीय लोगों का मानना है कि पंचघाघ जलप्रपात से बहने वाली पांच धाराएं दरअसल पूर्व काल में पांच बहने थी। वह पांचों बहन एक ही युवक से प्रेम करती थी। पंचघाघ पांच बहनों के अंतिम निश्चय का प्रतीक है। यह निश्चय साथ जीवन जीने का नहीं, बल्कि साथ मरने का है। माना जाता है कि खूंटी के एक गांव में पांच बहनें रहती थीं, जिन्हें एक ही पुरुष से प्रेम हो गया था। वह पुरुष बारी-बारी से पांचों बहनों से मिलता था लेकिन एक दिन भेद खुल गया। सगी बहनों को जब उनके साथ हो रहे इस विश्वासघात का पता चला, तो अपने असफल प्रेम के कारण पांचों बहनों ने एक साथ नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। कहा जाता है कि इस घटना के बाद ही जलप्रपात की धारा पांच हिस्सों में विभाजित हो गयी। स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि पंचघाघ की पांच धाराओं में आज भी उस पांच बहनों के क्रंदन की आवाज सुनाई देती है। वह आवाज इतनी हृदयविदारक है कि लोगों को परेशान कर देती है। यही कारण है कि संवेदनशील व्यक्ति पंचघाघ की धारा के बहुत निकट जाने से आज भी कतराते हैं।