गौतम चौधरी
पैतृक संपत्ति में अधिकार का कानून, जिसे आप विरासत कानून भी कह सकते हैं, किसी भी देश के कानूनी ढांचे का महत्वपूर्ण अंग है। यह परिवारों के भीतर संपत्ति और धन के न्यायोचित वितरण को सुनिश्चित करता है। भारत में, कई अन्य देशों की तरह, ये कानून सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में गहराई से जुड़े हुए हैं। इसके कारण कई प्रकार की विसंगति सामने आती रहती है। हालांकि हिन्दू कानून में कई प्रकार का बदलाव कर इसे समयानुकूल न्यायसंगत व व्यावहारिक बना दिया गया है लेकिन मुस्लिम समाज में ऐसा नहीं किया जा सका है। इसके पीछे महजबी सोच और पारंपरिक मान्यता लगातार प्रगतिशील परिवर्तन में अड़ंगा डालता रहा है। हमारे संवैधानिक सिद्धांतों के लिए यह लगातार चुनौती उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में महिलाओं की विरासत से संबंधित इस्लामी कानूनों के बेहतर कार्यान्वयन की आवश्यकता के बारे में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) द्वारा हाल ही में दी गयी स्वीकारोक्ति को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। एआईएमपीएलबी के द्वारा व्यक्त विचार समयानुकूल और प्रगतिशील सोच का द्योतक है। एआईएमपीएलबी के हाल की मान्यता अधिक मानकीकृत और न्यायसंगत दृष्टिकोण पर आधारित प्रतीत होता है। महिलाओं की विरासत से संबंधित इस्लामी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन में एआईएमपीएलबी द्वारा कमियों को पहचानना एक स्वागत योग्य कदम है। यह विरासत अधिकारों के संदर्भ में लैंगिक असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता की बढ़ती स्वीकार्यता का प्रतीक है। इस्लामी कानून, किसी भी अन्य धार्मिक कानून की तरह, समाज के साथ विकसित होने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे निष्पक्ष और न्यायसंगत हों, खासकर उन महिलाओं के लिए जिन्होंने विरासत के मामलों में ऐतिहासिक रूप से असमानता का सामना किया है।
भारत की कानूनी प्रणाली, धर्म पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों का एक जटिल जाल प्रस्तुत करती है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर महिलाओं के लिए असमान विरासत अधिकार सामने आते हैं। यहां बता दें कि भारत चूंकि एक धर्मनिर्पेक्ष देश है इसलिए यहां हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य समुदायों के अपने-अपने पारंपरिक कानून हैं, जिससे विभिन्न प्रथाएं संचालित होती है और उसकी व्याख्या भी अपने-अपने तरीके से भिन्न है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जहां महिलाओं को, उनकी धार्मिक संबद्धता के आधार पर, विरासत के मामलों में असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इससे उनके आर्थिक सशक्तिकरण और समग्र प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।
धार्मिक समुदायों में विरासत कानूनों को संहिताबद्ध करने की प्रक्रिया विरासत के सिद्धांतों को मानकीकृत करेगी, जिससे सभी व्यक्तियों के लिए उनकी आस्था की परवाह किए बिना, समान व्यवहार सुनिश्चित किया जा सकेगा। समानता, न्याय और गैर-भेदभाव के संवैधानिक लोकाचार का पालन करते हुए, संहिताकरण, विविध कानूनों को एक व्यापक कानूनी ढांचे में सुसंगत और सुव्यवस्थित किया जा सकता है। कई देशों में इस प्रकार की संहिता है भी। ऐसा कदम न केवल महिलाओं के विरासत अधिकारों को मजबूत करेगा, बल्कि कानूनी प्रक्रियाओं को भी सरल बनाएगा, जिससे वे सामान्य आबादी के लिए अधिक सुलभ हो सकेगा। भारतीय संविधान अपने नागरिकों को समानता और गैर-भेदभाव के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। विरासत कानूनों का संहिताकरण इन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होगा। एक समान दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा और लिंग, धर्म या जाति के आधार पर भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करेगा। यह इस सिद्धांत को सुदृढ़ करेगा कि प्रत्येक नागरिक कानून के समक्ष समान है और समान सुरक्षा व लाभ का हकदार है। इस पहल के महत्व के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए विरासत कानूनों को संहिताबद्ध करने के प्रयासों के साथ-साथ व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। आवश्यक कानूनी सुधारों के लिए समर्थन जुटाने और आम सहमति बनाने के लिए धार्मिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों, आम नागरिकों, समाज संगठनों और नागरिकों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करना महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए सरकार को भी अपने तरीके से अभियान चलाने चाहिए।
महिलाओं की विरासत से संबंधित इस्लामी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता को एआईएमपीएलबी की मान्यता समान नागरिक संहिता के तहत प्रस्तावित समान कानूनों के अनुरूप प्रतीत होता है। एआईएमपीएलबी के प्रयासों को धार्मिक सीमाओं से परे भारत में विरासत कानूनों को संहिताबद्ध करके एक व्यावहारिक कदम में तब्दील किया जाना चाहिए, जो यूसीसी के तहत आसानी से संभव हो सके। यह एकरूपता तो प्रदान करेगा ही साथ ही समानता और न्याय को सुनिश्चित करने की कोशिश भी करेगा। विरासत कानूनों को संवैधानिक ढांचे के साथ संरेखित करेगा और सभी के लिए समानता के सिद्धांत को कायम करेगा। इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने, अंततः एक अधिक समावेशी और प्रगतिशील समाज को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक भागीदारी को सूनिश्चत करना बेहद जरूरी है।