गौतम चौधरी
राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने अभी कुछ ही महीने पहले तमिलनाडु में एक नए आतंकवादी संगठन का पर्दाफास किया। यह आतंकवादी संगठन हिज्ब उत-तहरीर (एमयूटी) के नाम से अपना नया काम प्रारंभ किया है। इस मामले में इसी वर्ष इसके दो कुख्यात सरगना कबीर अहमद अलीयर और बावा बहरुद्दीन उर्फ मन्नई बावा को गिरफ्तार किया है। इन दोनों पर हिज्ब उत-तहरीर विचारधारा के प्रचार और गुप्त गैरकानूनी गतिविधियों के आयोजन का आरोप है।
अभिकरण की जांच में सामने आया कि आरोपी कट्टर इस्लामी विचारधारा से प्रभावित हैं और एक प्रदर्शनी के माध्यम से इस्लामी देशों की सैन्य ताकत को दर्शाने की योजना बना रहे थे। इस आयोजन का मकसद कथित रूप से भारत सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विदेशी ताकतों को आमंत्रित करना और हिंसक लड़ाई छेड़ना था।
इससे पहले, हिज्ब उत-तहरीर ने छह आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और जांच में पाया कि हिज्ब उत-तहरीर एक अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी संगठन है, जिसका उद्देश्य इस्लामी खिलाफत की स्थापना करना और अपने संस्थापक तकी-अल-दीन-अल-नभानी द्वारा लिखे संविधान को लागू करना है, जो सरिया कानून की गैर जरूरी व्याख्या पर आधारित है।
भारत सरकार ने अक्टूबर 2024 में एक अधिसूचना जारी कर हिज्ब उत-तहरीर और उसके सभी अनुषंगी संगठनों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंध लगा दिया था। हिज्ब उत-तहरीर अब इस मामले से जुड़े अन्य सह-साजिशकर्ताओं, अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और फंडिंग स्रोतों की जांच की जा रही है।
तमिलनाडु की यह घटना देश की सुरक्षा को चुनौती देता प्रतीत होता है। इसलिए यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है। तमिलनाडु के इस चरमपंथी इस्लामिक मॉड्यूल ने साबित कर दिया है कि इस प्रकार की अदूरदर्शी विचारधारा का कहीं न कहीं कोई वजूद जरूर है, हमारे समाज और राष्ट्र दोनों के लिए खतरनाक है। हिज्ब उत-तहरीर मॉड्यूल के उद्भेदन ने एक बार फिर नेत्रहीन विचारधाराओं के खतरों को प्रकाश में लाया है जो न केवल अव्यावहारिक हैं, बल्कि खतरनाक रूप से आधुनिक राष्ट्र-राज्य प्रणाली की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अनुसार, कई व्यक्तियों को समूह (हिज़्ब उत तहरीर) से उनके कथित लिंक के लिए गिरफ्तार किया गया है। एनआइए की रिपोर्ट बताती है कि समूह वैश्विक खिलाफत स्थापित करना चाहता है। इस प्रकार का संगठन भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को क्षति पहुंचाने में थोड़ा भी संकोच नहीं करेगा। विशेष रूप से भारत जैसे विविध और बहुसांस्कृतिक देश में इस प्रकार के संगठन की कोई भूमिका और गतिविधि देश की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है। यह एजेंसियों के लिए सतर्क रहने और दुर्भावनापूर्ण अभिनेताओं से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को सुरक्षित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है, जो विशिष्ट समुदायों को लक्षित करने और अपने एजेंडों के लिए सदस्यों को भर्ती करने के लिए संकल्पित है।
वर्ष 1953 में स्थापित हिज्ब उत-तहरीर, एक विस्तारवादी वैचारिक समूह है। इसका प्राथमिक उद्देश्य आधुनिक राष्ट्र-राज्य प्रणाली को रीसेट करना और एक वैकल्पिक शासन मॉडल स्थापित करना है, जिसे अक्सर खलीफा के रूप में जाना जाता है। खिलाफत या खलीफा का विचार दुनिया भर में मुसलमानों के लिए एक एकीकृत बल के रूप में कुछ पल के लिए आकर्षक लग सकता है लेकिन आधुनिक विश्व में इसकी स्थापना कभी नहीं हो सकती है। यह समझना आवश्यक है कि मुस्लिम विद्वानों के बीच इसकी व्यावहारिकता और कामकाज के बारे में व्यापक असहमति है। कुछ विद्वानों का तर्क है कि खलीफा प्रणाली ओटोमन साम्राज्य के दौरान अपने शीर्षबिंदु तक पहुंच गई, जो 1924 में ढहा दी गयी। कुछ अन्य विद्वान ओटोमन साम्राज्य को एक शाही शक्ति से ज्यादा नहीं मानते, जो पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों की तरह था।
बता दें कि 1648 की वेस्टफेलिया संधि के बाद दुनिया में नए शासन प्रणाली का विकास हुआ और राष्ट्र-राज्यों को अलग तरीके से गठित किया गया है। यह प्रणाली समय के साथ मजबूत हो गया है और वैश्विक आदेश की आधारशिला बन गया है। इस प्रणाली को पूर्ववत करने का प्रयास एक समय कैप्सूल के माध्यम से ब्रह्मांड को रीसेट करने के समान है। दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक एकीकृत राज्य की अवधारणा, जो कई देशों में फैली हो, न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि संगठित भौतिक सीमाओं और संप्रभुता के सिद्धांतों के साथ भी मौलिक रूप से असंगत है। समूह की विचारधारा न केवल पुरानी है, बल्कि इसकी यह धारणा भी बहुत गलत है कि वैश्विक पुनर्स्थापन हासिल किया जा सकता है और दुनिया की सभी समस्याएं स्वाभाविक रूप से हल हो जाएंगी।
सच पूछिए तो वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। मुसलमान एक अखंड समूह नहीं हैं, वे पहचान, विश्वास प्रणालियों और सांस्कृतिक प्रथाओं की परतों को शामिल करते हैं। मुस्लिम दुनिया संस्कृतियों, भाषाओं, राजनीतिक प्रणालियों और विचारधाराओं में अपार विविधता को दर्शाती है। यह विचार कि एक एकल, केंद्रीकृत प्राधिकरण प्रभावी रूप से इस तरह की विशाल और विविध आबादी को नियंत्रित नहीं कर सकती है। यह एक सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा खतरनाक है। यह असंभव है। इसको पूरा करने के लिए जो औजार और हथियार अपनाए जा रहे हैं उससे महाविनाश के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। सामान्य-सा प्रश्न है, क्या तुर्कीय अपनी भौतिक और राजनीतिक सीमा को समाप्त करेगा, क्या पाकिस्तान अपनी सीमा को समाप्त करेगा? सउदी अरब भी अपनी सीमा का समर्पण नहीं कर सकता है। इसके लिए उसने कई लड़ाई तो केवल तुर्कीय से लड़ी है। उसी प्रकार ईरान अपनी चौधराहट को कम नहीं कर सकता और मिस्र भी उसी प्रकार खड़ा है। ऐसे में खिलाफत की परिकल्पना कैसे संभव हो पाएगी?
इसलिए, तमिलनाडु में हिज्ब-उत-तहरीर मॉड्यूल का भंडाफोड़ आत्मनिरीक्षण का विषय है और ऐसे मामलों की वैधता का पता लगाने के लिए सतर्कता और व्यावहारिक जांच बढ़ाने की जरूरत है। यह सच है कि ऐसी विचारधाराएं समाज में कपटपूर्ण तरीके से प्रवेश कर जाती हैं और यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी व्यक्तियों को भर्ती करने की उनकी क्षमता को उजागर करती हैं, जो पारंपरिक रूप से कट्टरपंथ से जुड़े नहीं हैं। तमिलनाडु, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण सांप्रदायिक वातावरण के लिए जाना जाता है, कट्टरपंथ के बारे में सोचते समय दिमाग में आने वाली पहली जगह नहीं है। फिर भी, यह तथ्य कि हिज्ब-उत-तहरीर कथित तौर पर वहां अपनी उपस्थिति स्थापित करने में कामयाब रहा, समूह के व्यक्तियों को प्रेरित करने और भर्ती करने की क्षमता का प्रमाण है, जो एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती पेश करता है। इस खतरे का मुकाबला करने की दिशा में पहला कदम यह होगा कि लोगों द्वारा देखी जाने वाली हानिकारक सामग्री को फ़िल्टर किया जाए तथा ऐसी विचारधाराओं का शिकार होने से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए।
एनआईए की गिरफ्तारियां किसी विचारधारा का आँख मूंदकर अनुसरण करने तथा उसके परिणामों की गंभीरतापूर्वक जांच किए बिना उसके खतरों को रेखांकित करती हैं। तमिलनाडु में गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को कथित तौर पर हिज्ब उत तहरीर के बयानबाजी से प्रभावित किया गया था, जो महज एक मात्र यूटोपियन दावा है, लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए एक यथार्थवादी रोडमैप प्रदान करने में यह विफल रहा है। एक अव्यावहारिक विचारधारा का यह अंधा पालन न केवल व्यक्तियों को जोखिम में डालता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा पैदा करता है। राष्ट्र-राज्य का युग संप्रभुता के सिद्धांत की विशेषता है, जहां प्रत्येक देश को बाहरी हस्तक्षेप के बिना स्वयं शासन करने का अधिकार है। यह प्रणाली, हालांकि परिपूर्ण नहीं है, लेकिन इसने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए एक ढांचा प्रदान किया है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से बड़े पैमाने पर संघर्षों को काफी हद तक रोका है। हालांकि, हिज्ब उत तहरीर की तरह विचारधाराएं, जो राष्ट्र-राज्य प्रणाली को कमजोर करने की कोशिश करती हैं, इस नाजुक संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करती हैं। ऐसी विचारधाराओं का आँख मूंदकर अनुसरण करने से कई खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। सबसे बड़ा और सबसे घातक परिणाम उन समुदायों का अलगाव और विभाजन है, जिनका प्रतिनिधित्व ये समूह करने का दावा करते हैं। ऐसे समूह से जुड़ना जो शांति और वैध शासन के सिद्धांतों के विपरीत है, इसे मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने का एक षड्यंत्र समझना चाहिए।
इस तरह की अव्यवहारिक संबद्धता का एक और परिणाम एक राष्ट्र की प्राकृतिक सीमाओं के भीतर व्यापक हिंसा और संघर्ष हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय इतिहास इस बात के उदाहरणों से भरा हुआ है कि हिंसा और संघर्षों ने राज्यों, विस्थापित आबादी को कैसे विभाजित किया है और विशाल मानवीय पीड़ा का कारण बना है। आईएसआईएस ही इसका एक बड़ा उदाहरण है। इस अभियान में कोई दूसरा समुदाय नहीं मारा गया और न ही विस्थापित हुई। आईएसआईएस के कारण केवल और केवल मुसलमान ही विस्थापित हुए और मारे गए। मुसलमानों को ही भारी त्रासदि का सामना करना पड़ा।
व्यक्तियों, विशेष रूप से युवा लोगों के लिए यह आवश्यक है कि वे उन विचारधाराओं की आलोचनात्मक जांच करें जिनके वे संपर्क में हैं और उनकी व्यवहार्यता और परिणामों पर सवाल उठाएं। अंत में, एक बेहतर दुनिया की खोज वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए, न कि किसी ऐसी चीज के पालन में जो शांति और व्यवस्था के विपरीत हो जिस पर वर्तमान दुनिया बनी हुई है। आलोचनात्मक सोच और संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, जहां व्यक्तियों को निर्णायक और तर्कसंगत वैचारिक दृष्टिकोण तक पहुंचने के लिए विचारों और विचारधाराओं पर सवाल उठाने, बहस करने और चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। तभी हम एक ऐसी दुनिया बनाने की उम्मीद कर सकते हैं जो न केवल शांतिपूर्ण हो बल्कि सभी के लिए न्यायपूर्ण और समान भी हो।