राष्ट्रीय आस्था का मापदंड धार्मिक या व्यक्तिगत पहचान नहीं हो सकता 

राष्ट्रीय आस्था का मापदंड धार्मिक या व्यक्तिगत पहचान नहीं हो सकता 

अभी कुछ दिन पहले उत्तराखंड के दुर्गम इलाके में, एक ध्वस्त सुरंग में फंसे 41 निर्माण श्रमिकों को बचाने में जिस प्रकार देश के हर वर्ग का समर्थन और सहयोग मिला उससे एक बार फिर साबित हो गया कि हमारी एकता अद्भुत है। इस घटना के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिससे देश की एकजुटता और अटूट समर्पण का असाधारण प्रदर्शन सामने आया। दुनिया ने देखा कि उस चुनौतियों का सामना केवल तकनीक और विशेषज्ञता के बल से नहीं की गयी, अपितु विविध कार्यबल का लचीलापन, वीरता और एकता ने भी समान भूमिका निभाई। उस कठिन घड़ी में हमारे देश के मुसलमान सदा की तरह हमारे साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे थे। अधिकतर स्थानों पर तो वे नायक की भूमिका में दिखे। उन नायकों में कई गुमनाम हैं लेकिन उन्होंने वही किया जो एक देश के नागरिक को अपने भाई, बंधु-बांधवों के लिए करना चाहिए। 

यह कठिन अभियान बीते वर्ष 12 नवंबर को शुरू हुआ, जब भूस्खलन के कारण श्रमिक सुरंग के अंधेरे दायरे में फंस गए थे। कई असफलताओं और उन्नत मशीनों की विफलता के बाद भी हमारे विशेषज्ञ लगातार प्रयास करते रहे। विशेषज्ञों के समूह ने हार नहीं मानी। वे लगातार प्रयास करते रहे और पूरे देश की आशा का केन्द्र बने रहे। इस दृढ़ संकल्पित समूह में मुन्ना कुरैशी, फिरोज अंसारी, नसीम अंसारी, इरशाद सैफी, राशिद अंसारी, वकील अहमद, नासिर इदिरेसी, जतिन लोधी और अंकुर जयवाल जैसे व्यक्तिय शामिल थे। इस टीम ने न केवल अपनी सिद्धस्तता साबित की अपितु राष्ट्रीय एकता का भी परिचय दिया। विशेषज्ञों की इस टीम ने यह भी साबित कर दिया कि जब हमारे ऊपर चुनौती आती है तो हम अपने आपसी गतिरोध को खत्म कर पहले उस चुनौतियों का सामना करते हैं और उसमें हम सब एक हो जाते हैं। और जब एक होकर उस चुनौती का सामना करते हैं तो अंततः जीत हमारी ही होती है। 

उस घटना के दौरान बचाव अभियान में मुस्लिम कार्यकर्ताओं की अटूट प्रतिबद्धता ने बाधाओं को पार करते हुए, अपने गैर-मुस्लिम समकक्षों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। इन व्यक्तियों ने अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित की, जो भारत की विविधता में एकता का प्रमाण है। प्रधानमंत्री के एकता के आह्वान की भावना से प्रेरित होकर, असंभव कार्य वास्तविकता में बदल गया। विशेष रूप से, इन नायकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पसमांदा मुस्लिम समुदाय (एक समूह जिसे अक्सर अशरफ केंद्रित राजनीति द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा है।) का था। जब सुरंग में फंसे श्रमिकों का परिवार प्रत्याशा में था, ये लोग उत्सुकता से अपने प्रियजनों की खबर का इंतजार कर रहे थे, ठीक उसी समय इन  नायकों के समूह ने प्राकृतिक और दैवीय बाधाओं को पार कर अपने साथियों को टनल से बाहर निकाल लिया। इसमें विशेषज्ञों की जान भी जा सकती थी लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि इसमें कौन लोग फंसे हैं। उन्हें तो बस यही पता था कि अंदर फंसे हुए श्रमिक हमारे अपने हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर टनल से बाहर निकालना है। यह वर्तमान दौर के एकता और संवेत प्रयास का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। 

इस बचाव के मद्देनजर, मुसलमानों, विशेषकर पसमांदा मुसलमानों के निर्विवाद योगदान को पहचानना जरूरी है, जो इस राष्ट्र की रीढ़ हैं, जिनकी भक्ति, साहस और प्रतिकूल परिस्थितियों में एकता पीढ़ियों के लिए आशा और प्रेरणा की किरण के रूप में काम करती है। आने वाले समय में यह उन लोगों के लिए भी एक सीख होगी जो नफरत फैलाने में माहिर हैं। उन्हें चुप कराने में भी हमें मदद मिलेगी। यही नहीं यह उन नासमझ लोगों के लिए भी बड़ा उदाहरण है, जो मुसलमानों से नाहक देशभक्ति का प्रमाणपत्र मागते फिरते हैं। यह सबको समझ लेना होगा कि आस्था के आधार पर किसी की राष्ट्रीय पहचना तय नहीं हो सकती है। आस्था के आधार पर किसी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता भी तय नहीं की जा सकती है। इसलिए हमें यह नहीं समझना चाहिए कि अगला किसी धर्म या जाति का है। हमें तो यही समझना होगा कि अगला हमारा भाई है, जाचे उसकी जाति और धार्मिक आस्था कुछ भी हो। भारत पर धार्मिक असहिष्णुता का आरोप लगाने वाले और विरोधी षड्यंत्र में शामिल उन तमाम लोगों को उत्तराखंड सुरंग बचाव दल ने एक बार फिर से चुप करा दिया है। 

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