वक्फ प्रबंधन में पसमांदा मुसलमानों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए

वक्फ प्रबंधन में पसमांदा मुसलमानों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए

अभी हाल ही में पिछले महीने के 30 तारीख को संयुक्त संसदीय समीति (जेपीसी) ने वक्फ बोर्ड से संबंधित विधेयक की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंप दी। लोकसभा अध्यक्ष को सौंपे गए रिपोर्ट में जेपीसी ने कुछ संशोधन सुझाए हैं, जिनमें से एक, वक्फ की निर्णय लेने की प्रक्रिया में वंचित और पिछड़े मुसलमानों या पसमांदा मुसलमानों को शामिल करना सुनिश्चित करने की बात कही गयी है। जैसा कि हाल के घटनाक्रमों में उजागर हुआ है, वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य भारत में वक्फ प्रणाली के भीतर कई दीर्घकालिक मुद्दों का समाधान करना है।

वर्तमान वक्फ अधिनियम में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और लाभ में पसमांदा मुसलमानों या दलित कहे जाने वाले मुसलमानों के प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण कई विवाद उत्पन्न होते रहे हैं। सच पूछिए तो मुस्लिम समाज में उपर से देखने पर तो कोई जाति व्यवस्था नहीं दिखती है लेकिन अंदर से हिन्दुओं की तरह ही यहां भी जाति व्यवस्था हावी है। यह केवल सामाजिक स्तर पर ही नहीं है अपितु संस्थागत और अकादमिक क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है। इन समुदायों को ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने को विवस किया गया है। वर्तमान वक्फ प्रबंधन में जो व्यापक भ्रष्टाचार दिखता है उसके लिए कई कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है। वक्फ, सार्वजनिक संपत्ति का एक इस्लामी बंदोबस्त है जिसे ट्रस्ट में रखा जाता है और धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए उसका उपयोग किया जाता है। भारत में यह मुस्लिम सामाजिक और आर्थिक जीवन की आधारशिला रहा है। हालांकि, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर अक्सर भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और हाशिए पर पड़े मुस्लिम समुदायों के बहिष्कार के आरोप लगते रहे हैं।

आए दिन वक्फ संपत्ति और उसके प्रबंधन पर आरोप लगते रहे हैं। वक्फ भूमि पर अतिक्रमण, वक्फ संपत्ति का अनाधिकृत बिक्री और दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है, जिससे इस व्यवस्था में विश्वास कम हो रहा है। यही नहीं वक्फ प्रबंधन में मुस्लिम समाज को बहुसंख्यक तबता कहीं दिखता ही नहीं है। यह एक बड़ी विडंवना है कि जो समाज बहुसंख्यक है, वह वक्फ प्रबंधन का अंग ही नहीं हो पाता है। प्रस्तावित संशोधन, जैसे कि दावों के समर्थन में संपत्ति के दस्तावेजों की आवश्यकता और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना, अधिक पारदर्शिता और पारदर्शिता की दिशा में बढ़ाया गया कदम साबित होगा।

पसमांदा मुसलमान, जो भारत में मुस्लिम आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, ऐतिहासिक रूप से सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से आज भी हाशिये पर है। अपनी संख्यात्मक ताकत के बावजूद, वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। यह इसलिए भी संभव हो पाया है कि मुस्लिम समाज में जो समूह विशेष अधिकार रखते हैं वे वक्फ प्रबंधन में प्रभावी हैं। वही सभी प्रकार की व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं। इस विशेष व्यवस्था, जो इस्लाम का अंग कभी नहीं रहा उसके कारण पसमांदा समाज हुनरमंद होने बाद भी सभी दृष्टि से पिछड़ रहा है।

वक्फ बोर्डों में प्रतिनिधित्व की कमी का मतलब है कि पसमांदा मुसलमानों की विशिष्ट जरूरतों और चिंताओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाना। इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि वक्फ संपत्तियां, जो सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय की सेवा के लिए हैं, वह केवल अनाधिकृत रूप से अभिजात मुस्लिम वर्ग को लाभ पहुंचा रही हैं, जबकि हाशिए पर पड़े लोग बुनियादी सुविधाओं और अवसरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन असमानताओं को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में पसमांदा मुसलमानों को शामिल करने के प्रावधान शामिल किए जाएं। इसे निम्नलिखित उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है – संशोधन में राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर वक्फ बोर्डों में पसमांदा मुसलमानों के लिए सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए।

इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनकी आवाज सुनी जाएगी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनके हितों का प्रतिनिधित्व किया जाएगा। विधेयक में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उपयोग के लिए सख्त दिशा-निर्देश प्रस्तुत किए जाने चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन संसाधनों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के सभी वर्गों, विशेषकर हाशिए पर पड़े लोगों के लाभ के लिए किया जाए। वक्फ संपत्तियों का नियमित ऑडिट स्वतंत्र निकायों द्वारा किया जाना चाहिए, जिसमें पसमांदा मुस्लिम प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी हो। इससे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के मामलों की पहचान करने और उनका समाधान करने में मदद मिलेगी। वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय का एक हिस्सा पसमांदा मुसलमानों के उत्थान के उद्देश्य से शैक्षिक और आर्थिक पहलों के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए। इसमें छात्रवृत्तियां, व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और लघु व्यवसाय अनुदान शामिल हो सकते हैं।

वक्फ प्रशासन में पसमांदा मुसलमानों को शामिल करना न केवल सामाजिक न्याय का मामला है, बल्कि भ्रष्टाचार को दूर करने और व्यवस्था में विश्वास पैदा करने की दिशा में एक व्यावहारिक कदम भी है। हाशिए पर पड़े समुदाय, सशक्त होने पर, निगरानीकर्ता के रूप में कार्य कर सकते हैं तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि संसाधनों का उपयोग पारदर्शी और समान रूप से किया जाए। उनकी भागीदारी से वक्फ प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों के लिए नए दृष्टिकोण और नवीन समाधान सामने आ सकते हैं। पसमांदा मुसलमानों को शामिल करना समानता और न्याय के व्यापक सिद्धांतों के अनुरूप होगा, जो इस्लामी शिक्षाओं का आधार हैं। यह मुस्लिम समुदाय के सभी सदस्यों के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करेगा, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन प्रबंधन को दुरूस्त करने का एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है। इससे समुदाय को एक नयी उर्जा मिलने वाली है। हालाँकि, इन सुधारों को वास्तव में प्रभावी बनाने के लिए, इनमें पसमांदा मुसलमानों के समावेश और प्रतिनिधित्व की पुष्टि होनी चाहिए। ऐसा करके सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि वक्फ संपत्तियों का लाभ समान रूप से वितरित हो तथा मुस्लिम समुदाय के हाशिए पर पड़े वर्गों को सम्मानजनक और संतुष्ट जीवन जीने के लिए सशक्त संवल प्राप्त हो।

भारत जैसे विविधतापूर्ण और बहुलवादी समाज में यह आवश्यक है कि सभी समुदायों, विशेषकर हाशिए पर पड़े लोगों को सार्वजनिक संसाधनों में हिस्सा देने और उनसे लाभ उठाने का उचित अवसर दिया जाए। वक्फ प्रशासन में पसमांदा मुसलमानों को शामिल करना सिर्फ एक कानूनी या प्रशासनिक सुधार नहीं है, यह एक नैतिक व धार्मिक अनिवार्यता भी है, जो न्याय, समानता और समावेशिता के मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है।

लेखिका पसमंदा मुस्लिम समाज पर शोध कर रखी है। आलेख में व्यक्ति विचार लेखिका के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »