अरुण सिंह
अगली पुस्तक के लिए पटना की तवायफों पर काम करते हुए बी. छुट्टन नाम की एक बेमिसाल किरदार से सामना हुआ। वह 1875 के आस पास पटना सिटी के मच्छरहट्टा मोहल्ले के सतघरवा में रहती थी। वह जोहरा बाई की समकालीन और हमपल्ला थी। उन दिनों के कुछ खास दस्तावेजों में दर्ज जानकारी के अनुसार वह जोहरा से ज्यादा हसीन थी। इस लिए उसके चाहने वाले कुछ ज्यादा ही थे। वाकया कुछ ऐसा हुआ कि बी छुट्टन पर एक कमउम्र साहबजादे दिलोजान से फ़िदा हो गए और उसके कोठे के आगे टकटकी लगाए घंटो खड़े रहते।
कुछ दिनों तक उसे देखते रहने के बाद बी छुट्टन ने उसे अपने पास बुला कर उसका हाल जाना। मालूम हुआ साहबजादे का नाम अली अहमद है और कभी उनकी छोटी जमींदारी थी और वालिद का इंतकाल हो चुका है। बेवा मां की अकेली औलाद हैं। पैसे की कमी से पढाई छूट गयी है।
बी छुट्टन ने न केवल उसका नाम फिर से स्कूल में लिखवाया बल्कि किताब खरीदने के पैसे भी जिद कर दिए और घर पर टीचर भी रखवाया। अली इंट्रेस पास कर गए। बी छुट्टन ने अपनी मुहब्बत का हवाला देते हुए आगे की पढाई के लिए अली को कलकत्ता भेजा। अली बी छुट्टन से दूर नहीं रहना चाहते थे। सो मां के अकेले होने का बहाना बनाया। तब बी छुट्टन ने अपने खर्चे से एक बूढ़े मुलाजिम को अली की मां की खिदमत के लिए रखवाया।
अब अली की एक न चली। उसे कलकत्ता जाना पड़ा। अली की माँ को बी छुट्टन के बारे कोई जानकारी न थी। बी छुट्टन के कहने पर साहबजादे ने अपने घर यह कह रखा था कि उसके मरहूम वालिद के कोई दोस्त यह सब कर रहे हैं। इधर अली की पढ़ाई लगातार चलती रही।
अली बी ए पास कर गए। बी छुट्टन के कहने पर अली ने वकालत की पढाई की। अब माँ ने अली की शादी एक अच्छे खानदान की खूबसूरत लड़की से ठीक कर दी। अब अली ने बी छुट्टन के बारे में बताया। बताया कि वे उससे मुहब्बत करते हैं और शादी करना चाहते हैं। यह भी बताया कि आज वो जो कुछ भी हैं बी छुट्टन की बदौलत हैं। माँ अवाक् रह गयी।
बेटे से कह, बी छुट्टन को घर पर बुलवाया। उस वक्त किसी शरीफजादी के यहां तवायफ का आना बड़ी बात थी। बदनामी की परवाह न करते हुए अली की माँ ने बी छुट्टन को घर में बुलवाया। लंबी बात-चीत के बाद उन्हें अली और बी छुट्टन की शादी पर कोई ऐतराज न था।
माँ बीमार पड़ी और अली का हाथ बी छुट्टन के हाथों में थमा आँखें मूँद ली। अली ने अब शादी की जिद की। तब बी छुट्टन ने कहा तुम्हारी माँ ने तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में थमाया है। मैं उम्र में तुमसे दस बारह साल बड़ी हूं। इसलिए अब मैं जो चाहती हूं वो करो। बी छुट्टन ने अली की शादी उसी लड़की से करवाई, जिसे उसकी माँ ने पसंद किया था। अली बाद के दिनों में कलकत्ता के नामी वकील बने। पटना जब भी आते अपने बीबी बच्चों के साथ बी छुट्टन से जरूर मिलते।
बी छुट्टन और अली की माँ, दोनों का किरदार बेमिसाल है। इनकी कहानी से गुजरते हुए कई कई बार रोया हूं। जो लोग तवायफ को बुरी नजरों से देखते हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि तवायफों के कोठे कभी सांस्कृतिक केन्द्र हुआ करते थे लेकिन फिरंगियों ने इसे भी बर्वाद कर दिया और लोग नफरत करने लगे।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। यह आलेख सोशल मीडिया के वॉल पेज से लिया है। इस आलेख से हमारे प्रबंधन का कोई वैचारिक सरोकार नहीं है।)