बन्ना नहीं इस बार भी सरयू के निशाने पर हैं रघुवर

बन्ना नहीं इस बार भी सरयू के निशाने पर हैं रघुवर

गौतम चौधरी 

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर उसी दिन से विधायक सरयू राय की भृकुटी तनी हुई है जब से वे भारतीय जनता पार्टी के राष्टकृीय उपाध्यक्ष रघुवर दास को झप्पी डाल आए। उससे पहले बन्ना गुप्ता सरयू राय के निशाने पर कभी नहीं रहे। हालांकि राजनीतिक गलियारे में आज भी यह रहस्य बना हुआ है कि आखिर वह कौन-सी बात है, जिससे राय, बन्ना पर हमलावर हुए पड़े हैं? प्रेक्षक अपने-अपने तरीके से व्याख्या कर रहे हैं लेकिन इस बात पर सब एक मत हैं कि सरयू राय उसी दिन से बन्ना के खिलाफ हैं, जब से बन्ना रघुवर दास को झप्पी दिए और कहा कि राजनीति में व्यक्तिगत संबंधों का भी अपना महत्व है।

बीते विधानसभा चुनाव के बाद रघुवर थेड़े कमजोर तो पड़े थे लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति फिर से मजबूत कर ली है। मसलन, 2019 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास न तो अपनी पार्टी को जीत दिला सके और न ही खुद विधायक जीत पाए, बावजूद इसके पार्टी में आज भी रघुवर की अहमियत कम नहीं हुई है। रघुवर का केन्द्रीय नेतृत्व पर तो पकड़ है हीं स्थानीय संगठन पर भी वे हावी हैं। बाबूलाल मरांडी के आने के बाद ऐसा लगा था कि अब रघुवर दास कमजोर पड़ जाएंगे लेकिन मरांडी, दास के घुर विरोधी केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का काट बन कर रह गए। हाल के दिनों में रघुवर ने अपनी अमियत को साबित करने का भी खूब प्रयास किया है। प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता के बाद से रघुवर की नई छवि उभर कर सामने आयी है। रघुवर लगातार मुख्यमंत्री सोरेन पर हमला बोल रहे हैं। इसके कारण रघुवर की छवि में जबर्दस्त सुधार देखने को मिल रहा है। इधर पार्टी के अधिकतर विधायक भी रघुवर दास के पक्ष में ही हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा के लिए एक बार फिर से रघुवर अपरिहार्य होते दिख रहे हैं।

इस मामले में राय साहब की रणनीति समझना जरूरी है। झारखंड की राजनीति में सरयू राय बेहद होशियार नेता माने जाते हैं। भविष्य का आकलन और खेमेबाजी राजनीति के माहिर राय ने अंदाजा लगा लिया है कि आने वाले समय में यदि रघुवर मुख्यमंत्री बनेंगे तो उसमें बन्ना की बड़ी भूमिका होगी। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में से चार राज्यों में भाजपा की जीत ने भाजपा का मनोबल बढ़ाया है। झारखंड के भाजपाई भी उत्साहित हैं। हेमंत सोरेन के परिवार में भी कलह है। विधायक सीता सोरेन, अपनी ही पार्टी की सरकार पर आरोप लगाते हुए राज्यपाल रमेश बैस तक से मिल चुकी हैं। लोबिन हेम्ब्रम अलग मोर्चा खोले हुए हैं। समय-समय पर कांग्रेस में भी फूट के स्वर सुनाई देते हैं। ऐसे में हेमंत सरकार की अस्थिरता का खतरा लगातार बना हुआ है। सूत्रों की मानें तो इन दिनों मुख्यमंत्री हेमंत बेहद दबाव में हैं। ऐसे में यदि सत्ता बदली तो रघुवर पर भाजपा एक बार फिर भरोसा कर सकती है। राय रघुवर को लगातार घेरते रहे हैं। यही कारण है कि राय, बन्ना पर हमलाबर हुए हैं और उन्हें उनकी ही पार्टी में अलग-थलग करना चाहते हैं। जिस काम में वे लगभग सफल हो चुके हैं।

बन्ना प्रकरण में प्रदेश कांग्रेस रहस्यमय तरीके से चुप्प है। इसका रहस्य भी बन्ना-रघुवर की झप्पी में छुपा है। बन्ना-सरयू प्रकरण में प्रदेश कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है। कांग्रेस को इस बात का भरोसा हो गया है कि अगर पार्टी टुटती है तो उसके नेता बन्ना गुप्ता ही होंगे। इसलिए कांग्रेस भी इस मामले में चुप बैठी है। कांग्रेस की चुप्पी ने भी राय को बल दिया है। इस प्रकार राय बन्ना पर आक्रमण कर न केवल सरकार पर दबाव बनाने में सफल रहे हैं, अपितु रघुवर दास को हानि पहुंचाने में भी कामयाब रहे हैं।

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